हम यह प्रार्थना करते हैं कि आपके घर में कोई भी रोग या दोष न हो और घर में हमेशा सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रहे। चूंकि माता शीतला की पूजा में ठंडा और बासी भोजन अर्पित किया जाता है, इसलिए इसे बसोड़ा भी कहा जाता है। आज के इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे कि माता शीतला की पूजा घर पर आसान तरीके से कैसे की जा सकती है।
माता शीतला सप्तमी तिथि और शुभ मुहूर्त
2025 में शीतला सप्तमी की तिथि और शुभ मुहूर्त जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी के दिन ही माता शीतला को वासी भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन पूजा करने से शीतला माता की कृपा से धन में वृद्धि होती है और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
शीतला सप्तमी का पर्व 21 मार्च 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। पूजा का शुभ समय इस प्रकार है:
शुभ मुहूर्त: 21 मार्च 2025, सुबह 6:09 बजे से शाम 6:00 बजे तक।
पूजा का कुल समय :12 घंटे 9 मिनट रहेगा।
सप्तमी तिथि का प्रारंभ: 21 मार्च 2025 को सुबह 4:30 बजे।
सप्तमी तिथि का समापन: 22 मार्च 2025 को दोपहर 2:47 बजे।
मंदिर न जा पाने पर घर पर पूजा करने का तरीका
यदि किसी कारणवश आप मंदिर नहीं जा पाते हैं, तो आप घर पर ही माता शीतला की पूजा इस सरल विधि से कर सकते हैं। माता शीतला की पूजा सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्योदय से पहले की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि बसोड़ा की पूजा सूर्य की किरणों के धरती पर पड़ने से पहले करनी चाहिए।
पूजा स्थल की तैयारी :
सबसे पहले, एक चौकी लें और उस पर पीला या लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद, माता शीतला की प्रतिमा या उनकी फोटो को चौकी पर रखें।
मिट्टी के कलश में पानी भरें और फूल की सहायता से माता को प्रतीकात्मक स्नान कराएं। यह ध्यान रखें कि पानी हमेशा मिट्टी के कलश से ही अर्पित करें क्योंकि मिट्टी ठंडी मानी जाती है और इसका पानी भी शीतला रहता है। यदि प्रतिमा हो तो उन्हें विधिवत स्नान कराएं, लेकिन यदि फोटो है तो केवल पानी छिड़कें।
माता शीतला को चूनरी और तिलक अर्पित करना :
स्नान के बाद माता को नीले रंग की चूनरी ओढ़ाएं। फिर हल्दी का तिलक लगाएं क्योंकि हल्दी माता शीतला की पूजा में विशेष महत्व रखती है। ध्यान रखें, आज के दिन रोली का तिलक न लगाएं क्योंकि रोली गरम मानी जाती है।
अन्य पूजनीय वस्तुओं का तिलक :
माता शीतला के साथ उनके वाहन गंधर्व, भैरव बाबा, और हनुमान जी की भी पूजा करें। माता के हाथ में झाड़ू और जल से भरे कलश पर भी तिलक लगाएं।
माता शीतला की पूजा के बाद की प्रार्थना :
पूजा पूर्ण करने के बाद माता को बासी और ठंडा भोजन अर्पित करें और सुख-समृद्धि एवं रोगमुक्ति की कामना करें।
माता शीतला की पूजा में स्वस्तिक और विशेष भोग का महत्व
हल्दी से स्वस्तिक बनाने की विधि :
हम माता शीतला की पूजा की शुरुआत हल्दी से स्वस्तिक बनाकर करेंगे क्योंकि स्वस्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है। पूजा शुरू करते समय भगवान गणेश, भैरव बाबा और भगवान हनुमान का ध्यान करना चाहिए।
