वैशाख पूर्णिमा का त्योहार वर्ष 2025 में 12 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को आता है। आइए जानें वैशाख पूर्णिमा 2025 की तिथि, व्रत विधि,दान, कथा, और व्रत का महत्व।
हिंदू धर्म में वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। इसे सत्यविनायक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
वैशाख पूर्णिमा 2025 का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में वैसाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है। वैशाख पूर्णिमा पर धर्मराज की पूजा करने का भी प्रचलन है। माना जाता है कि इस दिन धर्मराज की उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत रखा जाए, तो जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
कहा जाता है कि इस व्रत को करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और व्यक्ति को आरोग्यता व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
चंद्रमा की पूजा
इस दिन चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। चंद्र देव को अर्घ्य देने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में शांति का वास होता है।
वैशाख पूर्णिमा 2025 पर दान का महत्व
इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से अन्न, वस्त्र, जल, और धन का दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। बैसाख पूर्णिमा पर दान करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
बैसाख पूर्णिमा पर क्या करें?
- स्नान और पूजा
प्रातःकाल पवित्र नदी, तालाब, या किसी सरोवर में स्नान करें। स्नान के बाद भगवान विष्णु और धर्मराज की पूजा करें। - सत्यविनायक व्रत रखें
इस दिन सत्यविनायक व्रत का पालन करें और भगवान से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। - दान-पुण्य करें
भोजन, वस्त्र, जल आदि का दान करें। जरूरतमंदों की सहायता करना इस दिन अत्यंत फलदायी माना गया है। - भगवद् कथा का श्रवण
इस दिन श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना भी शुभ होता है।
बैसाख पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
वर्ष 2025 में वैशाख पूर्णिमा का पर्व सोमवार, 12 मई को मनाया जाएगा।
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 11 मई 2025 को रात 8:04 बजे।
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 मई 2025 को रात 10:28 बजे।
वैशाख पूर्णिमा 2025 पर स्नान और सूर्य देव की पूजा
पवित्र स्नान का महत्व
वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी, सरोवर, कुएं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें और सूर्य मंत्र का जाप करें।
सूर्य मंत्र:
“ॐ घृणि सूर्याय नमः”
व्रत का संकल्प लें
स्नान के बाद पक्ष व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें।
धर्मराज की पूजा और दान का महत्व
धर्मराज की पूजा
इस दिन भगवान धर्मराज की पूजा करने से पुण्य फल प्राप्त होता है। पूजा में पानी से भरा हुआ घड़ा और थाल अर्पित करें। यह दान गाय दान के समान फलदायी माना गया है।
तिल और गुड़ का दान
जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को तिल और गुड़ का दान करें। यह पापों का नाश करता है और जीवन में शुभता लाता है।
तर्पण का महत्व
वैशाख पूर्णिमा पर तिल के साथ पितरों का तर्पण करें। इससे पूर्वजों को शांति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
वैशाख पूर्णिमा 2025 व्रत और नियम
व्रत कैसे करें?
- इस दिन उपवास रखें।
- केवल एक बार भोजन करें।
- भगवान विष्णु की आराधना करें और भगवद्गीता का पाठ करें।
व्रत के लाभ
इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और जीवन में आरोग्य, समृद्धि और सुख प्राप्त होता है।
व्रत से होने वाले लाभ
- अखंड सौभाग्य की प्राप्ति।
- धन और संपत्ति में वृद्धि।
- संतान की रक्षा।
- भगवान शिव के प्रति मनुष्य की भक्ति में वृद्धि।
वैशाखपूर्णिमा 2025 पर क्या करें?
