शिव पुराण हिंदू धर्म की प्रमुख पुस्तकों में से एक है, जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती है।
इसमें जन्म, भगवान शिव के अवतार, उनके रूप, और उनकी पूजा विधियों का वर्णन है।
इस पुस्तक में भक्तों को शिव तत्व के ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का मार्ग दिखाया जाता है।
शिव पुराण विद्येश्वर संहिता में वर्णित कथाएं और उपदेश मानव जीवन को धर्म, सत्य और उच्च आचरण की दिशा में प्रेरित करते हैं।
यह पुस्तक शिव भक्ति को जागृत करने और आध्यात्मिक उन्नति का स्रोत है।
इस लेख के माध्यम से आज हम शिव पुराण प्रथम खंड के अध्याय 6 से 8 पढ़ेंगे।
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शिव पुराण-प्रथम खंड अध्याय 6
ब्रह्मा विष्णु युद्ध
नंदीकेश्वर बोले पूर्व काल में श्री विष्णु अपनी पत्नी श्री लक्ष्मी जी के साथ शेह शया पर शयन कर रहे थे।
तब एक बार ब्रह्मा जी वहां पहुंचे और विष्णु जी को पुत्र कहकर पुकारने लगे।
पुत्र उठो मैं तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे सामने खड़ा हूं। यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया फिर भी शांत रहते हुए वह बोले पुत्र तुम्हारा कल्याण हो कहो अपने पिता के पास कैसे आना हुआ?
यह सुनकर ब्रह्मा जी बोले- मैं तुम्हारा रक्षक हूं सारे जगत का पितामह हूं सारे जगत मुझ पर निवास करता है।
तू मेरी नाभि कमल से प्रकट होकर मुझसे ऐसी बातें कर रहा है इस प्रकार दोनों में विवाद होने लगा तब वे दोनों अपने को प्रभु कहते-कहते एक दूसरे का वध करने को तैयार हो गए।
हंस और गरुड़ पर बैठे दोनों परस्पर युद्ध करने लगे ब्रह्मा जी के वक्षस्थल में विष्णु जी ने अनेकों अस्त्रों का प्रहार करके उन्हें व्याकुल कर दिया।
इससे कुपित हो ब्रह्मा जी ने भी पलट कर भयानक प्रहार किये उनके पारस्परिक आघातों से देवताओं में हलचल मच गई।
वह घबरा और त्रिशूल धारी भगवान शिव के पास गए और उन्हें सारी व्यथा सुनाई।
भगवान शिव अपनी सभा में उमा देवी सहित सिंहासन पर विराजमान थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
विदेश्वर संहिता का छठा अध्याय संपन्न हुआ
अध्याय 7
शिव निर्णय
महादेव जी बोले, पुत्रों मैं जानता हूं कि तुम ब्रह्मा और विष्णु के परस्पर युद्ध से दुखी हो।
तुम डरो मत मैं अपने गानों के साथ तुम्हारे साथ चलता हूं तब भगवान शिव अपने नंदी पर आरुण हो देवताओं सहित युक्त स्थल की ओर चल दिए।
वहां छिपकर वह ब्रह्मा विष्णु के युद्ध को देखने लगे उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि वह दोनों एक दूसरे को मारने की इच्छा से माहेश्वर और पाशुपत अस्त्रों का प्रयोग करने जा रहे हैं।
यह सुन वे युद्ध को शांत करने के लिए अग्नि के तुल्य एक स्तंभ रूप में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य खड़े हो गए।
महा अग्नि के प्रकट होते ही दोनों के अस्त्र स्वयं ही शांत हो गए।
अस्त्रों को शांत होते देख ब्रह्मा और विष्णु दोनों कहने लगे कि इस अग्नि स्वरूप स्तंभ के बारे में हमें जानकारी करनी चाहिए।
दोनों ने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
भगवान विष्णु ने शुक्र रूप धारण किया और उसको देखने के लिए नीचे धरती पर चल दिए।
ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण करके ऊपर की और चल दिए। पाताल में बहुत नीचे जाने पर भी विष्णु जी को स्तंभ का अंत नहीं मिला।
अतः वे वापस चले आए।
ब्रह्मा जी ने आकाश में जाकर केतकी का फूल देखा।
वे उसे फूल को लेकर विष्णु जी के पास गए। विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए।
ब्रह्मा जी के छल को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए।
विष्णु जी की महानता से शिव प्रसन्न होकर बोले हे विष्णु जी आप सत्य बोलते हैं अतः मैं आपको अपनी समानता का अधिकार देता हूं।
विदेश्वर संहिता का सातवां अध्याय संपन्न हुआ
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अध्याय 8
ब्रह्मा का अभिमान भंग
नंदीकेश्वर बोले, महादेव जी ब्रह्मा जी के चल पर अत्यंत क्रोधित हुए।
उन्होंने अपने त्रिनेत्र,तीसरी आंख से भैरव को प्रकट किया और उन्हें आज्ञा दी कि वह तलवार से ब्रह्मा जी को दंड दें।
आज्ञा पाते ही भैरव ने ब्रह्मा जी के बाल पकड़ लिए और उनका पांचवा सर काट दिया ब्रह्मा जी डर के मारे कांपने लगे।
उन्होंने भैरव के चरण पकड़ लिए तथा क्षमा मांगने लगे।
इसे देखकर श्री विष्णु ने भगवान शिव से प्रार्थना की, कि आपकी कृपा से ही ब्रह्मा जी को पांचवा सर मिला।
अतः आप इन्हें क्षमा कर दें।
तब शिवजी की आज्ञा पाकर ब्रह्मा को भैरव ने छोड़ दिया।
शिव जी ने कहा तुमने प्रतिष्ठा और ईश्वर को दिखाने के लिए छल किया है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं, कि तुम सत्कार स्थान व उत्सव से विहीन रहोगे।
ब्रह्मा जी को अपनी गलती का पछतावा हो चुका था।
उन्होंने भगवान शिव के चरण पड़कर क्षमा मांगी और निवेदन किया कि वे उनका पांचवा सर पुणे प्रदान करें।
महादेव जी ने कहा जगत की स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए पापी को दंड आवश्यक देना चाहिए ताकि लोक मर्यादा बनी रहे।
मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम गणों के आचार्य कहलाओगे और तुम्हारे बिना यज्ञ पूर्ण ना होगा।
फिर उन्होंने केतकी के पुष्प से कहा अरे दुष्ट केतकी पुष्प अब तुम मेरी पूजा के आयोग के रहोगे।
तब केतकी पुष्प बहुत दुखी हुई और उनके चरणों में गिरकर माफी मांगने लगी।
तब महादेव जी ने कहा मेरा वचन तो झूठ नहीं हो सकता इसलिए तुम मेरे भक्तों के योग्य होगा।
इस प्रकार तेरा जन्म सफल हो जाएगा।
विदेश्वर संहिता का आठवां अध्याय संपन्न हुआ
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