हिंदू धर्म में त्रिदेवों- ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृष्टि की तीन मूल शक्तियों का प्रतीक माना जाता है।
ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं, विष्णु पालनकर्ता हैं और शिव संहारक हैं।
ये तीनों देवता एक ही परम तत्व के अलग-अलग रूप माने जाते हैं, जो सृष्टि के चक्र को संतुलित रखते हैं।
इनके गुण, कार्य और स्वभाव अलग-अलग हैं, लेकिन एक-दूसरे के पूरक हैं।
इस लेख में हम त्रिदेवों की शक्तियों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे- उनकी उत्पत्ति, कार्य, रूप, प्रतीक और पूजा पद्धति के आधार पर।
त्रिदेवों की उत्पत्ति और सिद्धांत
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश परम ब्रह्म या ‘परमात्मा’ की तीन शक्तियों के रूप में प्रकट हुए हैं।
ब्रह्मा को ‘सृजन’ का देवता कहा जाता है, जिनसे सृष्टि की शुरुआत हुई।
विष्णु ‘संरक्षण’ के देवता हैं, जो जीवन चक्र को बनाए रखते हैं।
शिव या महेश ‘विनाश’ के देवता हैं, जो विनाश के माध्यम से पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
कुछ ग्रंथों में त्रिदेवों को ‘सत्व’, ‘रजस’ और ‘तमस’ गुणों से जोड़ा गया है:
ब्रह्मा = रजोगुण
विष्णु = सत्वगुण
शिव = तमोगुण
इन गुणों का संतुलन ब्रह्मांड को चलाता रहता है।

रूप और प्रतीकवाद
ब्रह्मा के चार मुख हैं, जो चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे अपने चार हाथों में जल का कलश, वेद, माला और कमल धारण करते हैं। उनका वाहन हंस है, जो ज्ञान का प्रतीक है।
विष्णु की चार भुजाएँ हैं और वे शंख, चक्र, गदा और कमल धारण करते हैं। उनका वाहन गरुड़ है। वे क्षीरसागर में शेषनाग पर सोते हैं।
शिव की तीन आँखें हैं, जटाएँ हैं और वे अपने सिर पर गंगा को धारण करते हैं।
उनका वाहन नंदी बैल है, और वे त्रिशूल, डमरू और रुद्राक्ष धारण करते हैं।
उनके रूपों में आध्यात्मिक प्रतीक हैं – जैसे ब्रह्मा का कमल ‘सृजन’ का प्रतीक है, विष्णु का चक्र ‘धर्म’ का प्रतीक है, और शिव का त्रिशूल ‘इच्छा, ज्ञान और क्रिया’ का प्रतीक है।
त्रिदेवों के कार्य और भूमिकाएँ
ब्रह्मा ब्रह्मांड के निर्माता हैं। उन्होंने मनु, सप्तऋषियों और प्रजापतियों को उत्पन्न किया, जिससे मानव सभ्यता की शुरुआत हुई।
विष्णु ब्रह्मांड की रक्षा करते हैं। जब भी धर्म का ह्रास होता है, वे अवतार लेते हैं और अधर्म का नाश करते हैं – जैसे राम, कृष्ण, नरसिंह, आदि।
शिव संहारक हैं, लेकिन उनका विनाश विनाश के लिए नहीं, बल्कि सृष्टि के पुनर्निर्माण के लिए है। वे तांडव नृत्य के माध्यम से ब्रह्मांड को संतुलित करते हैं।
तीनों की भूमिकाएं एक चक्र में चलती हैं: सृजन (ब्रह्मा) → संरक्षण (विष्णु) → विनाश (शिव) → पुनर्निर्माण।
त्रिदेवों की पूजा और पूजा विधि
ब्रह्मा की पूजा बहुत कम की जाती है। उनका प्रसिद्ध मंदिर केवल पुष्कर (राजस्थान) में है।
विष्णु की पूजा बड़े पैमाने पर की जाती है। वैष्णव संप्रदाय उनके राम और कृष्ण रूपों की पूजा करते हैं।
विष्णु सहस्रनाम, व्रत और एकादशी उनके लिए विशेष माने जाते हैं।
शिव की पूजा लिंग के रूप में की जाती है।
रुद्राभिषेक, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत और सावन माह में उनकी विशेष पूजा की जाती है।
तीनों की पूजा अलग-अलग तरीकों से की जाती है, लेकिन उद्देश्य एक ही है- आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष।
त्रिदेवों की शक्तियाँ (शक्ति रूप)
ब्रह्मा की शक्ति सरस्वती हैं, जो ज्ञान, कला और संगीत की देवी हैं।
विष्णु की शक्ति लक्ष्मी हैं, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं।
शिव की शक्ति पार्वती (या दुर्गा/काली) हैं, जो शक्ति, भक्ति और विनाश का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इन शक्तियों के बिना त्रिदेव अधूरे हैं।
शक्ति और शिव के बीच का संबंध इस बात पर जोर देता है कि ऊर्जा और चेतना दोनों ही आवश्यक हैं।
त्रिदेव और वेदांत दर्शन
वेदांत के अनुसार, त्रिदेव एक ब्रह्म की तीन अभिव्यक्तियाँ हैं:
ब्रह्मा = सृजन
विष्णु = पालन
शिव = विनाश
अद्वैत वेदांत उन्हें ‘माया’ के कार्य में लगे ब्रह्म के प्रतिबिंब मानता है।
इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि ये सभी एक ही ‘परम तत्व’ के विभिन्न कार्य हैं, और अंततः सब कुछ ब्रह्म है।
यह दृष्टिकोण हमें यह समझने की ओर ले जाता है कि त्रिदेव की शक्तियाँ, यद्यपि भिन्न हैं, एक ही मूल स्रोत से उत्पन्न होती हैं।
निष्कर्ष
त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – हिंदू धर्म की नींव हैं।
उनकी शक्तियाँ, कार्य, स्वरूप और उपासना पद्धति अवश्य भिन्न हैं, किन्तु वे एक ही ब्रह्म के विभिन्न रूप हैं।
ब्रह्मा के बिना सृष्टि संभव नहीं, विष्णु के बिना पालन असंभव और शिव के बिना पुनर्निर्माण अधूरा है।
तीनों का संतुलन ही जीवन चक्र को सुचारू रूप से चलाता रहता है।
त्रिदेव की यह अवधारणा न केवल धार्मिक आस्था को गहराई प्रदान करती है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में भी सहायक है।