वरुथिनी एकादशी की कथा
वरूथिनी एकादशी की कथा
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। यह सबसे शुभ और कल्याणकारी एकादशी है। वरुथिनी एकादशी की कथा इस प्रकार है।
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मानधाता नामक राजा राज करता था। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी था।
एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था तभी वहां एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा।
परंतु राजा घबराए नहीं और अपनी तपस्या में लीन रहा।
तपस्या धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी शुरू कर दी।
उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए। भगवान विष्णु राजा को भालू से बचाए।
वह जंगली भालू राजा के पैर को भालू पहले ही खा चुका था यह देख राजा अत्यंत शोकाकुल हुआ।
उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले हे वत्स- तुम शोक मत, करो तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखो व्रत रखकर मेरी वराह अवतार की पूजा करो।
उसके प्रभाव से तुम पुनः सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने जो तुम्हारा पर खाया है वह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध है।
भगवान के आगे अनुसार राजा मानधाता ने मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया और वरुथिनी एकादशी की कथा पढ़ी।
व्रत के प्रभाव से राजा पुनः ही सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
।।वरुथिनी एकादशी की कथा संपन्न हुई।।
।। जय श्री हरी विष्णू।।

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श्री विष्णू आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
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