- भगवान विष्णु की पूजा करें
घर में तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए भोग लगाएं। - चंद्रमा को अर्घ्य दें
रात को चंद्रमा को जल अर्पित करें और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करें। - पूर्णिमा व्रत का पालन करें
श्रद्धा और भक्ति के साथ 32 पूर्णिमा व्रत का पालन करें। इस व्रत से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। - दान-पुण्य करें
तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न और जल का दान करें। - पितरों का तर्पण
तिल के जल से तर्पण करें। यह पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। - धर्मकार्य करें
जरूरतमंदों को भोजन कराएं और गौ सेवा करें।
वैशाख पूर्णिमा 2025: द्वापर युग की पौराणिक कथा
यशोदा जी का प्रश्न
द्वापर युग की एक कथा के अनुसार, माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे कृष्ण, तुम इस संसार के रचयिता हो। मुझे ऐसा व्रत बताओ जिससे इस नश्वर संसार में कोई भी स्त्री विधवा न हो और सभी मनुष्यों की इच्छाएं पूर्ण हों।”
भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे माते, तुमने मुझसे अत्यंत सुंदर प्रश्न किया है। मैं तुम्हें एक ऐसा व्रत बताता हूं जो सभी मनुष्यों की इच्छाओं को पूर्ण करेगा।”
व्रत का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि 32 पूर्णिमा व्रत का पालन करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य, धन-संपत्ति और संतान का संरक्षण प्राप्त होता है। यह व्रत महिलाओं को दीर्घायु सौभाग्य का आशीर्वाद देता है।
माता यशोदा और भगवान श्रीकृष्ण का संवाद
माता यशोदा का प्रश्न
यशोदा माता ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे कृष्ण, यह बताओ कि इस व्रत को सबसे पहले इस नश्वर संसार में किसने किया था?”
भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे माता, इस व्रत को सबसे पहले राजा चंद्रहास के राज्य में स्थित एक सुंदर नगरी कार्तिक में एक ब्राह्मण द्वारा किया गया था।”
ब्राह्मण धनेश्वर और उनकी समस्या
धनेश्वर और उनकी पत्नी रूपति
कार्तिक नगरी में धनेश्वर नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी रूपति एक अत्यंत सुंदर और सुशील महिला थीं। उनके घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण वे दोनों अत्यंत दुखी रहते थे।
योगी का आगमन
एक दिन उस नगरी में एक योगी का आगमन हुआ। वह योगी हर घर से भिक्षा मांगते थे, लेकिन उन्होंने धनेश्वर और रूपति के घर से कभी भिक्षा नहीं ली। योगी भिक्षा लेकर गंगा के किनारे जाकर उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करते थे।
धनेश्वर ने योगी को भिक्षा ग्रहण करते देखा और वे उनकी यह बात समझ नहीं पाए। उन्होंने योगी से पूछा, “महाराज, आप हर घर से भिक्षा लेते हैं, लेकिन मेरे घर से क्यों नहीं लेते?”
योगी का उत्तर
योगी ने उत्तर दिया, “मैं पापियों के घर से भिक्षा नहीं लेता। तुम्हारे घर में कोई संतान नहीं है, और यह पाप का परिणाम है। इस कारण मैं तुम्हारे घर से भिक्षा नहीं ले सकता।”
धनेश्वर योगी की बात सुनकर बहुत दुखी हो गए। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, यदि यह सच है तो कृपा करके मुझे इसका समाधान बताएं। मैं इस दुख से अत्यंत व्यथित हूं। मेरे पास धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन संतान के बिना मेरा जीवन अधूरा है। कृपया मुझ पर दया करें।”
समाधान की याचना
धनेश्वर ने योगी के चरणों में गिरकर कहा, “हे महात्मा, आप सर्वज्ञ हैं। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताएं जिससे मुझे संतान की प्राप्ति हो।”
योगी ने उनकी करुणा देखकर उन्हें एक विशेष व्रत का सुझाव दिया, जिसे करने से उनकी समस्या का समाधान हुआ।
