श्री सूक्त क्या है ?
“श्री” का अर्थ है समृद्धि, और “श्री “का अर्थ है धन और समृद्धि, और इसे प्राप्त करने के लिए जो मंत्र है, वह है श्री सूक्त। आगे लेख में हम जानेंगे श्री सूक्त के पाठ करने के लाभ और पाठ की विधि ।श्री सूक्त एक ऐसा उपाय है जो वैदिक और तांत्रिक ग्रंथों से लिया गया है।
यह एक मंत्र है जो देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है। इसे लक्ष्मी सूक्त भी कहा जाता है, और यह सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है। कहा जाता है कि इस सूक्त का पाठ करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जो धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।
श्री सूक्त में 15 श्लोक होते हैं और महात्मा के साथ इसे 16 श्लोक कहा जाता है। किसी भी स्तोत्र का पाठ बिना महात्म के लाभ नहीं देता है, इसीलिए इस के 16 श्लोकों का पाठ करना चाहिए।
श्री सूक्त का महत्व
यह विश्वास किया जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से और नियमित रूप से यह पाठ करता है, वह सात जन्मों तक दरिद्र नहीं होता।
अर्थात, जो व्यक्ति लक्ष्मी की नियमित पूजा और श्रद्धा से श्री सूक्त का पाठ करता है, वह कभी भी धन की कमी का सामना नहीं करता और उसे धन आसानी से प्राप्त होता है।
यह पाठ देवी लक्ष्मी की आराधना के लिए एक स्तोत्र है।
श्री सूक्त का पाठ करने के लाभ
- जो व्यक्ति ओम श्री सूक्तम को श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करता है, वह देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करता है।
- उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती।
- उसे इस संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
- उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं।
- उसे आर्थिक समृद्धि और प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
- उसके जीवन में सुख, समृद्धि और वैभव आता है।
- उसकी सृजनात्मकता का विकास होता है।
- कार्य में वांछित सफलता प्राप्त होती है।
श्री सूक्तम का पाठ करने की विधि
- शुक्रवार या किसी शुभ दिन से ओम श्री सूक्त का पाठ प्रारंभ करें।
- देवी लक्ष्मी की तस्वीर को अपने सामने पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
- एक ऊन के आसन पर बैठकर देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
- ध्यान इस प्रकार करें कि देवी लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं और चारों ओर कमल की पंखुड़ियां हैं।
- देवी लक्ष्मी को सौंदर्य, मनमोहक वस्त्रों से सुसज्जित, दिव्य रत्नजड़ित स्वर्ण कलशों से स्नान करते हुए कल्पना करें।
- यह ध्यान करें कि वे भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं और उनका वैभव आपके घर में सदैव निवास कर रहा है।
इसके बाद, इस का नियमित पाठ करें। पाठ करने के बाद इस बात की अनुभूति करें कि देवी लक्ष्मी आपको आशीर्वाद दे रही हैं।
आपके जीवन में सुख और आध्यात्मिक समृद्धि आ रही है। आपकी इच्छाएं पूरी हो रही हैं।
देवी लक्ष्मी ध्यान
ध्यान इस प्रकार है भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं,
कमल की पंखुड़ियों के समान जिनके सुन्दर नेत्र हैं. जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्त वाली नाभि है,
जो सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि जड़ित दिव्य स्वर्ण कलशों के द्वारा स्नान किये हुए हैं,
जो भगवान् विष्णु को बहुत प्रिय है, वे कमलहस्ता सदा सभी मंगलों के सहित मेरे घर में निवास करें.
ध्यान के बाद प्रतिदिन श्री सूक्त का पाठ करें. पाठ करने के बाद भावना करें कि देवी लक्ष्मी की आप पर कृपा वृष्टि हो रही है और आप भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न हो रहे हैं. आपकी मनोकामना पूर्ण हो रही है.
श्री सूक्त के पाठ के नियम और सावधानियां
- नियमितता: श्री सूक्त का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए, preferably रोजाना।
- श्रद्धा और विश्वास: पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखना चाहिए।
- शुद्धता: पाठ करने से पहले शरीर और मन की शुद्धि महत्वपूर्ण है।
- शिवलिंग या लक्ष्मी प्रतिमा का पूजन: श्री सूक्त का पाठ करने से पहले देवी लक्ष्मी या शिवलिंग का पूजन करें।
- सुनना और समझना: पाठ सुनने के साथ-साथ उसका अर्थ समझकर करना चाहिए।
- सत्य बोलें: पाठ करते समय सत्य बोलें और अपने आचरण को शुद्ध रखें।
- प्रत्येक मंत्र का उच्चारण स्पष्ट रूप से करें: प्रत्येक मंत्र को ध्यानपूर्वक और स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ें।
- सावधानी: इस का पाठ निरंतर और मन के शांति के साथ करें। किसी भी मानसिक अशांति के समय इसे न पढ़ें।
- शरीर की शुद्धि: पाठ के दौरान स्वच्छ कपड़े पहनें और जिस स्थान पर पाठ कर रहे हैं वह भी स्वच्छ होना चाहिए।
- पारिवारिक सदस्य भी भाग लें: यदि संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्य भी इसमें शामिल हो सकते हैं, ताकि घर में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहे।
इस का सही विधि से पाठ करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ मानसिक शांति और समग्र सुख की प्राप्ति होती है।
श्री सूक्त हिंदी अनुवाद
॥ श्री सूक्त ॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥
अर्थ – हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥
अर्थ – अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करूँगा, मेरे लिये आवाहन करो।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥
अर्थ – जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥
अर्थ – जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुसकराने वाली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, अपने भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥
अर्थ – मैं चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्तिवाली, सुन्दर द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्गलोक में देवगणों के द्वारा पूजिता, उदारशीला, पद्महस्ता लक्ष्मीदेवी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्र्य दूर हो जाय। मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥
अर्थ – हे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूपे ! तुम्हारे ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उसके फल हमारे बाहरी और भीतरी दारिद्र्य को दूर करें।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्की र्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥
अर्थ – देवि ! देवसखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ, मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करें।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥
अर्थ – लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन और क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि ! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्र्य और अमंगल को दूर करो।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥
अर्थ – जो दुराधर्षा और नित्यपुष्टा हैं तथा गोबर से ( पशुओं से ) युक्त गन्धगुणवती हैं। पृथ्वी ही जिनका स्वरुप है, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ अपने घर में आवाहन करता हूँ।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥
अर्थ – मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो। गौ आदि पशु एवं विभिन्न प्रकार के अन्न भोग्य पदार्थों के रूप में तथा यश के रूप में श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥
अर्थ – लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि ! आप हमारे यहाँ उत्पन्न हों तथा पद्मों की माला धारण करनेवाली माता लक्ष्मीदेवी को हमारे कुल में स्थापित करें।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥
अर्थ – जल स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करे। लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप भी मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मीदेवी का मेरे कुल में निवास करायें।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥
अर्थ – अग्ने ! आर्द्रस्वभावा, कमलहस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों की माला धारण करनेवाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी का मेरे यहाँ आवाहन करें।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥
अर्थ – अग्ने ! जो दुष्टों का निग्रह करनेवाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करनेवाली यष्टिरूपा, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥15॥
अर्थ – अग्ने ! कभी नष्ट न होनेवाली उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, गौएँ, दासियाँ, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥
अर्थ – जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियाँ दे तथा इन पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त का निरन्तर पाठ करे।
जय श्री राम