रविवार को सामान्यत सूर्य देव का दिन माना जाता है। इसके पीछे आध्यात्मिक कारण और ज्योतिषीय अनुसंधान छिपा हुआ है। ऐसा नहीं है कि रविवार को सूर्य की दूरी में कोई बदलाव होता है, लेकिन यह जरूर सत्य है कि इस दिन सूर्य ग्रह का प्रभाव व्यक्ति पर थोड़ा अधिक होता है। यदि आप सप्ताह में केवल एक बार रविवार को सूर्य देव की पूजा और आरती करते हैं, तो आपकी कई इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
आज हम आपको यह महत्वपूर्ण बात बताएंगे कि रविवार को किस प्रकार की पूजा और सूर्य देव की आरती करनी चाहिए, जिससे अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त हो, रोग दूर हों और आरोग्यता की प्राप्ति हो।
सूर्य देव की शक्ति
जब सूर्य देव अपनी माता के गर्भ से प्रकट हुए, तो उन्होंने अपने शत्रुओं को बड़ी निर्दयता से नष्ट कर दिया। सूर्य में इतनी शक्ति और सामर्थ्य है कि वह अपने शत्रुओं का संहार करने में सक्षम हैं। इस आरती के माध्यम से सूर्य देव की महिमा और उनकी कृपा का अनुभव किया जा सकता है।
प्रत्येक रविवार को यह पूजा और उपाय करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा और जीवन में सकारात्मकता का अनुभव होगा।
सूर्य को क्रूर ग्रह माना गया है क्योंकि उनके प्रचंड प्रभाव से शत्रुओं का नाश होता है और शत्रुता समाप्त हो जाती है। सूर्य की पूजा करने से समस्याओं का समाधान बहुत प्रभावी तरीके से होता है। यदि शत्रुओं से मुक्ति चाहिए और समस्याओं को दूर करना हो, तो रविवार का व्रत रखें और इस दिन निम्नलिखित विधि से पूजा आरंभ करें।
सूर्य देव पूजा की विधि
- प्रातःकाल स्नान करने के बाद सूर्य भगवान के दर्शन करें।
- सूर्य को जल चढ़ाएं और जल में थोड़ा रोली मिलाएं।
- जल अर्पित करने के बाद सूर्य देव के सामने या अपने पूजा स्थान पर बैठें और सूर्य मंत्र का जाप करें।
मंत्र: “ॐ सूर्याय नमः”
इस मंत्र का कम से कम 3 बार जाप करें।
- माथे और कंधों पर रोली का तिलक लगाएं।
- सूर्य देव की आरती करने के बाद, भोग लगाना चाहिए
- सूर्य देव की आरती करने से व्रत सफल होता है और सूर्य देव का आशीर्वाद मिलता है
इसे प्रत्येक रविवार करते रहें। यह करने से आपके सभी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, बीमारियां और अन्य कष्ट दूर हो जाएंगे।
सूर्य देव की आरती
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान..।।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान,
।।ॐ जय सूर्य भगवान।।
यह भी पढ़े: आदित्य हृदय स्तोत्र