शिव पुराण विद्येश्वर संहिता अध्याय 11
शिवलिंग की स्थापना और पूजन विधि का वर्णन
शिव पुराण के अनुसार ऋषियों ने पूछा सूत की शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए तथा तथा उसकी पूजा कैसे किस काल में तथा किस द्रव्य द्वारा करनी चाहिए?
शिव पुराण में सूत जी ने कहा महर्षियों मैं तुम लोगों के लिए इस विषय का वर्णन करता हूं। इसे ध्यान से सुनो और समझो। अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ में नदी के तट पर ऐसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए जहां रोज पूजन कर सके। पार्थिव द्रव्य से जलमय द्रव्य से अथवा तेजस द्रव्य से पूजन करने से उपासक को पूजन का पूरा फल प्राप्त होता है।
शुभ लक्षणों में पूजा करने पर यह तुरंत देने वाला है। चल प्रतिष्ठा के लिए छोटा शिवलिंग श्रेष्ठ माना जाता है। अचल प्रतिष्ठा हेतु बड़ा शिवलिंग अच्छा रहता है। शिवलिंग की पीठ सहित स्थापना करनी चाहिए।
शिवलिंग की पीठ गोल चौकोर अथवा खाट के पाय की भांति ऊपर नीचे मोटा और बीच में पतला होना चाहिए। ऐसा लिंग पीठ महान फल देने वाला हैं। पहले मिट्टी अथवा लोहे से शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए। जी द्रव्य से लिंग का निर्माण हो उसी से उसका पीठ बनाना चाहिए।
यही अचल प्रतिष्ठा वाले शिवलिंग की विशेषता है। चल प्रतिष्ठा वाले शिवलिंग में लिंग व प्रतिष्ठा एक ही तत्व से बननी चाहिए। लिंग की लंबाई स्थापना करने वाले मनुष्य के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए।
इससे कम होने पर फल भी काम प्राप्त होता है। परंतु 12 अंगुल से लंबाई अधिक भी हो सकती है। चल लिंग में लंबाई स्थापना करने वाले के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए उससे काम नहीं। यजमान को चाहिए कि वह पहले शिल्प शास्त्र के अनुसार देवलय बनाए तथा उसमें सभी देवगणों की मूर्ति स्थापित करें। देवालय का गर्भ ग्रह सुंदर सुदृढ़ और स्वच्छ होना चाहिए।
उसमें पूर्व और पश्चिम में दो मुख्य द्वार हो जहां शिवलिंग की स्थापना करनी हो उसे स्थान के गर्त में नीलम, लाल, वैदूर्या, श्याम, मर्कट, मोती, मूंगा, गोमद और हीरा इन नवरत्नों को वैदिक मित्रों के साथ छोड़े।
पांच वैदिक मित्रों द्वारा पांच स्थानो से पूजन करके अग्नि में आहुति और परिवार सहित मेरी पूजा करके आचार्य को धन से तथा भाई बांधों को मनचाही वस्तु से संतुष्ट करें। याचकों को सुवर्ण गृह एवं भू संपत्ति तथा गाय आदि प्रदान करें। स्थावर जंगम सभी जीवो को यात्रा पूर्वक संतुष्ट करें।
एक गड्ढे में सुवर्ण तथा नौ प्रकार के रत्न भरकर वैदिक मित्रों का उच्चारण करके परम कल्याणकारी महादेव जी का ध्यान करें। तत्पश्चात नाद घोष से युक्त महामंत्र ओमकार ओम का उच्चारण करके गड्ढे में युक्त शिवलिंग की स्थापना करें। वहां परम सुंदर मूर्ति का भी स्थापना करना चाहिए।
तथा भूमि संस्कार की विधि जिस प्रकार शिवलिंग के लिए की गई है उसी प्रकार मूर्ति की प्रतिष्ठा भी करनी चाहिए। मूर्ति की स्थापना अर्थात प्रतिष्ठा पंचाक्षर मंत्र से करनी चाहिए। मूर्ति को बाहर से भी लिया जा सकता है परंतु वह साधु द्वारा पूजित हो इस प्रकार शिवलिंग व मूर्ति द्वारा की गई महादेव जी की पूजा शिव पद प्रदान करने वाली है।
स्थावर और जंगल से लिंग भी दो तरह का हो गया है। वृक्ष लता आदि को स्थावर लिंग कहते हैं और कृम कीट आदि को जंगल लिंग। स्थावर लिंग को सीजना चाहिए तथा जंगल लिंग को आहार एवं जल देकर तृप्त करना चाहिए यह चराचर जीवो को भगवान शंकर का प्रतीक मानकर उनका पूजन करना चाहिए। इस तरह महा लिंग की स्थापना करके विविध उपचारों द्वारा उसका रोज पूजन करें तथा देवालय के पास ध्वजारोहण करें।
