हिन्दू धर्म की अठारह महापुराणों में से एक माने जाने वाले विष्णु पुराण को महर्षि पराशर के द्वारा रचित माना जाता है।
यह पुराण भगवान विष्णु की महिमा, सृष्टि के रहस्य और धर्म के मार्ग पर आधारित है।
इसका पहला अंश विशेष महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, समय की अवधारणा, और लोक-व्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया गया है।
इस भाग में न केवल ब्रह्मांड की रचना की प्रक्रिया वर्णित है, बल्कि मानव जीवन के उद्देश्य और धर्म के महत्व को भी गहरे से समझाया गया है।
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विष्णु पुराण का स्वरुप और महत्व
विष्णु पुराण भारतीय पुराण साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण है।
यह केवल धार्मिक किताब नहीं है, बल्कि यह एक दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथ भी है।
इसमें ब्रह्मांड के उत्पत्ति और संरचना के साथ-साथ समाज और मानव जीवन के लिए मार्गदर्शन भी दिया गया है।
पहले भाग में यह व्यक्त किया गया है कि भगवान विष्णु सृष्टि के निर्माता के रूप में ही नहीं, बल्कि उनके पालनकर्ता और संहारक भी हैं।
इस पुराण में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को मानव जीवन के चार स्तंभों के रूप में दर्शाया गया है।
प्रथम भाग का विषय वस्तु
जब विष्णु पुराण के पहले भाग को पढ़ा जाता है, तो तीन मुख्य विषय सामने आते हैं:
- सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड का निर्माण।
- समय का मूल्यांकन और मन्वंतर की व्याख्या।
- भगवान विष्णु के लीला और धर्म की महत्वपूर्णता।
सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड का निर्माण
विष्णु पुराण के प्रथम भाग के अनुसार, भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि की शुरुआत योगनिद्रा से की जाती है।
भगवान विष्णु अनंत शेषनाग पर ध्यानधारण में रहते हैं। यह स्थिति ब्रह्मांडीय शून्यता या महाप्रलय का प्रतीक मानी जाती है।
जब विष्णु योगनिद्रा से उठते हैं, तो उनकी नाभि से एक दिव्य कमल उद्भव होता है, और उस कमल से भगवान ब्रह्मा का उद्भव होता है।
भगवान ब्रह्मा को सृष्टि की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
उन्होंने पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) की रचना की, जो सृष्टि की आधारशिला हैं।
साथ ही, ब्रह्मा ने तीन गुणों (सत्त्व, रजस, और तमस) के आधार पर सृष्टि को व्यवस्थित किया।
- सत्त्व गुण सकारात्मक ऊर्जा और सृजन का सिद्धांत है।
- रजस गुण गति और क्रियाशीलता को प्रकट करता है।
- तमस गुण निष्क्रियता और विनाश का परिचय है।
पहले अनुभाग में बताया गया है कि सृष्टि में भौतिक, आध्यात्मिक, और नैतिक तत्व विद्यमान हैं।
इस सृष्टि का संरक्षण करना और सम्मान करना हर व्यक्ति का धर्म माना गया है, जिसे भगवान विष्णु के रूप में माना गया है।
विष्णु पुराण में समय का मूल्यांकन और मन्वंतर की व्याख्या
विष्णु पुराण के पहले भाग में समय की परिभाषा को विस्तार से व्याख्यान किया गया है। समय को विष्णु भगवान का रूप माना गया है, जिसका प्रतियोग महत्वपूर्ण है और जो सृष्टि के प्रत्येक क्षण में प्रचलित है।
समय के मापन
समय निम्नलिखित इकाइयों में विभाजित है:
क्षण, पल, घड़ी, और दिन।
महीना और साल।
चतुर्युगी: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग में से चार युगों की दौड़।
चतुर्युगी का वर्णन
प्रति चतुर्युग में चार युग होते हैं, जिनका कुल समयावधि 43,20,000 वर्ष होती है:
- सतयुग: इस युग में व्यक्ति जीवन पूरी तरह से पवित्र मानता है, और सत्य-धर्म का पालन करता है।
- त्रेतायुग: यहाँ पर सत्य में कमी आती है और अधर्म की शुरुआत होती है।
- द्वापरयुग: इस युग में अधर्म का विस्तार होता है और समाज में असुविधाएं बढ़ती हैं।
- कलियुग: इस युग में अधर्म अपने चरम स्थिति पर होता है और मनुष्य धर्म से भटक जाता है।
मन्वंतर की अवधारणा
मन्वंतर समय का एक व्यापक चक्र है। प्रत्येक मन्वंतर में एक मनु होता है, जो सृष्टि का नेतृत्व करता है।
