हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी व्रत को विशेष फलदायी माना जाता है, खासकर जब यह वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ता है और इसे “विकट संकष्टी चतुर्थी” कहा जाता है।
यह दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित है ।
संकटों से मुक्ति, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मनाया जाता है।
व्रत रखने वाले भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं और रात में चंद्रोदय के बाद व्रत खोलते हैं।
इस लेख में आप इस चतुर्थी की व्रत विधि, महत्व, नियम, विशेष उपाय और अन्य उपयोगी जानकारी जानेंगे।
विकट संकष्टी चतुर्थी क्या है?
विकट संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक विशेष तिथि है जो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ती है।
शब्द ‘विकट’ का अर्थ है कठिन, और ‘संकष्टी’ का अर्थ है संकट को दूर करने वाला।
इस व्रत का उद्देश्य जीवन के कठिन समय, बाधाओं और मानसिक तनाव को दूर कर एक नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है।
यह चतुर्थी मुख्य रूप से उन भक्तों के लिए खास मानी जाती है जो परिवार में सुख-शांति, संतान की सफलता या खुद के करियर में तरक्की की कामना करते हैं।
ग्रह दोषों, खासकर मंगल और राहु की शांति के लिए भी यह व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
श्री गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ कहा गया है और इस दिन उनकी विशेष पूजा करने से बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
यह व्रत खास तौर पर महिलाएं और विद्यार्थी बड़ी आस्था के साथ रखते हैं।

विकट संकष्टी चतुर्थी 2025: तिथि, समय
वैदिक पंचांग के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि बुधवार, 16 अप्रैल को दोपहर 1:15 बजे शुरू होगी।
साथ ही यह तिथि गुरुवार, 17 अप्रैल को दोपहर 3:22 बजे समाप्त होगी।
वर्ष 2025 में विकट संकष्टी चतुर्थी 16 अप्रैल को मनाई जाएगी, जिसमें चंद्रोदय का समय रात्रि 10:00 बजे होगा तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने का मुहूर्त चंद्रोदय के पश्चात सायंकाल में होगा।
संकष्टी व्रत का पारण चंद्र दर्शन के पश्चात किया जाता है।
इसलिए व्रती लोग चंद्रमा के उदय होने का इंतजार करते हैं तथा उसे अर्घ्य देने के पश्चात ही फलाहार करते हैं अथवा व्रत का पारण करते हैं।
चंद्रमा और गणेशजी के बीच विशेष संबंध होने के कारण इस दिन चंद्र दर्शन का बहुत महत्व है।
व्रत का फल तभी प्राप्त होता है, जब व्रत का पारण सही समय पर किया जाए।
विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
व्रत के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा घर की सफाई करें।
पूजा के लिए श्री गणेश की मूर्ति अथवा चित्र को लाल कपड़े पर स्थापित करें।
इसके पश्चात उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल पुष्प, मोदक अथवा गुड़ के लड्डू का भोग लगाएं।
दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित करें तथा श्री गणेश के मंत्रों का जाप करें।
“ॐ गं गणपतये नमः” का कम से कम 108 बार जाप करें। व्रती पूरे दिन निराहार या फलाहार रह सकते हैं।
शाम को फिर से पूजा करें और चंद्रोदय की प्रतीक्षा करें।
चंद्रमा को जल, चावल और दूध मिश्रित अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें।
अंत में आरती करें और मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल और मोदक का विशेष महत्व है।
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व्रत के नियम और संयम
संकष्टी व्रत में विशेष नियम और संयम का पालन करना आवश्यक है।
इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और पूरे दिन मन, वाणी और कर्म की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
अन्न न खाएं, केवल फलाहार या निर्जल व्रत रखें।
पूजा से पहले और पूरे दिन श्री गणेश का नाम स्मरण करते रहें।
किसी से कटु वचन न बोलें, क्रोध न करें और आलस्य से बचें।
पूजा स्थल और शरीर दोनों की पवित्रता अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है।
इस दिन मांसाहारी वस्तुओं जैसे प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना अनिवार्य होता है।
शाम को चंद्रमा के दर्शन होने तक मौन रहना शुभ माना जाता है।
ये नियम व्रत को प्रभावशाली और फलदायी बनाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी और ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार चतुर्थी तिथि का संबंध चंद्रमा और मंगल से है।