शिवलिंग साक्षात शिव का पद प्रदान करने वाला है आवाहन आसान अर्ग पद पद्यांक आचमन स्नान वस्त्र यज्ञोपवीत यज्ञ पुष्प धूप दीप नैवेद्य तांबूल समर्पण इराजन नमस्कार और विसर्जन यह 16 उपचार है। इनके द्वारा पूजन करें । इस तरह भगवान शिव का पूजन शिव पद की प्राप्ति कराने वाला है। सभी शिवलिंग की स्थापना के उपरांत चाहे वह मनुष्य द्वारा स्थापित ऋषियों या देवताओं द्वारा अथवा अपने आप प्रकट हुए हो।
सभी का उपयुक्त विधि से पूजन करना चाहिए तभी फल प्राप्त होता है। उसकी परिक्रमा और नमस्कार करने से शिव पद की प्राप्ति होती है। शिवलिंग का नियम पूर्वक दर्शन भी कल्याणकारी।मिट्टी आटा गाय के गोबर फूल कनेर पुष्प फल गुड मक्खन भस्म अथवा एन से शिवलिंग बनाकर प्रतिदिन पूजन करें तथा प्रतिदिन 10000 प्रणव मित्रों का जाप करें अथवा दोनों संध्या के समय एक सहस्त्र प्रणव मंत्रो का जाप करें इससे भी शिव पद प्राप्त होता है।
चप कल में प्रणव मंत्र का उच्चारण मन की शुद्धि करता है। नाद और बिंदु से युक्त ओमकार को कुछ विद्वान समान प्रणव कहते हैं। प्रतिदिन 10000 पंचाक्षर मंत्र का जाप अथवा दोनों संध्याओं को एक सहस्त्र मंत्र का जाप शिव पद की प्राप्ति करने वाला है। सभी ब्राह्मण के लिए प्रणव से युक्त पंचाक्षर मंत्र आती फलदायक है।
कलश से किया स्नान मंत्र की दीक्षा मंत्र का न्यास सत्य से पवित्र अंतः करण ब्राह्मण तथा ज्ञानी गुरु सभी को उत्तम माना गया है। पंचाक्षर मंत्र का 5 करोड़ जाप करने से मनुष्य भगवान शिव के समान हो जाता है। एक दो तीन अथवा चार करोड़ जाप करके मनुष्य क्रमशः ब्रह्मा विष्णु रूद्र तथा महेश्वर का पद प्राप्त कर लेता है यदि 1000 दिनों तक प्रतिदिन एक सहस्त्र जब पंचाक्षर मित्रों का किया जाए और प्रतिदिन ब्राह्मण को भोजन कराया जाए तो इससे अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
ब्राह्मण को प्रतिदिन प्रातः काल 1008 बार गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए क्योंकि यह शिव पद की प्राप्ति करता है। वेद मंत्र और वैदिक सूक्तियां का भी नियम से जाप करें। अन्य मित्रों में जितने अक्षर है उनके इतने लाख जाप करें इस प्रकार यथाशक्ति जॉब करने वाला मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। अपनी पसंद से कोई भी एक मंत्र अपना कर प्रतिदिन उसका जाप करें अथवा नित्य एक सहस्त्र जाप करें।
ऐसा करने से संपूर्ण मनोरथ की सिद्धि होती है। जो मनुष्य भगवान शिव के लिए फुलवारी या बगीचे लगता है तथा शिव मंदिर में झाड़ने बुहारने का सेवा कार्य करता है ऐसे शिव भक्त को पुण्य कर्म की प्राप्ति होती है अंत समय में भगवान शिव उसे मोक्ष प्रदान करते हैं। काशी में निवास करने से भी योग और मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए आमरण भगवान शिव के क्षेत्र में निवास करना चाहिए।
उस क्षेत्र में स्थित बावड़ी तालाब कुना और पोखर को शिवलिंग समझ कर वहां दान स्नान और जाप करके मनुष्य भगवान शिव को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य शिव के क्षेत्र में अपने किसी मृत संबंधी का दाह,दशा,मासिक श्राद्ध अथवा वार्षिक श्राद्ध करता है अथवा अपने पितरों को पिंडदान करता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। अंत में शिव पद प्राप्त करता है।
