माघ माह का प्रत्येक दिन भगवान सूर्य की आराधना के लिए विशेष महत्व रखता है। इस माह में आने वाली सप्तमी तिथि को भानु सप्तमी और सूर्य सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य को प्रसन्न करने, पापों का नाश करने, और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का उत्तम समय है।
भगवान श्रीराम ने भी लंका पर चढ़ाई से पहले आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ किया और सूर्य सप्तमी का व्रत रखा था। यह व्रत न केवल भौतिक सुख देता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
सूर्य सप्तमी का महत्व
- माघ माह का महत्व: पूरे माघ मास में भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
- पापों का नाश: भगवान सूर्य की आराधना से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति को नई ऊर्जा प्राप्त होती है।
- सकारात्मक सोच: भगवान सूर्य की पूजा से नकारात्मकता समाप्त होती है और सकारात्मक सोच विकसित होती है।
सूर्य सप्तमी के लाभ
- संपूर्ण वर्ष का पुण्य: माघ माह में सप्तमी का व्रत रखने से पूरे वर्ष के पुण्य का लाभ मिलता है।
- सुख और समृद्धि: यह व्रत सुख, समृद्धि, और सफलता प्रदान करता है।
- विद्या और विचारों की वृद्धि: बिना नमक का भोजन करने वाले भक्तों की विद्या और विचारशीलता बढ़ती है।
- आयु और संपत्ति में वृद्धि: यह व्रत व्यक्ति की आयु और धन-सम्पदा में वृद्धि करता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में सूर्य सप्तमी मंगलवार, 4 फरवरी को मनाई जाएगी।
- सूर्योदय का समय: सुबह 6:43 बजे।
- स्नान दान का शुभ मुहूर्त: सुबह 5:23 – 07:08 बजे। कुल समय 1 घंटे 45 मिनट होगा।
सप्तमी तिथि प्रारंभ 4 फरवरी को सुबह 4:37 बजे सप्तमी तिथि समाप्त 5 फरवरी को सुबह 2:30 बजे
व्रत के नियम और विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठना: व्रत रखने वाले भक्त को सुबह जल्दी उठना चाहिए।
- तिल युक्त जल से स्नान: स्नान के समय पानी में थोड़ा तिल मिलाने से स्नान की महिमा और बढ़ जाती है।
- लाल वस्त्र धारण करना: व्रत के दिन लाल वस्त्र पहनें और माथे पर लाल तिलक लगाएं।
- जल अर्पण करना: तांबे के बर्तन में जल भरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
- मंत्र जप:
भगवान सूर्य की पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जप करें:
“ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।” - एक समय भोजन:
व्रत के दिन केवल एक बार भोजन करें। भोजन में नमक, सब्जी आदि का उपयोग न करें। इसमें केवल खीर, पुआ आदि का सेवन करें। भोजन का समय शाम 2 से 4 बजे के बीच होना चाहिए।
सूर्य सप्तमी की पूजन विधि
- सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
- लाल पुष्प, अक्षत, और गंध से भगवान सूर्य का पूजन करें।
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें।
- दिनभर व्रत रखें और नमक रहित भोजन ग्रहण करें।
सूर्य सप्तमी की कथा
हम आपके लिए भविष्य पुराण से सूर्य सप्तमी की एक अद्भुत और प्रेरणादायक कथा लेकर आए हैं। इस कथा को सूर्य सप्तमी के दिन भगवान सूर्य को जल अर्पित करने के बाद अवश्य सुनना चाहिए।
राजा धीर का प्रश्न और भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर
