हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।
इस दिन भक्त भगवान गणेश की पूजा करते हैं और चंद्रदर्शन के बाद व्रत खोलते हैं।
मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से इस दिन व्रत रखता है, उसके जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और उसे सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
इस दिन को “विकट संकष्टी चतुर्थी” भी कहा जाता है।
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है और चतुर्थी का दिन उनकी पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी उन भक्तों के लिए विशेष लाभकारी है जो जीवन में किसी संकट, बाधा या मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं।
यह व्रत गणेश जी के संकटहरण स्वरूप की पूजा है।
संकष्टी चतुर्थी तिथि और पूजा मुहूर्त
संकष्टी चतुर्थी व्रत 14 जून को रखा जाएगा।
चंद्रोदय: रात्रि 9:18 बजे
पूजा का शुभ समय: प्रातः 5:55 से 9:08 बजे तक
इस दिन भक्त सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं और शुभ मुहूर्त के अनुसार भगवान गणेश की पूजा करते हैं।
रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है।

व्रत का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। ‘संकष्टी’ का अर्थ है – कष्टों को दूर करने वाली।
यह व्रत विशेष रूप से रोग, शत्रु भय, आर्थिक समस्याओं और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है।
यह व्रत सामान्य चतुर्थी से अधिक प्रभावशाली माना जाता है क्योंकि इसमें चंद्रदर्शन और अर्घ्य का विशेष महत्व होता है।
व्रत की पूजा विधि
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- गणेश जी को दूर्वा, लाल फूल, सिंदूर, लड्डू (विशेष रूप से मोदक) चढ़ाएं।
- धूप-दीप जलाकर गणेश जी की आरती करें और ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें।
- पूरे दिन बिना अन्न या फल के व्रत रखें।
- रात में चंद्रमा को देखें और उसे अर्घ्य दें।
- चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोलें।
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चंद्र दर्शन का महत्व
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा को देखना अनिवार्य माना जाता है। व्रत तभी पूरा होता है जब चंद्रमा को देखने के बाद उसे अर्घ्य दिया जाता है।
चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन शुद्ध होता है और मानसिक तनाव दूर होता है।
यह क्रिया मन को शांति प्रदान करती है और व्रती की भक्ति पूर्ण होती है।
खास बात यह है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा देखना वर्जित माना जाता है, लेकिन कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को यह आवश्यक है।
व्रत के नियम
- इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- व्रती को पूरे दिन वाणी और आचरण में संयम बनाए रखना चाहिए।
- व्रत के दौरान झगड़े, विवाद या अशुद्ध विचारों से दूर रहना चाहिए।
- रात में चंद्र दर्शन होने तक भोजन न करें।
- शुद्ध और सात्विक भोजन से व्रत खोलें।
विशेष उपाय और मंत्र
इस दिन ‘ॐ वक्रतुंडाय नमः’ और ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें।
गणेश जी को 21 दूर्वा चढ़ाने से विशेष फल मिलता है।
गाय को हरा चारा या गौग्रास देना भी शुभ माना जाता है।
रात को चंद्रमा को कच्चा दूध, चीनी और अक्षत मिलाकर जल अर्पित करें।

व्रत रखने वालों के लिए खास टिप्स
- शरीर को हाइड्रेट रखें: व्रत के दौरान पूरे दिन पानी या नींबू पानी पीते रहें ताकि शरीर ऊर्जावान बना रहे।
- फलाहार में पौष्टिक चीजें शामिल करें: केला, खजूर, नारियल पानी, मूंगफली या मखाना खाएं।
- ध्यान और मंत्र जाप को प्राथमिकता दें: व्रत के साथ-साथ आध्यात्मिक साधना मन को स्थिरता प्रदान करती है।
- अधिक थकें नहीं: दिनभर हल्का काम करें और मानसिक रूप से शांत रहें।
- रात को चांद देखना न भूलें: यह व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसे किसी भी हालत में न छोड़ें।
निष्कर्ष
संकष्टी चतुर्थी व्रत आस्था और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। यह न केवल भौतिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धता और मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
भगवान गणेश के आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मकता, शुभता और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
इसलिए इस पावन दिन पर भगवान गणेश की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए और नियमित व्रत रखना चाहिए।