लोक में अपने वर्ण के अनुसार आचरण करने व सदाचार तो पालन करने से शिव पद की प्राप्ति होती है निष्काम भाव से किया गया कार्य अभीष्ट फल देने वाला एवं शिवपद प्रदान करने वाला होता है। दिन के प्रातः मध्यान और सायं तीन विभाग होते हैं।
भाभी को एक-एक प्रकार के कर्म का प्रतिपादन करना चाहिए। प्रातः काल रोजाना दैनिक शास्त्र कम मध्यान सकाम कर्म तथा सायं काल शांति कर्म के लिए पूजन करना चाहिए इसी प्रकार रात्रि में चार पहर होते हैं। उनमें से बच के दो प्रहार निषाद कल कहलाते हैं। इसी काल में पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह पूजा अभीष्ट फल देने वाली है।
कलयुग में कम द्वारा ही फल की सिद्ध होगी इस प्रकार विधि पूर्वक और समय अनुसार भगवान शिव का पूजन करने वाले मनुष्य को अपने कर्मों का पूरा फल मिलता है। ऋषियों ने कहा सूत जी ऐसे पुण्य क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
जिनका आश्रय लेकर सभी स्त्री पुरुष शिव पद को प्राप्त कर लिए कृपया कर हमें बताइए।
शिव पुराण विदेश्वर संहिता का 11वां अध्याय संपन्न हुआ।
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अध्याय 12
शिव पुराण में मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रो का वर्णन
शिव पुराण के अनुसार श्री सूत जी बोले ही बुद्धिमान महर्षियों में मोक्ष देने वाले शिव क्षेत्रो का वर्णन कर रहा हूं। पर्वत वन और कानों सहित इस पृथ्वी का विस्तार 50 करोड़ योजन है। भगवान शिव की इच्छा से पृथ्वी ने सभी को धारण किया है। भगवान शिव ने भूतल पर विभिन्न स्थानों पर वहां के प्राणियों को मोक्ष देने के लिए शिव क्षेत्र का निर्माण किया है।
कुछ क्षेत्रों को देवताओं और ऋषियों ने अपना निवास स्थान बनाया है इसलिए उसमें तीर्थ प्रकट हो गया। बहुत से तीर्थ ऐसे है जो स्वयं प्रकट हुए हैं। तीर्थ क्षेत्र में जाने पर मनुष्य को सदा स्नान दान और जब करना चाहिए अन्यथा मनुष्य रोग गरीबी तथा मुक्त आदि दोषों का भागी हो जाता है।
जो मनुष्य अपने देश में मृत्यु को प्राप्त होता है वह इस पुण्य के फल से दोबारा मनुष्य योनि प्राप्त करता है। परंतु पापी मनुष्य दुर्गति को ही प्राप्त करता है। है ब्राह्मण पुण्य क्षेत्र में किया गया पाप कर्म अधिक दृढ़ हो जाता है। अतः पुण्य क्षेत्र में निवास करते समय पाप कर्म करने से बचना चाहिए सिंधु और सतलुज नदी के तट पर बहुत से पुण्य क्षेत्र है सरस्वती नदी परम पवित्र और 60 मुख वाली है अर्थात उसकी 60 धाराएं हैं।
इन धाराओं के तट पर निवास करने से परम पद की प्राप्ति होती है। हिमालय से निकली हुई पुण्य सलिला गंगा से मुख वाली नदी है इसके तट पर काशी प्रयाग आदि पुण्य क्षेत्र है। मकर राशि में सूर्य होने पर गंगा की तट भूमि अधिक प्रशांत एवं पुण्यदाय हो जाती है।
सोनभद्र नदी की 10 धाराएं है बृहस्पति के मकर राशि में आने पर यह अत्यंत पवित्र तथा अभीष्ट फल देने वाली है। इस समय यहां स्नान और उपवास करने से विनायक पद की प्राप्ति होती है। पुण्य सलीला महानदी नर्मदा के 24 मुख है। इसमें स्नान करके तट पर निवास करने से मनुष्य को वैष्णव पद की प्राप्ति होती है। तमसा के 12 तथा रे वा के 10 मुख है।
परम पुण्यमय गोदावरी के 21 मुख है। यह ब्रह्म हत्या तथा गोवद पाप का नाश करने वाली एवं रुद्र लोक देने वाली है। कृष्णावेणी समस्त पापों का नाश करने वाली है इसके 18 मुख है तथा विष्णु लोक प्रदान करती है। तुंगभद्रा 10 मुखी है एवं ब्रह्मलोक देने वाली है। सुवर्णा मुखड़ी के 9 मुख है ब्रह्मलोक से लौटे जीव इसी नदी के तट पर जन्म लेते हैं।