धनेश्वर ने योगी के चरणों में गिरकर कहा, “हे महात्मा, कृपया मेरा दुख हर लें। आप सभी कुछ करने में सक्षम हैं।” योगी ने उनकी करुणा देखकर कहा, “तुम चंडी देवी की उपासना करो।”
चंडी देवी की उपासना और व्रत
ब्राह्मण धनेश्वर ने घर आकर अपनी पत्नी को यह बात बताई। पत्नी ने उन्हें व्रत के महत्व को समझते हुए घर की जिम्मेदारी संभालने का आश्वासन दिया। धनेश्वर स्वयं जंगल चले गए, जहां उन्होंने चंडी देवी की पूजा आरंभ की और व्रत रखा।
16वें दिन चंडी देवी ने धनेश्वर के स्वप्न में प्रकट होकर कहा, “हे धनेश्वर, तुम्हें एक पुत्र प्राप्त होगा, लेकिन वह 16 वर्ष की आयु में मर जाएगा। यदि तुम और तुम्हारी पत्नी मिलकर 32 पूर्णिमा व्रत को श्रद्धा और विधिपूर्वक पूरा करते हो, तो तुम्हारा पुत्र दीर्घायु होगा। इसके साथ, शिव जी की आराधना करो और पूर्णिमा के दिन 32 दीप जलाओ।”
चमत्कारी आम का वृक्ष
चंडी देवी ने धनेश्वर से कहा, “यहां पास में एक आम का पेड़ है। कल सुबह तुम उस पेड़ पर चढ़कर फल तोड़कर घर ले आओ। वह फल तुम्हारे जीवन में शुभता लाएगा।”
धनेश्वर ने स्वप्न से जागने के बाद आम का वृक्ष खोजा। वहां उन्होंने एक सुंदर आम का पेड़ देखा, जिस पर बहुत सुंदर फल लगे हुए थे।
गणेश जी की कृपा से सफलता
धनेश्वर ने आम के पेड़ पर चढ़ने और फल तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। तब उन्होंने भगवान गणेश की प्रार्थना की।
भगवान गणेश की कृपा से धनेश्वर को आम के फल प्राप्त हुए। वे फल लेकर वे घर लौटे। धनेश्वर ने अपनी पत्नी को यह कहानी सुनाई और दोनों ने मिलकर व्रत और पूजा का पालन करना शुरू किया।
शिवजी की पूजा और पुत्र रत्न की प्राप्ति
शिवजी की आराधना
धनेश्वर और उनकी पत्नी ने 32 पूर्णिमा व्रत किया और भगवान शिव की पूजा में 32 दीप जलाए। उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया
शिवजी की कृपा से धनेश्वर की पत्नी गर्भवती हुईं और समय आने पर उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
आम का फल और गर्भधारण
धनेश्वर ने आम का फल तोड़कर अपनी पत्नी को दिया। उनकी पत्नी ने देवी के निर्देशानुसार उस फल का सेवन किया और गर्भवती हो गईं। देवी की कृपा से उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम देवीदास भवानी रखा गया। देवी की कृपा से बालक पढ़ाई में भी बहुत बुद्धिमान था।
32 पूर्णिमा व्रत और चिंता
देवी के आदेशानुसार, धनेश्वर और उनकी पत्नी ने 32 पूर्णिमा व्रत का पालन किया ताकि उनके पुत्र की आयु 16 वर्ष से अधिक हो सके।
जब देवीदास की आयु 16 वर्ष हुई, तो धनेश्वर को इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं उनका पुत्र इस वर्ष दिवंगत न हो जाए। उन्होंने सोचा कि यदि यह घटना उनके सामने हुई, तो वे इसे सहन नहीं कर पाएंगे।
काशी भेजने का निर्णय
धनेश्वर ने अपने पुत्र देवीदास को उसके मामा के साथ एक वर्ष के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने मामा से कहा कि देवीदास को पढ़ाई के लिए काशी ले जाएं और उसे कभी अकेला न छोड़ें। देवीदास को घोड़े पर बिठाकर मामा के साथ विदा कर दिया गया।
धनेश्वर और उनकी पत्नी ने देवी मां की भक्ति करते हुए 32 पूर्णिमा व्रत का पालन जारी रखा और अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की।
विवाह की अनोखी घटना
यात्रा के दौरान मामा और भांजे एक गांव में रात बिताने के लिए रुके। उस गांव में एक सुंदर ब्राह्मण कन्या का विवाह होने वाला था।
जब कन्या ने देवीदास को देखा, तो उसने अपने मन में उन्हें पति के रूप में स्वीकार कर लिया। उसने देवीदास से विवाह करने की बात कही।
देवीदास ने कहा, “मैं आपसे बड़ा हूं। यह उचित नहीं होगा।” लेकिन कन्या ने उत्तर दिया, “स्वामी, आपकी आयु चाहे जो भी हो, मैं आपकी धर्मपत्नी बनना चाहती हूं।”
कन्या के आग्रह और भक्ति को देखकर देवीदास ने विवाह के लिए सहमति दी। इसके बाद दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
भजन और वचन