राजा धीर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “प्रभु, आपने स्नान के नियम बताए हैं जो सभी शुभ फलों को प्रदान करते हैं। लेकिन जो लोग सुबह स्नान करने में सक्षम नहीं होते, विशेषकर महिलाएं, वे इस कठिनाई का सामना कैसे करें? कृपया कोई ऐसा सरल उपाय बताएं जिससे थोड़े प्रयास में महिलाएं सौंदर्य, सौभाग्य, संतान और अनंत पुण्य प्राप्त कर सकें।”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “महाराज, मैं आपको अचला सप्तमी का एक गुप्त विधान बताता हूं, जिसे करने से सभी शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसे सुनें और अनुसरण करें।”
इंदुमती वेश्या की कथा
मगध देश में इंदुमती नामक एक अत्यंत सुंदर वेश्या रहती थी। एक दिन उसने सुबह बैठकर संसार की नश्वरता पर चिंतन करना शुरू किया। उसने सोचा:
“यह सांसारिक सुखों का सागर कितना भयानक है, जिसमें जन्म, मृत्यु और बुढ़ापे के कारण जीव डूब जाते हैं। ब्रह्माजी द्वारा रचित यह प्राणी समुदाय अपने ही कर्मों के ईंधन और काल की अग्नि से जलता है। धर्म, अर्थ और काम से रहित जीवों के दिन व्यर्थ चले जाते हैं।”
“जिस दिन स्नान, दान, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण जैसे शुभ कार्य न किए जाएं, वह दिन व्यर्थ हो जाता है। पूरा जीवन पुत्र, पत्नी, घर, भूमि और धन आदि की चिंता में निकल जाता है और मृत्यु हमें पकड़ लेती है।”
इंदुमती ने यह सोचकर कुछ निर्णय लिया और आरती करने के बाद महान ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में गई। वहां जाकर उसने हाथ जोड़कर निवेदन किया:
“महाराज, मैंने न तो कभी कोई दान दिया है, न ही तप, जप, व्रत आदि जैसे कोई शुभ कार्य किए हैं। मैंने शिव, विष्णु आदि देवताओं की पूजा भी नहीं की है। अब मैं इस भयानक संसार से भयभीत हूं और आपकी शरण में आई हूं। कृपया मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जो मुझे इस संसार से मुक्त कर सके।”
वशिष्ठ मुनि का उपदेश
महान ऋषि वशिष्ठ ने कहा,
“माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन स्नान करो। यह स्नान तुम्हें सौंदर्य, सौभाग्य और मोक्ष प्रदान करेगा। इस दिन शष्ठी को एक बार भोजन करो और सप्तमी के दिन प्रातः ऐसी नदी के तट पर स्नान करो जिसका जल किसी ने विचलित न किया हो। जल मलिनता को दूर करता है। स्नान के बाद दीपदान और अपनी क्षमता अनुसार दान करो। यह व्रत तुम्हारे लिए अत्यंत लाभकारी होगा।”
ऋषि वशिष्ठ की बात सुनकर इंदुमति अपने घर लौटी और उनके द्वारा बताई गई विधि से स्नान, ध्यान आदि के सभी कर्म पूरे किए। सप्तमी के दिन स्नान के प्रभाव से उसने लंबे समय तक सांसारिक सुखों का आनंद लिया। शरीर छोड़ने के बाद, वह देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में मुख्य नायिका के पद पर आसीन हुई। सप्तमी वह तिथि है जो सभी पापों का नाश करती है और सुख-सौभाग्य को बढ़ाती है।
सूर्य सप्तमी व्रत के लाभ और सफलता के सूत्र
- जो व्यक्ति नियमित रूप से सूर्य सप्तमी का व्रत रखते हैं, उन्हें जीवन में अपार सफलता और उन्नति प्राप्त होती है।
- सूर्य की उपासना से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मनोबल बढ़ता है।
सूर्य सप्तमी के दान का महत्व
इस दिन दान करने से व्यक्ति को कई गुना फल प्राप्त होता है:
- गुड़ का दान: इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- तांबे के बर्तन का दान: यह शुभ माना जाता है।
- गरम वस्त्र, कमल, और स्वेटर का दान: दान करने वाले के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- अन्न का दान: इसे विशेष पुण्यदायक माना गया है।
निष्कर्ष
सूर्य सप्तमी का व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करता है। माघ माह में भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल और समृद्ध बनाएं।