वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए बहुत ही पवित्र और पूजनीय त्यौहार है।
इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख, समृद्धि और सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं और वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं।
यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली में मनाया जाता है।
व्रत के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, सुहाग का सामान पहनती हैं और विशेष पूजा विधि से वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
इस लेख में हम वट सावित्री व्रत 2025 की तिथि, पूजा विधि, नियम, सामग्री, लाभ और सावधानियों के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं ताकि आप इस व्रत को श्रद्धा और सही तरीके से कर सकें।
वट सावित्री व्रत 2025: तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत के लिए ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि सोमवार 26 मई को दोपहर 12:11 बजे से शुरू होकर मंगलवार 27 मई को सुबह 8:31 बजे तक रहेगी।
यह व्रत अमावस्या तिथि को रखा जाता है और 2025 में यह 26 मई को रखा जाएगा।
इस दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं और वट वृक्ष के पास जाकर पूजा करती हैं।
पूजा के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है, इसलिए सूर्योदय से सुबह 8:00 बजे तक का समय शुभ रहेगा।
पूजा का शुभ समय आमतौर पर सूर्योदय से पहले या तुरंत बाद का होता है, जब वातावरण शुद्ध और शांत होता है।
इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए यह तिथि बेहद फलदायी मानी जाती है।

व्रत का महत्व और धार्मिक अर्थ
वट सावित्री व्रत पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन से जुड़ा है।
इसे महिलाओं का करवा चौथ भी कहा जाता है। इस व्रत में सावित्री द्वारा अपने पति सत्यवान को यमराज से जीवित करने की प्रतीकात्मक स्मृति है।
यह व्रत न केवल एक धार्मिक कृत्य है, बल्कि एक महिला की आस्था, प्रेम और समर्पण का भी प्रतीक है।
धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवों का वास होता है।
इस वृक्ष की पूजा करने से जीवन में स्थिरता, समृद्धि और सौभाग्य बना रहता है।
व्रत करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
यह व्रत महिला को मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास और ईश्वर में दृढ़ विश्वास प्रदान करता है।
व्रत रखने की विधि और नियम
वट सावित्री व्रत वाले दिन महिलाएं सुबह स्नान करके पवित्र वस्त्र पहनती हैं और सुहाग की वस्तुएं जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र आदि पहनती हैं।
व्रत का संकल्प लेने के बाद पूरे दिन उपवास रखा जाता है।
कुछ महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं तो कुछ फलाहार लेती हैं।
व्रत का मुख्य नियम संयम, सात्विकता और ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना है।
इस दिन किसी भी तरह का क्रोध, झगड़ा या अशुद्ध विचारों से बचना चाहिए।
व्रत के दौरान केवल भगवान से संबंधित कार्य, व्रत और पूजा-पाठ करना ही उचित होता है।
व्रत करते समय भक्ति, नियम और मन की पवित्रता जरूरी है।
अगर व्रत करने वाला व्यक्ति अस्वस्थ है तो वैकल्पिक फलाहार व्रत भी रखा जा सकता है।

वट वृक्ष पूजा विधि
वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं वट वृक्ष के नीचे जाकर उसकी पूजा करती हैं।
पूजा में सबसे पहले वट वृक्ष पर जल चढ़ाया जाता है, फिर अक्षत, फूल, रोली, मौली, फल, मिठाई आदि से पूजा की जाती है।
वट वृक्ष की लाल या पीले धागे से सामान्यतः सात बार परिक्रमा की जाती है।
इसके बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है कि पति की आयु लंबी हो और दांपत्य जीवन सुखमय हो।
पूजा के अंत में सुहाग सामग्री ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान की जाती है।
कुछ महिलाएं मिट्टी से सावित्री-सत्यवान की मूर्ति बनाकर भी उनकी पूजा करती हैं और यमराज की भी पूजा करती हैं।
पूजा के बाद व्रत कथा सुनी जाती है।
यह भी देखें: वट सावित्री व्रत कथा
व्रत में प्रयुक्त सामग्री
व्रत में प्रयुक्त होने वाली मुख्य सामग्री हैं रोली, अक्षत चावल, सिंदूर, धूप, दीप, फूल, मिठाई, जल कलश, नारियल, मौली (कलावा), पीली चुनरी, पंचमेवा, फल, सुपारी, धूपबत्ती, नया सूती धागा (बरगद के पेड़ पर बांधने के लिए)।
इसके अलावा सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, आसन, पूजा की थाली, दीप और गंगाजल का भी प्रयोग किया जाता है।
ये सामग्री पूजा को संपूर्णता प्रदान करती हैं और भक्ति का प्रतीक होती हैं।
यदि पूजा सामग्री की व्यवस्था पहले से कर ली जाए तो व्रत की पूजा विधि निर्विघ्न संपन्न हो जाती है।
यदि मंदिर में बरगद का पेड़ उपलब्ध हो तो वहां जाकर पूजा करना श्रेष्ठ रहता है।
व्रत के लाभ और फल
वट सावित्री व्रत करने से महिलाओं को पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यह व्रत उनके वैवाहिक जीवन को स्थिरता, प्रेम और विश्वास से भर देता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
जिन महिलाओं का वैवाहिक जीवन परेशानियों से ग्रस्त है, उन्हें यह व्रत अवश्य रखना चाहिए।
यह व्रत मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ाता है।
साथ ही यह महिला के जीवन में आत्मविश्वास, समर्पण और धैर्य की भावना लाता है।
यह पर्व नारी शक्ति और उसके आध्यात्मिक संकल्प की भी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है।
अविवाहित लड़कियों के लिए उपाय
वैसे तो यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं के लिए है, लेकिन अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को करके अच्छे वर की कामना कर सकती हैं।
उन्हें व्रत के नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए और मन में ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था रखनी चाहिए।
व्रत रखने से पहले लड़कियों को अपने माता-पिता से अनुमति अवश्य लेनी चाहिए।
अविवाहित लड़कियां व्रत के दौरान फल खा सकती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करके अपने भावी जीवनसाथी के लिए प्रार्थना कर सकती हैं।
यह व्रत उन्हें आध्यात्मिक शक्ति, संयम और पारिवारिक मूल्यों की गहरी समझ देता है, जो आगे चलकर उनके जीवन में काम आता है।
व्रत के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां
वट सावित्री व्रत के दौरान कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए।
जैसे व्रत के दिन झूठ बोलने, क्रोध करने या विवाद करने से बचना चाहिए।
व्रत के दौरान केवल सात्विक भोजन करें और व्रत खोलते समय सबसे पहले पानी पिएं।
पूजन सामग्री की शुद्धता और सफाई का विशेष ध्यान रखें।
वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना मन में रखें।
वृक्ष की शाखाओं को न तोड़ें और पूजन में इस्तेमाल की गई वस्तुओं को वृक्ष की जड़ों में रखें।
व्रत के दिन किसी के प्रति कटु वचन या द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। यह दिन पूर्ण समर्पण और संयम का दिन है।

निष्कर्ष
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति और उनके प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह स्त्री की भावनात्मक और आध्यात्मिक शक्ति को भी दर्शाता है।
26 मई 2025 को आने वाला यह पावन दिन प्रत्येक विवाहित महिला को अपने पति और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करने का सुंदर अवसर प्रदान करता है।
यदि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक और नियमानुसार किया जाए तो निश्चित रूप से चमत्कारी फल प्राप्त होते हैं।
यह भी जाने: क्या 2025 में सोमवती अमावस्या और वट सावित्री एक ही दिन है?