राम रक्षा स्तोत्र एक बहुत ही प्रभावशाली और दिव्य स्तोत्र है, जिसे भगवान श्री राम की कृपा पाने और उनका सुरक्षा कवच धारण करने का माध्यम माना जाता है।
यह स्तोत्र ऋषि बुध कौशिक द्वारा रचित है और भगवान राम के विभिन्न नामों, गुणों और दिव्य स्वरूप की स्तुति करता है।
यह स्तोत्र संकटों से रक्षा करने, नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने और जीवन में सुख-शांति बनाए रखने के लिए अचूक माना जाता है।
राम रक्षा स्तोत्र का महत्व
राम रक्षा स्तोत्र को बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है।
यह भगवान श्री राम की कृपा पाने और सभी प्रकार के भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने के लिए बहुत ही प्रभावशाली है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है और उसका आत्मविश्वास बढ़ता है।
यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में सफलता और समृद्धि लाने में भी मदद करता है।
शास्त्रों के अनुसार, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शत्रु पर विजय मिलती है, स्वास्थ्य में सुधार होता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

राम रक्षा स्तोत्र
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥
राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्री राम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्री राम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्री राम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने की विधि और नियम
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह या शाम का समय सबसे अच्छा माना जाता है।
पाठ से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें और भगवान श्री राम की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें।
आसन पर बैठकर शुद्ध मन से भगवान श्री राम का ध्यान करें और संकल्प लें।
इसके बाद “श्री गणेशाय नमः” कहकर पाठ शुरू करें।
पाठ के दौरान शांत और एकाग्र रहना जरूरी है।
हो सके तो घी का दीपक जलाएं और तुलसी या चंदन की माला से पाठ करें।
इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से शुक्रवार या मंगलवार को करना शुभ माना जाता है।
इसके अलावा नवमी, पूर्णिमा या अमावस्या के दिन इसका पाठ करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
स्तोत्र का पाठ करने के बाद भगवान राम को प्रणाम करें और आरती करें और प्रसाद बांटें।
पाठ करने के लाभ
राम रक्षा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
यह स्तोत्र व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है।
यह स्तोत्र उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जो भय, चिंता या अनिश्चितता से ग्रस्त हैं।
इसका पाठ करने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और दुर्घटनाओं से बचाने में मदद करता है।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
यह न केवल इस जीवन में बल्कि आने वाले जन्मों में भी लाभकारी है।
इसके अलावा रोगों से मुक्ति, कोर्ट-कचहरी में विजय और कार्यों में सफलता पाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।

Frequently Asked Questions (FAQs)
- राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
इसका प्रतिदिन एक बार या सप्ताह में कम से कम तीन बार पाठ करना शुभ होता है।
- क्या राम रक्षा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?
हाँ, लेकिन ब्रह्ममुहूर्त या संध्या काल में इसका पाठ करना अधिक फलदायी होता है।
- क्या महिलाएँ भी राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
हाँ, महिलाएँ भी शुद्ध भावना से इस स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं।
- क्या राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता होती है?
घर का पूजा स्थल सबसे उपयुक्त है, लेकिन इसे कहीं भी किया जा सकता है।
- क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से शत्रु बाधाएँ दूर होती हैं?
हाँ, शत्रुओं का नाश करने और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने में यह स्तोत्र बहुत कारगर है।
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