हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण और फलदायी व्रत माना जाता है।
यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है और हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है।
यह व्रत रखने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
इस लेख में हम प्रदोष व्रत के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसमें व्रत का महत्व, नियम, पूजा विधि, लाभ और अन्य महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
इस व्रत को रखने से: सभी पापों से मुक्ति मिलती है। धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।
विवाह में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं।
संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों को लाभ मिलता है।
व्रत से शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

अप्रैल 2025 की प्रदोष व्रत तिथियां
प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है और अप्रैल 2025 की तिथियां इस प्रकार हैं:
वैदिक कैलेंडर के अनुसार, अप्रैल महीने का पहला प्रदोष व्रत यानी चैत्र माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 अप्रैल को रात 10:55 बजे शुरू होगा।
अप्रैल महीने का दूसरा प्रदोष व्रत यानी वैशाख माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 अप्रैल को रात 11:44 बजे शुरू होगा।
वहीं, तिथि का समापन 26 अप्रैल को रात 8:27 बजे होगा।
ऐसे में प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत के नियम (व्रत नियम)
प्रदोष व्रत का पालन करने के लिए कुछ नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक है:
व्रत करने वाले को व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
पूरे दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
व्रत के दौरान झूठ बोलने, क्रोध करने और किसी का अपमान करने से बचना चाहिए।
सूर्योदय से लेकर प्रदोष काल (शाम का समय) तक व्रत रखना चाहिए।
व्रत के दौरान केवल फलाहार करना या निर्जल व्रत रखना अधिक शुभ माना जाता है।
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प्रदोष व्रत पूजा विधि
व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है। इसकी विधि इस प्रकार है:
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
- शिवलिंग को जल, दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से स्नान कराएं।
- बेलपत्र, धतूरा, भांग और सफेद फूल चढ़ाएं।
- दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें।
- शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- प्रदोष व्रत की कथा सुनें (आप चाहें तो इस भाग को छोड़ भी सकते हैं)।
- आरती करें और प्रसाद बांटें।

प्रदोष व्रत के बारे में खास बातें
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है।
यह व्रत खास तौर पर भगवान शिव की पूजा के लिए रखा जाता है और प्रदोष काल (शाम का समय) में इसका विशेष महत्व होता है।
इस व्रत को करने से भक्तों को मानसिक शांति, सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक और नियमित रूप से प्रदोष व्रत करता है, उसे जीवन में कभी भी किसी भी तरह की आर्थिक, शारीरिक या मानसिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्राप्ति में सहायक माना जाता है।
खास तौर पर जो लोग इस व्रत को नियमित रूप से करते हैं, उन्हें शिवलोक की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, यह व्रत कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों को शांत करने के लिए भी किया जाता है और पारिवारिक सुख-शांति बनाए रखने में मदद करता है।
प्रदोष व्रत में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
क्या करें:
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- भगवान शिव का ध्यान करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
- पूरे दिन सात्विक भोजन करें और व्रत रखें।
- जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े दान करें।
- घर में सकारात्मक माहौल बनाए रखें और शिव मंदिर जाकर पूजा करें।
क्या न करें:
- व्रत के दिन मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- किसी भी तरह के अपशब्द, झूठ और नकारात्मक विचारों से बचें।
- व्रत के दौरान क्रोध और अहंकार से दूर रहें।
- किसी भी तरह की हिंसा, चोरी या अनैतिक काम न करें।
- दिन में सोने से बचें और आलस्य का त्याग करें।
सही तरीके से व्रत रखने से शुभ फल प्राप्त होते हैं और भगवान शिव की कृपा बनी रहती है।
प्रदोष व्रत और ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है।
यह व्रत विशेष रूप से शनि, मंगल, राहु और केतु ग्रहों के दोषों को शांत करने के लिए किया जाता है।
शनि प्रदोष व्रत करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
वहीं, कर्ज मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ के लिए मंगल प्रदोष व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस व्रत को करने से राहु-केतु के अशुभ प्रभाव भी समाप्त हो जाते हैं।
अगर कुंडली में विवाह में देरी हो रही हो, संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो या करियर में तरक्की नहीं हो रही हो तो प्रदोष व्रत बहुत लाभकारी होता है।
जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष या पितृ दोष हो उन्हें भी यह व्रत करने से लाभ मिलता है।
प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से ग्रहों की शांति होती है और व्यक्ति का भाग्य मजबूत होता है।
प्रदोष के व्रत के लाभ
व्रत के नियमित पालन से कई लाभ प्राप्त होते हैं।
यह व्रत मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
इस व्रत को करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और धन में वृद्धि होती है।
स्वास्थ्य लाभ मिलता है और पुराने रोग दूर होते हैं।
वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और संतान संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।
नौकरी और व्यापार में तरक्की होती है।
ग्रह दोष दूर होते हैं और नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त होती हैं।
जो कोई भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से यह व्रत करता है, उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
व्रत की विधि
प्रदोष का व्रत सूर्योदय से लेकर रात्रि तक किया जाता है।
इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करना श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन आवश्यकतानुसार फल भी खाए जा सकते हैं।

व्रत की विधि इस प्रकार है:
- सुबह उठकर स्नान करें और भगवान शिव का ध्यान करें।
- पूरे दिन सात्विक भोजन करें या निर्जला व्रत रखें।
- प्रदोष काल (सूर्यास्त से पहले का समय) में शिवलिंग का अभिषेक करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल चढ़ाएं।
- बेलपत्र, धतूरा, भांग और सफेद फूल चढ़ाएं।
- शिव मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- आरती करें और प्रसाद बांटें।
रात में सात्विक भोजन करके व्रत खोलें। इस तरह व्रत रखने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है।
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निष्कर्ष
प्रदोष का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही प्रभावशाली और फलदायी व्रत है।
यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और इसके पालन से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
सही विधि और नियमों का पालन करके इस व्रत को करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति प्राप्त होती है।
जो भी भक्त पूरी आस्था और भक्ति के साथ इस व्रत को करता है, उसे भगवान शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।
ॐ नमः शिवाय!