वैभव लक्ष्मी व्रत कथा एवं आरती
वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में शीला नाम की औरत अपने पति के साथ रहती थी। शीला धार्मिक स्वाभाव की थी और वह भगवान की कृपा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था उसी में संतुष्ट रहा करती थी।
शहरी जीवन वह जरुर व्यतीत कर रही थी परंतु शहर के जीवन का रंग उस पर नहीं चढ़ा था।
भजन कीर्तन भक्ति भाव और परोपकार का भाव उसमें अभी भी था। वह अपने पति और अपनी गृहस्थी में खुश थी।
आस-पड़ोस के लोग भी उसकी तारीफ किया करते थे। देखते-देखते समय बदला और उसका पति कुसंगत का शिकार हो गया।
वह शीघ्र अमीर होने के ख्वाब देखने लगा।
अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच में गलत मार्ग पर चल पड़ा।
जीवन के रास्ते से भटकने के कारण उसकी स्थिति भिखारी जैसी हो गई। बुरे मित्रों के साथ रहने के कारण उसे शराब और जुआ जैसे गलत कार्यों की लत लग गई।
वो गंदी आदतों में उसने अपना सारा धन गवा दिया। अपने घर और अपने पति की यहां स्थिति देखकर शीला बहुत दुखी होने लगी परंतु वह भगवान पर आस्था रखने वाली स्त्री थी।
उसे अपने भगवान पर पूरा विश्वास था। एक दिन दोपहर के समय उसके घर के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी।
दरवाजा खोलने पर सामने पड़ोस की माताजी खड़ी थी। माताजी के चेहरे पर एक विशेष तेज था।
वह करुणा और स्नेह की देवी नजर आ रही थी। शीला माताजी को अंदर ले आई और बैठने को कहा।
माताजी बोली-क्यों शीला मुझे पहचाना नहीं हर शुक्रवार को, लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन कीर्तन के समय मैं वही आई थी। इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी।
फिर माजी बोली तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आई तो मैं तुम्हें देखने चली आई।
मां जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का मन पिघल गया,मां जी के व्यवहार से शीला को काफी सुकून मिला।
और सुख और सुकून की आस में उसने मां जी को सारी कहानी का सुनाई।
कहानी सुनकर मांजी ने कहां मां लक्ष्मी तो प्रेम और करुणा की अवतार है।
तू धैर्य रखकर माता लक्ष्मी का व्रत कर इसे सब कुछ ठीक हो जाएगा। शीला के पूछने पर मां जी ने उसे व्रत की सारी विधि बताई।
माजी ने कहा, बेटी मां लक्ष्मी का यह व्रत बहुत सरल है। इस व्रत को वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है।
यह व्रत करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। और वह सुख समृद्धि और यश प्राप्त करता है। शीला यह सुनकर आनंदित हो गई।
उसने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई नहीं था। वह सोचने लगी कि यह माजी कहा गई।
वह माताजी और कोई नहीं साक्षात माता लक्ष्मी थी।
दूसरे दिन शुक्रवार था सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने माता जी की बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया।
आखिरी में प्रसाद का भोग लगाया।
यह प्रसाद शीला ने सबसे पहले अपने पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया।
उसने शीला को मारा भी नहीं। और सत्या भी नहीं। उसके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई।
शीला ने पूरी श्रद्धा और भक्ति से 21 शुक्रवार तक वैभव लक्ष्मी व्रत किया।
21 में शुक्रवार को माझी के मुताबिक उद्यापन विधि करके साथ स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत के साथ पुस्तके उपहार में दी।
फिर माता लक्ष्मी के धन लक्ष्मी स्वरूप की मूर्ति का वंदन करके मां से मन ही मां प्रार्थना करने लगे।
हे माता लक्ष्मी मैं आपका वैभव लक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मांगी थी।
वह व्रत आज पूर्ण किया है मेरी हर विपत्ति दूर करो और हमारा सबका कल्याण करो।
जिसे संतान न हो उसे संतान दो। सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य दो।
कुवारी कन्याओं को मनपसंद वर दो।
यह व्रत जो भी स्त्री करें उसकी सारी विपत्तियां दूर करो अथवा सभी को सुख संपत्ति प्रदान करो।
ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धन लक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके अपना काम करने लगा।
उसने तुरंत ही शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन संपत्ति की बाढ़ सी आ गई और पहले जैसी सुख शांति बन गई।
।। वैभव लक्ष्मी व्रत कथा समाप्त।।
यह भी देखे: वैभव लक्ष्मी व्रत संपूर्ण जानकारी
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माँ महालक्ष्मी आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। मैया तुम ही जग-माता।।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। मैया सुख सम्पत्ति दाता॥
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। मैया तुम ही शुभदाता॥
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। मैया सब सद्गुण आता॥
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। मैया वस्त्र न कोई पाता॥
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। मैया क्षीरोदधि-जाता॥
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। मैया जो कोई जन गाता॥
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता। ऊं जय लक्ष्मी माता।।