सीता नवमी, जिसे जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन को माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह दिन उन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने परिवार की सुख-शांति, पति की लंबी आयु और संतान की समृद्धि की कामना करती हैं।
सीता नवमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
यह पर्व 2025 में 5 मई, सोमवार को मनाया जाएगा।
- नवमी तिथि प्रारंभ: 5 मई 2025, सुबह 7:35 बजे से प्रारंभ होगी और 6 मई 2025, सुबह 7:35 बजे तक रहेगी।
- पूजा का शुभ मुहूर्त: 5 मई 2025, सुबह 10:44 बजे से दोपहर 1:23 बजे तक
- पूजा की अवधि: 2 घंटे 39 मिनट
सीता नवमी का महत्व
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सीता नवमी का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन माता सीता की पूजा करने से विवाहित जीवन में सुख-शांति आती है। माता सीता को आदर्श पत्नी और नारीत्व की प्रतीक माना जाता है।
सीता नवमी के अवसर पर लोग भगवान राम और माता सीता की मूर्तियों का पूजन करते हैं। विभिन्न स्थानों पर रामायण का पाठ और झांकियां आयोजित की जाती हैं।कई स्थानों पर राम-सीता की शोभायात्रा भी निकाली जाती है।
माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि
सीता नवमी के दिन पूजा विधि सरल और प्रभावशाली है। नीचे दिए गए चरणों का पालन कर आप इस पर्व का पूर्ण लाभ उठा सकते हैं:
- प्रातःकाल स्नान: ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- व्रत संकल्प: व्रत का संकल्प लें और माता सीता के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करें।
- गंगा जल से अभिषेक: भगवान राम और माता सीता की मूर्तियों को गंगा जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
- पूजन सामग्री: पूजा में रोली, चावल, पुष्प, तुलसी के पत्ते, फल, मिठाई और दीपक का उपयोग करें।
- भोग और आरती: भोग अर्पित करें और माता सीता तथा भगवान राम की आरती करें।
- रामायण पाठ: रामायण का पाठ करें और माता सीता की महिमा का गुणगान करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और इसे परिवार के साथ ग्रहण करें।
जानकी नवमी व्रत कथा
सीता नवमी, जो जानकी नवमी के नाम से भी प्रसिद्ध है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जो माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं व्रत करती हैं और भगवान राम तथा माता सीता की पूजा करती हैं। इस दिन का महत्व खासतौर पर पापों से मुक्ति, सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति के रूप में माना जाता है।
व्रत कथा
प्राचीन काल में राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में एक महान ब्राह्मण देवदत्त नामक व्यक्ति रहते थे। देवदत्त के पास एक बहुत ही सुंदर पत्नी थी, जिनका नाम शोभना था। एक दिन ब्राह्मण देवदत्त किसी गांव में भिक्षाटन के लिए गए थे, और इस दौरान शोभना कुछ गलत संगति में पड़ गई और उसने परस्त्रीधर्म का उल्लंघन किया। गांववालों ने इस बात को फैलाया, और शोभना की बदनामी हो गई।
चांडाल के घर जन्म
शोभना का पाप इतना बढ़ गया कि उसने अपने पापों के परिणामस्वरूप अपने अगले जन्म में एक चांडाल के घर जन्म लिया। चांडाल के घर जन्म लेने के कारण वह कष्टों से भरी जिंदगी जीने लगी, और उसे कुष्ठ रोग और अंधापन का सामना करना पड़ा।
एक दिन वह भूख और प्यास से परेशान होकर इधर-उधर भटकती हुई एक गांव में पहुंची। यह दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का था, जो सभी पापों को नष्ट करने वाली मानी जाती है। शोभना ने वहां सभी से खाने-पीने की वस्तुएं मांगी।
वह चंद्रलिया कनक भवन के फूलों से सजे खंभों से गुजरते हुए वहां पहुंची और कहा, “कृपया मुझे कुछ खाने के लिए दो।” तभी एक भक्त आया और कहा, “माता, आज सीता नवमी का पर्व है, इस दिन अनाज देना पाप माना जाता है, इसलिए आपको आज अनाज नहीं मिलेगा। आप कल पारणा के समय आइए, तब आपको ठाकुर जी का प्रसाद मिलेगा।”
लेकिन शोभना को संतुष्ट नहीं किया जा सका, तब एक भक्त ने उसे तुलसी के पत्ते और पानी दिया। इस प्रकार, वह चांडाल अनजाने में सीता नवमी का व्रत पूर्ण कर पाई।
सीता नवमी से जुड़ी विशेष परंपराएं
- रामायण पाठ: इस दिन रामायण के बालकांड और सीता जन्म की कथा का विशेष रूप से पाठ किया जाता है।
- झांकियां और शोभायात्रा: कई स्थानों पर राम और सीता की झांकियां सजाई जाती हैं और शोभायात्रा निकाली जाती है।
- दान और पुण्य: इस दिन गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन दान करने का विशेष महत्व है।
व्रत का फल
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सीता नवमी का व्रत करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाता है और परिवार में समृद्धि लाता है।
माना जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से माता सीता की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान राम की कृपा भी प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसे सुख, शांति और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
सीता नवमी हमें नारी शक्ति, त्याग और धैर्य का संदेश देती है। माता सीता ने अपने जीवन में हर परिस्थिति का धैर्यपूर्वक सामना किया और आदर्श पत्नी तथा माता के रूप में अपनी पहचान बनाई।
यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में हर चुनौती का सामना धैर्य और समर्पण के साथ करना चाहिए।
निष्कर्ष
सीता नवमी का पर्व धार्मिक आस्था और परंपरा का प्रतीक है। यह दिन न केवल पूजा और व्रत के माध्यम से आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है, बल्कि हमारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने का मार्ग भी दिखाता है।
इसलिए, इस पवित्र दिन पर माता सीता और भगवान राम की पूजा करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बनाएं।
सीता नवमी 2025 में इस पर्व को धूमधाम से मनाएं और अपनी आस्था को प्रगाढ़ करें।