माता शीतला को फूलों की माला अर्पित :
यहां हमने माता दुर्गा को फूलों की माला अर्पित की है। अगर आपके पास फूल आसानी से उपलब्ध हैं, तो उन्हें जरूर अर्पित करें। अगर फूल उपलब्ध न हों, तो बिना फूलों के भी पूजा की जा सकती है। इसके साथ ही हमने माता दुर्गा को कुछ श्रृंगार सामग्री भी भेंट की है।
बसोड़े के लिए बड़कू की माला
यदि आपने होली के समय बड़कू की माला बनाई है, तो उसमें से एक या दो माला निकालकर माता को अर्पित करें। यदि माला उपलब्ध नहीं है, तो चिंता न करें, आप बिना बड़कू माला के भी पूजा कर सकते हैं।
नीम के पत्तों का महत्व
माता शीतला की पूजा में नीम के पत्ते अर्पित करना अनिवार्य है। नीम, हल्दी और अन्य एंटीबायोटिक चीजों का इस पूजा में विशेष महत्व है।
ठंडे दीपक का अर्पण
माता को ठंडा दीपक अर्पित करना चाहिए। यह दीपक आटे से बनाएं और उसमें एक बाती को घी में डुबोकर रखें। ध्यान दें कि इस दीपक को जलाना नहीं है, इसे बिना जलाए ही माता को अर्पित करें।
मिट्टी के बर्तन और ठंडा भोग
पूजा में पांच, सात या ग्यारह मिट्टी के बर्तन चढ़ाने का प्रचलन है। माता को ठंडा भोग अर्पित करना चाहिए, जिसे एक दिन पहले ही तैयार कर रात को रख दिया जाता है।
यदि आपके यहां सप्तमी की पूजा होती है, तो षष्ठी को भोग तैयार करें और यदि अष्टमी की पूजा होती है, तो सप्तमी की रात को यह भोग तैयार करें।
भोग में शामिल मुख्य व्यंजन
भोग में मुख्य रूप से दही-चावल, भिगोया हुआ बाजरा, भिगोया हुआ चना, गूगुले, गुड़, बताशा आदि शामिल होते हैं। इसके अलावा, यदि आप कोई अन्य व्यंजन तैयार करना चाहें, तो वह भी माता को अर्पित कर सकते हैं। शीतला सप्तमी पर भोग सामग्री
शीतला सप्तमी के दिन माता शीतला को वासी भोग अर्पित किया जाता है। भोग की तैयारी एक दिन पहले ही कर ली जाती है। पूजा के लिए हलवा पूरी, दही बड़ा, पकोड़ा, रबड़ी आदि का विशेष रूप से भोग बनाया जाता है। अगले दिन सुबह माता को भोग अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।
भोग अर्पित करने के बाद इसे परिवार के सभी सदस्यों के बीच बांटकर ग्रहण करना चाहिए। इस दिन ताजा भोजन खाना वर्जित है, और वासी भोग ही ग्रहण करना शुभ माना जाता है।
मीठा जल अर्पित करना
माता शीतला को अर्पित किया जाने वाला जल मीठा होना चाहिए। यह जल पूजा के अंत में भोग के साथ अर्पित किया जाता है।
बसोड़े की पूजा में कुंडार और भोग का महत्व
कुंडार में बताशा और मिठास अर्पण
सबसे पहले मिट्टी के कुंडार (मिट्टी के छोटे बर्तन) में एक बताशा रखें। आप बताशे की जगह चीनी या मिश्री भी रख सकते हैं। इसके बाद जो भोग सामग्री आपने तैयार की है, उसे इन कुंडार में थोड़ा-थोड़ा भरें। यदि कुंडार उपलब्ध न हों, तो आप मिट्टी का कोई अन्य बर्तन इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ध्यान रखें कि भोग हमेशा मिट्टी के बर्तन में ही अर्पित करें।
ठंडे पानी से स्नान और विशेष नियम
इस दिन बाल नहीं धोने चाहिए और बिना पानी गर्म किए ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए।
कुंडार कहां अर्पित करें?
