तिल चौथ जिसे माघी चौथ या संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है,भगवान गणेश का व्रत है और माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
इस उपवास से संकटों को दूर करने, सुख-समृद्धि को बढ़ाने और मनोकामनाओं को पूरा करने का काम होता है।
भगवान गणेश की पूजा से जीवन के रुकावटें दूर हो जाती हैं और मानसिक शांति मिलती है।
उपवासी व्रती दिनभर उपवास करता है और चंद्रदर्शन के बाद उपवास तोड़ता है।
गणेश जी के मंत्र जाप और मोदक-दूर्वा के अर्पण से विशेष लाभ मिलता है।
इस व्रत को आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और पारिवारिक समृद्धि के लिए शुभ माना जाता है।
तिल चौथ की व्रत कथा पढ़ने से पहले विधिपूर्वक भगवान गणेश का पूजन करें फिर कथा प्रारंभ करें।
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तिल चौथ व्रत कथा
एक शहर में एक देवरानी और जेठानी रहती थी।जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की सच्ची भक्ति थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर भेजता था। वह अक्सर बीमार रहता था। देवरानी अपने जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी उसे बचा हुआ खाना पुराने कपड़े दे देती थी, इसी से परिवार चल रहा था। माघ के महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया।
उसने पांच आने का तेल और गुड़ लाकर तिलकुट बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और तिलकुट छीके पर रख दिया। उसने सोचा कि वह चांद उगने के बाद ही कुछ खायेगी तिल चौथ में चांद को अर्घ देकर ही खाया जाता है। कथा सुनकर वह अपनी जेठानी के यहां चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा, तो बच्चे बोले, चाची मां ने व्रत किया है और वह भूखी है जब वह खायगी तब हम भी खाएंगे। फिर उसने अपनी जेब से पूछा, और खाना खाने को कहा तो जेठ बोले, कि मैं अकेला खाना नहीं खाऊंगा, जब चांद निकलेगा सब खाएंगे तभी खाना खाऊंगा।अब उसने अपनी जेठानी से कहा कि, मुझे कुछ खाना दे दो ताकि मैं घर चली जाऊं।
जेठानी ने कहा, कि आज तो किसी ने अभी तक खाना नहीं खाया है तुम्हें कैसे दे दूं, तुम सवेरे ही खाना ले जाना। इधर देवरानी के घर पर पति और बच्चे सब आस लगाए बैठे थे, कि आज तो त्यौहार है इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा परंतु जब बच्चों को पता चल क्यों नहीं रोटी भी नहीं मिलेगी तो वह रोने लगे। उसके पति को बहुत गुस्सा आया और वह कहने लगा सारे दिन काम करके दो रोटी भी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती है। पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से मारा।धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा, वह बेचारी गणेश जी को याद करती रह गई और रोते-रोते पानी पीकर सो गई।
उसी रात गणेश जी देवरानी के सपने में आए। और कहने लगे “धोवने मारी पाटे मारी सो रही है या जाग रही है? ”, वह बोली आधी सो रही हूँ और आधे जाग रही हूँ। गणेश जी बोले,- मुझे भूख लग रही है कुछ खाने को दे दो। देवरानी बोली क्या दूं मेरे घर में तो अन्य का एक दाना भी नहीं है। जेठानी बचा कुचा खाना देती थी आज वह भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिलकुट छीके पर रखा है वही खा लो।
तिलकुट खाने के बाद गणेश जी बोले,-धोवने मारी पाटे मारी निमटाई लगी है कहां नीमटे ? वह बोली यह घर है जहां इच्छा हो वही नीमट लो। फिर गणेश जी बोले अब पोछू कहां? देवरानी को बहुत गुस्सा आया की कब से तंग किया जा रहे हैं। वह बोली मेरे सर से पूछ लो और कहां पूछोगे। सुबह जब देवरानी उठी और तो यह देखकर हैरान रह गई पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा है। सर पर जहां विनायक जी पोछनी कर गए थे वहां हीरे के तक वह बिंदी जगमगा रहे थे।