सरस्वती नदी पंपा सरोवर कन्याकुमारी अंतरीप तथा शुभ कारक श्वेत नदी सभी पुण्य क्षेत्र है इनके तट पर निवास करने से इंद्रलोक की प्राप्ति होती है। महानदी कावेरी परम पुण्य में है इसके 27 मुख है। यह संपूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देने वाली है। इसके तट ब्रह्मा विष्णु का पद देने वाले हैं।
कावेरी के जो तट शेव क्षेत्र के अंतर्गत है वह अभीष्ट फल तथा शिव लोक प्रदान करने वाले हैं नैमिषारण्य तथा बद्री का आश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेष राशि में आने पर स्नान और पूजन करने से ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। सिंह और कर्क राशि में सूर्य की संक्रांति होने पर सिंधु नदी में किया स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञान दे माना जाता है बृहस्पति के सिंह राशि में स्थित होने पर भद्र मार्च में गोदावरी के जाल में स्नान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है।
ऐसा स्वयं भगवान शिव ने शिव पुराण में कहा था सूर्य और बृहस्पति के कन्या राशि में स्थित होने पर यमुना और सोनभद्र में स्नान से धर्मराज और गणेश लोक में महान भोग की प्राप्ति होती है। ऐसे महर्षियों की मान्यता है कि सूर्य और बृहस्पति तुला राशि में होने पर कावेरी नदी में स्नान करने से भगवान विष्णु के वचन की महिमा से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
मार्गशीर्ष माह में सूर्य और बृहस्पति के वृश्चिक राशि में आने पर नर्मदा में स्नान करने से विष्णु पद की प्राप्ति होती है। सूर्य और बृहस्पति के धनु राशि में होने पर सुवर्णा मुखरी नदी मैं किया स्नान शिव लोग प्रदान करने वाला है। मकर राशि में सूर्य और बृहस्पति के माघ मास में होने पर गंगा जी में किया गया स्नान शिवलोक प्रदान करने वाला है।
शिवलोक के पश्चात ब्रह्मा और विष्णु के स्थान में सुख भोगकर अंत में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। माघ मास में सूर्य के कुंभ राशि में होने पर फाल्गुन मास में गंगा तट पर किया श्रद्धा पिंड दान अथवा तिलोक दान पिता और नाना दोनों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करने वाला है।
गंगा व कावेरी नदी का आश्रय लेकर तीर्थ वास करने से पाप का नाश हो जाता है। ताम्रपर्णी और वेग्वती नदियां ब्रह्मा लोक प्राप्ति रूप फल देने वाली है। इनके तट पर स्वर्ग दायक क्षेत्र है। इन नदियों के मध्य में बहुत से पुण्य क्षेत्र है। यहां निवास करने वाला मनुष्य अभीष्ट फल का वासी होता है।
सदाचार उत्तम वृत्ति तथा सद्भावना के साथ मन में दया भावना रखते हुए विद्वान पुरुष को तीर्थ में निवास करना चाहिए अन्यथा उसे फल नहीं मिलता। पुण्य क्षेत्र में जीवन बिताने का निश्चय करने पर तथा वास करने पर पहले का सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाएगा। क्योंकि पुण्य को ऐश्वर्यदायक कहा जाता है। हे ब्राह्मण तीर्थ में वास करने पर उत्पन्न पुण्य कायक वाचिक और मानसिक सभी पापों का नाश कर देता है।
तीर्थ में किया मानसिक पाप कैकल्पों तक पीछा नहीं छोड़ता यह केवल ध्यान से ही नष्ट होता है। वाचक पाप जब से तथा कायक पाप शरीर को सुखाने जैसे कठोर तप से नष्ट होता है। अतः शिव पुराण के अनुसार सुख चाहने वाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते हुए और ब्राह्मणों को दान देते हुए पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिए।
शिव पुराण विदेश्वर संहिता का बारहवा अध्याय संपन्न हुआ
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