वर्तमान मन्वंतर सप्तम है, और इसे वैवस्वत मन्वंतर कहा जाता है।
विष्णु पुराण उदाहरणित किया गया है कि सृष्टि का निर्माण और विनाश स्थायी प्रक्रिया है, जो भगवान विष्णु की माया का परिणाम है।
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भगवान विष्णु के लीला और विष्णु पुराण में धर्म की महत्वपूर्णता
विष्णु पुराण का पहला अंश भगवान विष्णु की लीलाओं और धर्म के महत्व पर विशेष जोर देता है।
यह अंश विविधता में से एक मानता है कि भगवान विष्णु किस प्रकार से अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं जब अधर्म बढ़ जाता है।
भगवान विष्णु को माना जाता है जैसे कि धर्म, सत्य और न्याय का प्रतीक।
जिन धर्मिक सिद्धांतों का उन्होंने सिखाया जो सत्य, अहिंसा और न्याय पर आधारित है, जो मानव जीवन के मूल आधार के रूप में काम करते हैं।
मनुष्य का कर्तव्य होता है कि वह धर्म का पालन करें और अधर्म से बचें।
धर्म का विस्तार
भाषा को तीन मुख्य खंडों में विभाजित किया गया है:
- नित्य धर्म: सच्चाई और हिंसा से बचाव।
- नैमित्तिक धर्म: विशेष प्रसंगों में पुराने कर्म।
- काम्य धर्म: मनुष्य की इच्छाओं को पूरा करने के लिए किया गया कर्तव्य।
समाज में शांति और मैत्री को बनाए रखने के लिए धर्म का पालन करना महत्वपूर्ण है।
पहले भाग में यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सृष्टि के सात प्रकार
विष्णु पुराण के प्रथम भाग में सृष्टि को सात प्रकारों में विभाजित किया गया है। ये सात प्रकार उपरोक्त रूपों में हैं:
- महत्तत्त्व सृष्टि: विष्णु द्वारा योगमाया के साथ सृष्टि की शुरुआत।
- भूत सृष्टि: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश के पाँच तत्वों का निर्माण।
- इंद्रिय सृष्टि: पांच ज्ञानेंद्रिया और पांच कर्मेंद्रिया।
- देव सृष्टि: देवताएं, असुर, और ऋषि की प्रकटीकरण।
- मनुष्य सृष्टि: मानव जाति की उत्पत्ति।
- तिर्यक सृष्टि: वन्यजीव-पक्षी और अन्य प्राणियों का निर्माण।
- अन्न सृष्टि: पेड़-पौधों और खाद्य पदार्थ का उत्पादन।
यह विभाजन दर्शाता है कि सृष्टि केवल भौतिक संरचना नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और प्राणीक तत्व भी शामिल हैं।
विष्णु पुराण में ज्ञान और भक्ति का महत्व
पहले भाग में इंसान के जीवन के दो मुख्य स्तंभों के रूप में ज्ञान और भक्ति को पेश किया गया है।
- ज्ञान: सत्य को समझने और आत्मा की प्रकृति को समझने का एक तरीका है।
- भक्ति: भगवान से जुड़ने और उनके प्रति समर्पित रहने का मार्ग है।
महर्षि पराशर कहते हैं कि जो व्यक्ति ज्ञान और भक्ति की राह पर चलता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।
भक्ति से भगवान विष्णु से कृपा प्राप्त होती है, जो सभी कष्टों को दूर करती है।
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विष्णु पुराण के सन्देश
विष्णु पुराण का पहला भाग सृष्टि, समय और धर्म के सिद्धांतों की एक समृद्ध टिप्पणी है।
इस भाग में बताया गया है कि भगवान विष्णु ही इस ब्रह्मांड के मूल हैं और उन्हीं से सृष्टि का आरंभ और अंत होता है।
यह भाग हमें यह संदेश देता है कि धर्म, सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलकर ही मनुष्य अपने जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर सकता है।
निष्कर्ष
विष्णु पुराण का प्रथम खंड भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का प्रतीक है।
इसमें सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के रहस्यों के विस्तृत विवेचन के साथ-साथ, मनुष्य को धर्म, भक्ति और ज्ञान की महत्वपूर्णता का उद्देश्य भी बताया जाता है।
इस अनुभाग में भगवान विष्णु के प्रति भक्ति एवं उनके विशेष स्वरूप का गहन वर्णन पाया जाता है, जो हिन्दू धर्म के नींव को समझने में मदद करने वाली एक बहुमूल्य स्रोत है।
यह भाग हमें यह सिखाता है कि ब्रह्मांड और धर्म का सम्मान करना ही भगवान विष्णु की वास्तविक पूजा है। धर्म, श्रद्धा और ज्ञान से युक्त जीवन ही हमें मोक्ष की दिशा में ले जाता है।
विष्णु पुराण Video in English