चंद्रमा मन और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है जबकि मंगल ऊर्जा और संघर्ष का प्रतीक है।
विकट संकष्टी चतुर्थी पर व्रत और पूजा करने से इन ग्रहों के दोष शांत होते हैं।
यह दिन विशेष रूप से चंद्रमा की शांति और मंगल से संबंधित दोषों के निवारण के लिए अच्छा माना जाता है।
व्रत करने से मानसिक संतुलन, आत्मविश्वास और कार्यों में सफलता मिलती है।
यह ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों को भी समाप्त करता है और शुभ फल देता है।
इस दिन किए जाने वाले विशेष कार्य और उपाय
विकट संकष्टी चतुर्थी पर किए जाने वाले विशेष कार्य और उपाय बहुत फलदायी होते हैं।
इस दिन श्री गणेश को दूर्वा, सिंदूर और मोदक चढ़ाना शुभ होता है।
“ॐ वक्रतुण्डाय हुं” मंत्र का 108 बार जाप करने से बाधाएं दूर होती हैं।
अगर किसी के काम बार-बार विफल हो रहे हों तो गणेशजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं और 21 बार इस मंत्र का जाप करें – “विघ्नेश्वराय नमः”।
इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना, गुड़ और तिल का दान करना और गायों की सेवा करना शुभ होता है।
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय चीनी डालना मानसिक शांति के लिए सबसे अच्छा उपाय है।
बच्चों की शिक्षा और सफलता के लिए गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
ये उपाय जीवन में सुख, शांति और उन्नति के रास्ते खोलते हैं।
महिलाओं के लिए विशेष लाभ
यह व्रत खास तौर पर महिलाओं के लिए बहुत फलदायी माना जाता है।
संतान सुख, संतान की लंबी आयु या पारिवारिक सुख-शांति की कामना रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत बहुत कारगर है।
व्रत के दिन महिलाएं लाल वस्त्र पहनकर श्री गणेश की पूजा करती हैं और संतान की रक्षा के लिए विशेष मंत्रों का जाप करती हैं।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को सौभाग्य, पति की लंबी आयु और पारिवारिक समृद्धि की प्राप्ति होती है।
वहीं अविवाहित लड़कियों के लिए अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत फलदायी माना जाता है।
इस दिन व्रत रखने के साथ ही महिलाएं दान, उपहार और सुहाग सामग्री भी बांटती हैं जो बहुत शुभ होता है।
बच्चों और विद्यार्थियों के लिए क्यों जरूरी है यह व्रत
यह व्रत खास तौर पर विद्यार्थियों के लिए होता है जिससे बुद्धि, स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
श्री गणेश को बुद्धि का दाता और विद्या का स्वामी माना जाता है और इनकी पूजा से ज्ञान में वृद्धि होती है।
यदि बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो इस दिन उसके नाम का व्रत रखें और गणेश गायत्री मंत्र का जाप करें।
“ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात”
इससे उनकी एकाग्रता बढ़ेगी और मानसिक तनाव कम होगा।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए यह दिन विशेष फलदायी है।
माता-पिता अपने बच्चों की सफलता के लिए इस दिन विशेष पूजा और उपाय कर सकते हैं।
विकट संकष्टी व्रत से जुड़ी मान्यताएं और सामाजिक परंपराएं
इस व्रत से जुड़ी मान्यताएं और परंपराएं समाज में एकता और भक्ति को बढ़ावा देती हैं।
कई जगहों पर श्री गणेश की सामूहिक पूजा और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है।
महिलाएं सामूहिक व्रत रखती हैं और एक-दूसरे को तिलक, मोदक और दूर्वा अर्पित करती हैं।
इस दिन बच्चे भी उत्साहित रहते हैं क्योंकि उन्हें गणेशजी के विशेष लड्डू और कहानियों के माध्यम से धर्म का ज्ञान दिया जाता है।
गांवों और कस्बों में मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और भजन-कीर्तन का माहौल बनाया जाता है।
यह व्रत न केवल व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष
विकट संकष्टी चतुर्थी एक बहुत ही पवित्र और प्रभावशाली व्रत है।
यह व्रत न केवल संकटों को हरता है बल्कि मन, शरीर और आत्मा को भी शुद्ध करता है।
जब जीवन में बार-बार बाधाएं आ रही हों, या काम में रुकावटें आ रही हों, तो इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।
यह व्रत मानसिक स्थिरता, ग्रह दोष शांति और पारिवारिक समृद्धि का माध्यम है।
अगर इसे सही तरीके से नियमों का पालन करते हुए किया जाए तो यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख, सफलता और शांति लाता है।
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