पशुपति व्रत भगवान शिव को समर्पित एक बहुत ही फलदायी और प्रभावशाली व्रत है।
‘पशुपति’ भगवान शिव का एक विशेष नाम है, जिसका अर्थ है – सभी जीवों के स्वामी।
यह व्रत उन भक्तों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है जो जीवन में शांति, स्वास्थ्य, संतान, सफलता या आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं।
यह व्रत किसी भी सोमवार, महाशिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि या श्रावण मास से शुरू किया जा सकता है।
इसे नियमित रूप से करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
पशुपति व्रत का महत्व
पशुपति व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है।
यह व्रत भगवान शिव के ‘पशुपति’ रूप की पूजा से जुड़ा है, जो सभी जीवों पर दया और नियंत्रण रखते हैं।
ये व्रत व्यक्ति के पापों का नाश करता है, आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है और जीवन में मानसिक शांति लाता है।
यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से प्रभावी है जो बार-बार असफलता, रोग, बाधा या भय से ग्रस्त हैं।
साधना की दृष्टि से भी इस व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि इससे साधक की एकाग्रता बढ़ती है और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

व्रत करने का सर्वोत्तम दिन
पशुपति व्रत किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है, लेकिन कुछ तिथियाँ विशेष मानी जाती हैं:
प्रत्येक सोमवार – शिव को समर्पित दिन
श्रावण मास के सोमवार – अत्यंत शुभ
महाशिवरात्रि – शिव व्रत के लिए वर्ष का सबसे शुभ दिन
मासिक शिवरात्रि – प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी
कृष्ण पक्ष के दिन – साधना के लिए उपयुक्त
यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष कामना से व्रत करना चाहता है, तो उसे पंचांग देखकर शुभ समय में व्रत शुरू करना चाहिए।
कई भक्त इस व्रत को 16 सोमवार तक करते हैं, जिसे ‘सोमवार व्रत अनुष्ठान’ कहा जाता है।
व्रत की संकल्प विधि
व्रत शुरू करने से पहले संकल्प लेना बहुत जरूरी है।
संकल्प का अर्थ है – व्रत को किसी निश्चित उद्देश्य से शुरू करना।
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान शिव का ध्यान करें तथा जल लेकर संकल्प मंत्र पढ़ेंः
“मम समस्ता पापक्षया पूर्वक्त सर्वाभिष्ट सिद्धये श्री पशुपति देवतां प्रीत्यर्थं व्रतमहं करिष्ये।”
इसके पश्चात भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाएं, पुष्प अर्पित करें तथा बेलपत्र चढ़ाएं।
संकल्प लेने के पश्चात नियमित व्रत रखें तथा मन में शिव का जाप करते रहें।
संकल्प एक दिन, एक सप्ताह, 16 सोमवार या मासिक व्रत के रूप में लिया जा सकता है।
व्रत की पूजा विधि
पशुपति व्रत की पूजा विधि सरल किन्तु भक्ति पूर्ण होनी चाहिएः
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थल अथवा शिव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करें।
- जल, दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल आदि से अभिषेक करें (संभव हो तो रुद्राभिषेक करें)।
- बेलपत्र, धतूरा, आक, सफेद फूल, अक्षत, फल आदि चढ़ाएं।
- शिव पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ पशुपतये नमः” का 108 बार जाप करें।
- धूप-दीप से आरती करें और व्रत कथा के स्थान पर भगवान शिव की महिमा का पाठ करें।
- अंत में शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र या शिवाष्टकम का पाठ करें।
व्रत के नियम
व्रत करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है: व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज) न खाएं।
जितना संभव हो सके शिव का नाम जपें। किसी की निंदा या अपशब्द न बोलें।
संभव हो तो केवल फल खाएं या दिन में एक बार सादा भोजन करें।
संयम, आस्था और सात्विकता बनाए रखें।
व्रत के अंत में ब्राह्मण को भोजन या दान अवश्य दें।
व्रत तभी पूर्ण फलदायी होता है जब नियमों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाए।
पशुपति व्रत के लिए मंत्र
इस व्रत के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है:
- ओम नमः शिवाय – पंचाक्षर मंत्र, सबसे प्रभावी
- ओम पशुपतये नमः – विशेष रूप से पशुपति स्वरूप की पूजा के लिए।
- महामृत्युंजय मंत्र- ओम त्र्यम्बकं यजामहे… (108 बार)
- शिवाष्टकम या शिव तांडव स्तोत्र – शिव की स्तुति के लिए जप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें

व्रत के लाभ
पशुपति व्रत करने से व्यक्ति को अनेक आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं:
मानसिक शांति और भय से मुक्ति
रोगों से बचाव और स्वास्थ्य में सुधार
आर्थिक बाधाओं का निवारण
विवाह में आने वाली बाधाओं का समाधान
संतान सुख की प्राप्ति
आध्यात्मिक उन्नति और आत्मशुद्धि
पूर्व जन्म के पापों का नाश
कठिन समय में ईश्वर की कृपा प्राप्त होना
इस व्रत से मन, वाणी और कर्म शुद्ध होते हैं और व्यक्ति मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होता है।
निष्कर्ष
पशुपति व्रत एक सरल लेकिन बहुत शक्तिशाली साधना है, जो हर व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है।
यह व्रत भगवान शिव के दयालु और रक्षक स्वरूप की पूजा है, जिसे विधिपूर्वक और भक्ति के साथ करने से सभी दुखों का नाश होता है।
खासकर उन लोगों के लिए जो जीवन में संकटों, कष्टों या भय से जूझ रहे हैं, यह व्रत संजीवनी के समान है।
अगर इसे पूरे विधि-विधान से किया जाए तो यह व्रत आपके लिए वरदान साबित हो सकता है।