आप जितने भी कुंडार लें, उनमें से हर एक को निम्न स्थानों पर अर्पित करें:
1. माता शीतला के स्थान पर – जहां आप माता शीतला की पूजा कर रहे हैं, चाहे वह घर हो या मंदिर।
2. पीपल के पेड़ के नीचे।
3. नीम के पेड़ के नीचे।
4. उस स्थान पर जहां होली जलाई गई थी।
5. जहां आप पीने का पानी रखते हैं।
शेष भोग सामग्री का दान
भोग की बची हुई सामग्री में यदि आप चाहें तो कुछ और मिला सकते हैं। इसके बाद इसे कुम्हार या धोबी/धोबिन को कुछ सिक्कों के साथ दान करें। यदि ये उपलब्ध न हों, तो किसी जरूरतमंद को यह सामग्री दान करें।
माता को ठंडे फल अर्पित करना
मौसम में उपलब्ध ठंडे स्वभाव वाले फलों को माता शीतला को अर्पित करें।
व्रत और शीतला माता की कथा
कई स्थानों पर बसोड़े का व्रत रखा जाता है, जिसमें पूजा के पूरा होने तक कुछ खाया-पीया नहीं जाता। यदि आप व्रत रख रहे हैं, तो बाजरे के कुछ दाने हाथ में लेकर माता शीतला की व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
शीतला माता के व्रत की पौराणिक कथा
एक बार की बात है, शीतला माता ने सोचा कि आज चलो धरती पर देखते हैं कि कौन मेरी पूजा करता है और कौन मुझ पर विश्वास रखता है। यह सोचकर माता शीतला राजस्थान के डूंगरी गांव में आ गईं।
गांव की गलियों में घूमते-घूमते शीतला माता किसी घर के पास से गुजरीं, तभी अचानक किसी ने ऊपर से उबलते चावल का पानी फेंक दिया। वह गरम पानी शीतला माता पर गिर गया, जिससे उनके शरीर में जलन होने लगी। माता के शरीर पर फफोले पड़ गए और पूरा शरीर जलने लगा।
माता शीतला दर्द से तड़प उठीं और गांव में इधर-उधर घूमकर कहने लगीं, “अरे मैं जल गई, मेरा सिर और शरीर जल रहा है, कोई मेरी मदद करो।” लेकिन गांव में किसी ने उनकी मदद नहीं की। यहां तक कि उनके अपने घर वालों ने भी उनकी परवाह नहीं की।
कुम्हारनी और शीतला माता
गांव के एक किनारे एक कुम्हारनी बैठी थी। उसने देखा कि शीतला माता बुरी तरह से जली हुई हैं। उनके शरीर पर फफोले पड़े हुए हैं और वे अपनी जलन सहन नहीं कर पा रही हैं। तब कुम्हारनी ने कहा, “मां, आप यहां आकर बैठिए। मैं आपके शरीर पर ठंडक लगाऊंगी।”
कुम्हारनी ने मटके से ठंडा पानी लाकर शीतला माता के ऊपर डाला और कहा, “मां, मेरे घर में रात की बनाई हुई रबड़ी और दही है। आप उसे खाएं, इससे आपके शरीर को ठंडक मिलेगी।”
जब माता ने वह ठंडी रबड़ी और दही खाई, तो उनके शरीर को ठंडक मिली। इसके बाद माता ने कुम्हारनी से कहा, “बेटी, देखो मेरे सिर पर क्या है।”
जब कुम्हारन ने माता के सिर से जुएं निकालनी शुरू कीं, तो उसने देखा कि माता के सिर के पिछले हिस्से में एक आंख भी है। यह देखकर कुम्हारन डर गई और वहां से भागने लगी। तभी शीतला माता ने कहा, “ठहर बेटी, मैं कोई भूत नहीं हूं। मैं शीतला देवी हूं।”
माता शीतला का असली रूप
इसके बाद माता ने अपना असली रूप धारण किया। माता के इस रूप को देखकर कुम्हारन रोने लगी। माता ने पूछा, “बेटी, क्यों रो रही हो?” कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा, “मां, मेरे घर में चारों ओर गरीबी है। मैं आपको कहां बिठाऊं? मेरे घर में न तो चौकी है और न ही कोई आसन।”
यह सुनकर शीतला माता ने मुस्कराते हुए कहा, “कोई बात नहीं बेटी।” माता ने कुम्हारन को अपने घर के बाहर खड़े गधे के पास ले जाकर कहा, “मुझे इसी पर बैठा दो।” फिर माता ने एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में फर्रा लेकर कुम्हारन के घर से गरीबी को झाड़कर एक टोकरी में भर दिया और दूर फेंक दिया।
इसके बाद माता ने कहा, “बेटी, मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूं। अब मुझसे जो भी वरदान मांगना चाहती है, मांग ले।” कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा, “मां, आप इसी गांव में रहें और जैसे आपने मेरे घर से गरीबी दूर की है, वैसे ही सबके घर से गरीबी दूर करें।”
शीतला माता ने कहा, “जो कोई फाल्गुन मास की अष्टमी को मेरी सच्ची श्रद्धा से पूजा करेगा, मुझे ठंडा पानी और वासी भोग चढ़ाएगा, उसके घर से भी मैं गरीबी दूर कर दूंगी।”
माता शीतला का कुम्हारन को आशीर्वाद
माता ने कुम्हारन को आशीर्वाद देते हुए कहा, “इस कुल्हड़ का पानी अपनी झोपड़ी पर छिड़क देना। कल पूरा गांव आग में जल जाएगा, लेकिन तेरी झोपड़ी को कोई नुकसान नहीं होगा।” यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गईं।
कुम्हारन ने वैसा ही किया। अगली रात गांव में आग लग गई, जिससे पूरा गांव जलकर राख हो गया, लेकिन कुम्हारन की झोपड़ी सही-सलामत रही। यह देखकर गांव के राजा ने कुम्हारन को बुलाया और पूछा, “जब पूरा गांव जल गया, तब तेरी झोपड़ी कैसे बच गई?”