उस दिन देवरानी जेठानी के घर काम करने नहीं गई। बड़ी देर तक रह देखने के बाद जेठानी ने बच्चों को देवरानी को बुलाने के लिए भेजा। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए आज शायद देवरानी बुरा मान गई है। बच्चे बुलाने गए और बोले,चाची,चलो मां ने बुलाया है सारा काम पड़ा है देवरानी ने जवाब दिया,अब उसकी जरूरत नहीं है क्योंकि घर में सब भरपूर है गणेश जी के आशीष से।देवरानी ने कहा कि अपनी मां से कहना कि अब वही आकर हमारे घर कम कर जाए। बच्चों ने घर जाकर जब माँ को बताया कि चाची का घर हीरे मोतियों से जगमगा उठा है।
जेठानी दौड़ते हुए देवरानी के घर गई और पूछी कि यह सब हुआ कैसे? देवरानी सच-सच जेठानी को सब कुछ बता दी। की कैसे गणेश भगवान उसके स्वप्न में आये और कैसे उसे उनकी कृपा से यह सब प्राप्त हुआ। घर लौट कर जेठानी अपने पति से कहने लगी कि आप मुझे धोवने और पाटे से मारो। उसका पति बोला कि भले मानस की तरह मैंने तुम पर कभी हाथ नहीं उठाया। मैं धोवने और पाटे से तुम्हें कैसे मार सकता हूं भला।
वह नहीं मानी और जिद करने लगी मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा। उसने ढेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और ठीक है पर रख कर सो गई। रात को गणेश भगवान उसके सपने में आए और कहने लगे-भूख लगी है क्या खाऊं? जेठानी ने कहा कि गणेश जी महाराज, मेरी देवरानी के यहां तो अपने सुख तिलकुटा खाया था, मैंने तो झड़ने घी से बना हुआ चूरमा आपके लिए छीके पर रखा है। फल और मेरे में भी रखे हैं जो चाहे खा लीजिए।
बाल स्वरूप गणेश जी बोले अब नीमटे कहां? जेठानी बोली- उसके यहां तो टूटी-फूटी झोपड़ी थी मेरे यहां तो कंचन के महल है जहां चाहे नीमट लो। फिर गणेश जी बोले अब पूछो कहां? मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोछ लो। धन की भूखी जेठानी सुबह जल्दी उठ गई। सोचा घर हीरे ज़वारात से भरा होगा पर देखा तो पूरे घर में गंदगी फैली हुई थी, और दुर्गंध आ थी। उसने कहा है गणेश जी महाराज यह आपने क्या किया मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे। जेठानी ने घर की सफाई करने की बहुत कोशिश की परंतु गंदगी और ज्यादा फैलती गई।
जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा। परेशान होकर जेठानी चौथ के गणेश जी से मदद की विनती करने लगी गणेश जी ने कहा देवरानी से जलन के कारण तूने जो किया था यह उसी का फल है। आधा धन उसे देगी तभी ऐसा होगा। उसने आधा धन बांट दिया, किंतु मोरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाड़ रखी थी। उसने सोचा यह किसी को पता नहीं चलेगा और उसे धन को नहीं बनता।
उसने कहा है गणेश जी अब तो यह धन बट गया है। वे बोले पहले चूल्हे के नीचे गाड़ी हुई मोहरों की हांडी और तक में रखी हुई सुई का भी बंटवारा कर। इस प्रकार गणेश जी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा कर अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज जैसे अपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले सुनने वाले और ओमकारा भरने वाले पर कृपा करना। किंतु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को ना देना।
।।बोलो का बाल गणेश जी महाराज की जय।।
।।बोलो चौथ माता की जय।।
।।तिल चौथ व्रत कथा समाप्त।।
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