हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की षष्ठी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है, खासकर षष्ठी तिथि जो भगवान कार्तिकेय यानी स्कंद देव को समर्पित होती है। ज्येष्ठ माह की स्कंद षष्ठी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद (मुरुगन) की पूजा का पर्व है।
यह दिन भक्तों को साहस, पराक्रम, ज्ञान और संतान सुख प्रदान करता है।
वर्ष 2025 के ज्येष्ठ माह में यह पर्व 01 जून को मनाया जाएगा।
भगवान स्कंद के जन्म और राक्षसों पर उनकी विजय की स्मृति में यह तिथि विशेष पूजनीय मानी जाती है।
ज्येष्ठ स्कंद षष्ठी 2025: तिथि और मुहूर्त
वर्ष 2025 में ज्येष्ठ माह की स्कंद षष्ठी 01 जून, रविवार को मनाई जाएगी।
षष्ठी तिथि प्रारंभ: 31 मई 2025 को दोपहर 02:22 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त: 01 जून 2025 को दोपहर 02:55 बजे
पूजा का शुभ समय: 01 जून को दोपहर 02:22 बजे से दोपहर 02:55 बजे तक
यह समय भगवान स्कंद की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
स्कंद षष्ठी की पूजा सूर्योदय के बाद और खास तौर पर दोपहर के समय की जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त व्रत रखते हैं और भगवान स्कंद की विधिवत पूजा करते हैं।

स्कंद देव कौन हैं?
भगवान स्कंद, जिन्हें मुरुगन, कार्तिकेय या सुब्रमण्य के नाम से भी जाना जाता है, शिव-पार्वती के सबसे बड़े पुत्र और गणेश के भाई हैं।
उन्हें युद्ध का देवता माना जाता है। पुराणों के अनुसार, जब तारकासुर नामक राक्षस ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया और उसका वध शिव के पुत्र द्वारा ही संभव था, तब भगवान स्कंद प्रकट हुए।
उन्होंने बचपन में ही अपनी सेना का नेतृत्व किया और तारकासुर का वध किया।
दक्षिण भारत में इनकी पूजा विशेष रूप से बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है।
उत्तर भारत में भी स्कंद षष्ठी जैसे विशेष पर्व पर इनकी पूजा की जाती है।
भगवान स्कंद को शक्ति, बुद्धि, संगठन और रणनीति का प्रतीक माना जाता है।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
स्कंद षष्ठी व्रत रखने से जीवन में साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
यह व्रत विशेष रूप से वे दंपत्ति करते हैं जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं।
मान्यता है कि स्कंद देव की कृपा से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा यह व्रत शत्रु बाधा, मानसिक तनाव, भय और रोगों से मुक्ति दिलाता है।
इस दिन किए गए जप, स्तोत्र पाठ और व्रत कथा का फल बहुत पुण्यदायी होता है।
खासकर अगर यह व्रत छह दिनों तक यानी षष्ठी से पूर्णिमा तक रखा जाए तो इसका प्रभाव कई गुना अधिक होता है।
तमिलनाडु में यह पर्व ‘कंद षष्ठी’ के रूप में बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है।
पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। घर में पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और दीप, धूप, पुष्प, फल, नैवेद्य आदि से पूजा करें।
चंदन, अक्षत, रोली से तिलक लगाएं
केवड़ा या कमल का फूल चढ़ाएं
गुड़ और नारियल चढ़ाएं
भगवान स्कंद की आरती करें
“ॐ स्कंदाय नमः” या “ॐ कार्तिकेयाय नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें
शाम को व्रत कथा पढ़ी जाती है और भोग वितरण के बाद व्रती फल खा सकते हैं।
रात्रि में शिव-पार्वती और स्कंद स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है।
व्रत नियम
इस व्रत के दौरान व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए।
पूरे दिन संयम, मौन और पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है।
मोबाइल या मनोरंजन के साधनों से दूरी बनाकर भगवान स्कंद की पूजा में अधिक से अधिक समय व्यतीत करना चाहिए।
संभव हो तो यह व्रत बिना अन्न ग्रहण किए किया जाता है, केवल जल या फल से व्रत पूर्ण किया जाता है।
स्कंद षष्ठी व्रत भी छह दिनों तक किया जाता है, जिसमें प्रतिदिन स्कंद देव की पूजा की जाती है और विशेष स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
व्रत के अंत में ब्राह्मणों या कन्याओं को भोजन कराने और दान देने की भी परंपरा है।
निष्कर्ष
ज्येष्ठ मास का स्कंद षष्ठी व्रत एक ऐसा पर्व है जो धर्म, आस्था और साधना का संगम है।
भगवान स्कंद की कृपा पाने के लिए यह दिन सबसे उत्तम माना जाता है।
इस व्रत को करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है बल्कि मानसिक और पारिवारिक समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।
01 जून 2025 को आने वाली स्कंद षष्ठी के दिन विधि-विधान से व्रत व पूजन करें तथा भगवान स्कंद का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को धर्म, शक्ति व समृद्धि से परिपूर्ण करें।
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