तब कुम्हारन ने राजा को शीतला माता की कृपा के बारे में बताया। यह सुनकर राजा ने पूरे गांव में घोषणा करवाई, “अब से हर साल शीतला अष्टमी के दिन किसी घर में चूल्हा नहीं जलाया जाएगा और हर घर में वासी भोग शीतला माता को चढ़ाया जाएगा।”
इस प्रकार, जो कोई इस कथा को सुनता और सुनाता है, शीतला माता उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। शीतला माता की जय।
झाड़ू और सूप की पूजा
माता शीतला के साथ-साथ झाड़ू और सूप की भी पूजा करें। कथा समाप्त होने के बाद, बाजरे के दाने माता के सामने अर्पित कर दें।
बसोड़ा पूजा में परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना
शीतला माता से प्रार्थना
पूजा के बाद हम माता शीतला से अपने परिवार और बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य तथा सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करेंगे। माता से निवेदन करेंगे कि हमारे बच्चों को किसी भी प्रकार के वायरल या संक्रमण रोग, जलन वाला बुखार, पीलिया, त्वचा रोग, फोड़े-फुंसी, चेचक आदि से बचाएं। साथ ही, यदि माता दुर्गा की पूजा में हमसे कोई गलती हुई हो, तो उसके लिए भी क्षमा मांगेंगे।
बसोड़ा पूजा के दिन क्या-क्या वर्जित है?
शीतला माता की पूजा के दिन कुछ कार्यों को करने की सख्त मनाही होती है। इन वर्जित कार्यों को जानना और उनका पालन करना आवश्यक है:
1. झाड़ू और पोंछा न लगाएं
इस दिन घर की सफाई न करें। घर की पूरी सफाई एक दिन पहले ही कर लें।
2. सिलाई-कढ़ाई और बुनाई न करें
इस दिन सुई-धागा, सिलाई मशीन आदि का प्रयोग वर्जित है।
3. अग्नि का उपयोग न करें
गैस चूल्हा या किसी भी प्रकार की आग का इस्तेमाल न करें। इस दिन पहले से पकाया हुआ ठंडा खाना ही खाया जाता है।
4. सूप का उपयोग न करें
यदि आपके घर में सूप (अनाज साफ करने वाला) है, तो उसका भी प्रयोग इस दिन न करें। अनाज साफ करने या घर की ऐसी सफाई से बचें जिससे धूल उड़ती हो।
दान का महत्व
बसोड़ा के दिन यथासंभव दान करना बहुत शुभ माना जाता है। आप गाय, कुत्ते आदि को भोजन कराएं। अगर पास में गधा दिखे, तो उसे चारा या अनाज खिलाएं।
घर में जल का छिड़काव
माता शीतला को अर्पित किए गए जल को घर में छिड़कें। यह जल सभी के लिए शुभ होता है। इसे घर के हर सदस्य की आंखों में थोड़ा-थोड़ा लगाएं।
मंदिर में पूजा का विशेष महत्व
यदि आप मंदिर गए हैं और वहां माता की प्रतिमा की पूजा की है, तो प्रतिमा से बहा हुआ जल एक बर्तन में इकट्ठा करें। इसे अपने घर लाकर घर के हर सदस्य को लगाएं।