हिंदू धर्म में वरूथिनी एकादशी को बेहद पवित्र माना जाता है।
यह एकादशी वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में आती है और इसका अर्थ है “रक्षक”।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और परेशानियों से रक्षा होती है।
वरूथिनी एकादशी विशेष रूप से वे लोग करते हैं जो मोक्ष, पापों से मुक्ति और सुखी जीवन के लिए व्रत रखते हैं।
इस लेख में आपको इस पवित्र दिन के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी – जिसमें व्रत विधि, कथा, नियम, धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व शामिल है।
वरूथिनी एकादशी क्या है?
‘वरूथिनी’ शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है “रक्षक”।
यह एकादशी साल की उन एकादशियों में से एक है जो विशेष रूप से जीवन को बढ़ाने और नकारात्मक शक्तियों से बचाने वाली मानी जाती है।
इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष की ओर बढ़ता है।
यह एकादशी चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि में सहायक मानी जाती है।
भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इसके महत्व के बारे में बताया था।
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2025 में वरुथिनी एकादशी कब है? (तिथि और मुहूर्त)
वर्ष 2025 में वरूथिनी एकादशी 24 अप्रैल, गुरुवार को थी।
इस दिन व्रत रखा जायेगा और पारण 25 अप्रैल को किया जायेगा।
पंचांग के अनुसार: वरूथिनी एकादशी तिथि 23 अप्रैल को शाम 4:43 बजे शुरू होंगी ।
एकादशी तिथि 24 अप्रैल को दोपहर 2:32 बजे समाप्त होंगी।
वरूथिनी एकादशी व्रत का पारण 25 अप्रैल को सुबह 6:14 से 8:47 बजे के बीच किया होंगी।
वरूथिनी एकादशी का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से वरूथिनी एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह एकादशी व्यक्ति को दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों कष्टों से मुक्ति दिलाती है।
इस दिन भगवान विष्णु को पंचामृत, तुलसी के पत्ते, पीले फूल, धूपबत्ती आदि से स्नान कराकर उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन व्रत रखने वाले और रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को न केवल पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कर्म सौ गुना फल देता है।
यह एकादशी विशेष रूप से मन, वाणी और कर्म की शुद्धि के लिए बहुत प्रभावी मानी जाती है।
व्रत और पूजा विधि
वरूथिनी एकादशी का व्रत सूर्योदय से पहले स्नान करके संकल्प लेने से शुरू होता है। इसके लिए निम्न विधि अपनाई जाती है:
- घर की साफ-सफाई करके पवित्र वातावरण बनाएं।
- सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएँ।
- भगवान को पंचामृत से स्नान कराएँ, फिर पीले फूल, तुलसी के पत्ते, चंदन, धूपबत्ती आदि अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या श्री विष्णु मंत्रों का जाप करें।
- पूरे दिन फलाहार या निर्जल व्रत रखें।
- रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागें।
- द्वादशी के दिन दान-पुण्य करें और व्रत खोलें।
एकादशी व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें (क्या करें और क्या न करें)
क्या करें:
- स्नान और पवित्रता: सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
- संकल्प लें: व्रत का विधिपूर्वक संकल्प लें – मन, वचन और कर्म से उसका पालन करने का निश्चय करें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें: श्री हरि की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएँ और पूजा करें।
- भजन-कीर्तन और जप करें: दिन भर विष्णु मंत्रों का जाप, भजन और पाठ करें।
- धार्मिक ग्रंथों का वाचन/श्रवण करें: गीता, विष्णु सहस्रनाम, भागवत आदि का पाठ करें।
- रात्रि जागरण: भजन और ध्यान करते हुए रात में जागें।
- दान करें: भोजन, वस्त्र, जल का घड़ा, दक्षिणा आदि दान करें।
क्या न करें:
- झूठ, क्रोध और निंदा से बचें।
- बाल कटवाना, शेविंग, नाखून काटना वर्जित है।
- लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा जैसे तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- चावल, उड़द, दाल, मूंगफली जैसे अनाज का सेवन न करें।
- अपशब्दों, कटु शब्दों का प्रयोग न करें और दूसरों को नुकसान न पहुँचाएँ।
- आलस्य न करें और इस दिन हर काम संयम, भक्ति और जागरूकता के साथ करें।
- तुलसी के पत्ते न तोड़ें, केवल पहले से तोड़े गए तुलसी के पत्तों का ही उपयोग करें।
वरुथिनी एकादशी और पापमोचन प्रभाव
इस एकादशी को विशेष रूप से पापमोचन एकादशी के समकक्ष माना जाता है।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
जो लोग अपने पूर्वजों की आत्मा या कर्मों की शांति के लिए कुछ करना चाहते हैं, उनके लिए भी यह दिन बहुत लाभकारी है।
यह व्रत हमारे भीतर छिपे अहंकार, लोभ, मोह और राग-द्वेष को समाप्त करता है।
इसके प्रभाव से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शुद्ध विचार और शांत मन की प्राप्ति होती है।
भगवान विष्णु की कृपा से व्रती के सभी दोष दूर हो जाते हैं और उसे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।

इस दिन दान और पुण्य का महत्व
वरुथिनी एकादशी के दिन दान विशेष रूप से फलदायी होता है।
इस दिन अन्न, वस्त्र, तांबा, सोना, छाता, फल, जल का घड़ा, दक्षिणा आदि दान करना चाहिए।
विशेष रूप से ब्राह्मणों, गायों और जरूरतमंदों को भोजन कराना बहुत पुण्यकारी होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन दिया गया दान सौ गुना फल देता है।
जो व्यक्ति स्वयं व्रत करने में असमर्थ है, वह भी इस दिन दान करके पुण्य कमा सकता है।
यज्ञ, हवन और भागवत कथा सुनना भी शुभ माना जाता है।
वरुथिनी एकादशी का ज्योतिषीय दृष्टिकोण
ज्योतिष के अनुसार एकादशी तिथि का संबंध चंद्रमा की स्थिति से होता है।
चंद्रमा का संबंध हमारे मन और भावनाओं से होता है, इसलिए एकादशी व्रत मन को शुद्ध करता है।
वरुथिनी एकादशी पर चंद्रमा की स्थिति ऐसी होती है कि इसे साधना और मानसिक स्थिरता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
इस दिन किए गए जप, तप, ध्यान और पूजा का प्रभाव सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक होता है।
यह तिथि ग्रह बाधाओं को शांत करने, खासकर शनि और राहु से संबंधित दोषों को कम करने के लिए भी प्रभावी मानी जाती है।
वरुथिनी एकादशी के विशेष कार्य और प्रभावी उपाय
वरुथिनी एकादशी पर किए गए विशेष कार्य और उपाय जीवन में सुख, समृद्धि और पापों के नाश का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
इस दिन सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पीले फूल, तुलसी के पत्ते, पंचामृत और घी का दीपक अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और उसकी सात परिक्रमा करें।
जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्य चीजें दान करें।
काले तिल, चांदी या गाय का दान करने से विशेष पुण्य मिलता है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और कन्याओं को भोजन कराने से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।
आर्थिक संकट से मुक्ति पाने के लिए श्री हरि को मिश्री और चने का भोग लगाएं।
ये उपाय जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

निष्कर्ष
वरूथिनी एकादशी एक पवित्र पर्व है जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शुद्धता का माध्यम भी है।
भगवान विष्णु की कृपा पाने, पापों से मुक्ति पाने और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए यह व्रत बहुत कारगर है।
यदि इसका पालन श्रद्धापूर्वक और नियमित रूप से किया जाए तो यह जीवन को शुभता, शांति और मोक्ष की ओर ले जाता है।