देवीदास और उनकी पत्नी ने रातभर भगवान का भजन किया। सुबह होते ही देवीदास ने अपनी पत्नी को एक अंगूठी और एक रूमाल दिया जिसमें तीन सांपों की आकृति बनी हुई थी। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,
“तुम एक फूलों का बगीचा बनाओ जो मेरे जीवन और मृत्यु का साक्षी बने। जब मेरी आयु समाप्त होगी, तो ये फूल मुरझा जाएंगे। यदि पेड़ फिर से हरे हो जाएं, तो समझ लेना कि मैं जीवित हूं।”
देवीदास की काशी यात्रा
देवीदास काशी में पढ़ाई के लिए गए। कुछ समय तक सब कुछ ठीक चला, लेकिन तभी एक सांप उनके पास आया और उन्हें काटने का प्रयास किया।
सांप, देवीदास की मां द्वारा किए गए 32 पूर्णिमा व्रत के प्रभाव के कारण, उन्हें काटने में असमर्थ रहा। वह सांप देवीदास को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका।
काल का आगमन और शिव-पार्वती की कृपा
काल का प्रयास
इसके बाद स्वयं काल वहां पहुंचे और देवीदास की आत्मा को लेने का प्रयास करने लगे। काल के प्रभाव से देवीदास बेहोश होकर गिर पड़े।
भगवान शिव और मां पार्वती वहां प्रकट हुए। मां पार्वती ने भगवान शिव से कहा,
“हे महादेव, देवीदास की मां ने 32 पूर्णिमा व्रत का पालन किया है। उनकी भक्ति को देखते हुए, आप इन्हें जीवनदान दें।”
भगवान शिव ने देवीदास को नया जीवन प्रदान किया और काल को वहां से वापस लौट जाने का आदेश दिया।
पत्नी की प्रतीक्षा और सत्य का खुलासा
दूसरी ओर, देवीदास की पत्नी अपने बगीचे को देखकर प्रतीक्षा कर रही थी। जब उसने देखा कि फूल मुरझा गए हैं, तो वह स्तब्ध रह गई। लेकिन थोड़ी देर बाद जब पेड़ फिर से हरे-भरे हो गए, तो उसे यह समझ आ गया कि उसके पति जीवित हैं।
देवीदास भगवान शिव की कृपा से पुनः स्वस्थ हो गए और अपने जीवन की ओर लौट आए। उनकी पत्नी ने भगवान का धन्यवाद करते हुए उनकी भक्ति और विश्वास को और मजबूत किया।
देवीदास की मां ने बगीचे के फूलों को फिर से हरा-भरा देखकर अपने पिता से कहा,
“पिताजी, मेरा पति अभी जीवित है। आपने 16 वर्ष की आयु में धुंधिया द्वारा उसकी मृत्यु की बात कही थी, लेकिन वह अभी जीवित है।”
काशी से लौटना
देवीदास अपने मामा के साथ काशी से वापस लौटे। उनके ससुर, जो उन्हें ढूंढने के लिए जाने वाले थे, यह सुनकर खुश हो गए।
देवीदास और उनकी पत्नी को देखकर ससुराल के लोग आनंदित हुए और सभी ने यह स्वीकार किया कि देवीदास और उनकी पत्नी एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।
ससुराल में सभी ने देवीदास और उनकी पत्नी का स्वागत किया। कुछ दिनों बाद देवीदास अपनी पत्नी और मामा के साथ अपने शहर लौटने के लिए रवाना हुए।
गांव में स्वागत और परिवार की खुशी
जब देवीदास अपने गांव पहुंचे, तो गांव के लोगों ने उन्हें और उनकी पत्नी को देखकर खुशी जताई। उन्होंने यह सूचना उनके माता-पिता तक पहुंचाई कि उनका पुत्र अपनी पत्नी और मामा के साथ लौट रहा है।
यह सुनकर देवीदास के माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने बेटे और बहू के स्वागत के लिए बड़े उत्साह के साथ तैयारियां कीं। पूरे परिवार और गांव में उत्सव का माहौल छा गया।
श्रीकृष्ण का संदेश
तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा,
“धनेश्वर को 32 पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति या स्त्री को न केवल पुत्र प्राप्ति होती है, बल्कि कई जन्मों तक संतान सुख मिलता है।”
पापों से मुक्ति
श्रीकृष्ण ने आगे कहा,
“जो कोई इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करता है, वह अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता है और सुख-समृद्धि का अनुभव करता है।”
निष्कर्ष
यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति, व्रत और भगवान में अटूट विश्वास से जीवन के सभी कष्टों को दूर किया जा सकता है। 32 पूर्णिमा व्रत की महिमा अपार है। यह न केवल जीवन को संवारता है, बल्कि मृत्यु को भी परास्त करने की शक्ति देता है।