षटतिला एकादशी माघ माह के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन उचित रूप से तिल का दान, तिल संबंधित पूजा षटतिला एकादशी व्रत कथा का भी महत्व होता है।
तिल का दान पितृ दोष, व्रण दोष और अन्य कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है।
इस दिन उपवास रखने से पुण्य कमाया जाता है और पुरुष के पाप समाप्त हो जाते हैं।
तिल का सेवन करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि हो जाती है।
इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा, उपवास रखकर भक्ति में लीन रहने और तिल का दान करने के लाभांवित होने की संभावना है।
सबसे पहले विधि पूर्वक षटतिला एकादशी का पूजन करना चाहिए फिर षटतिला एकादशी व्रत कथा प्रारंभ करनी चाहिए।
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षटतिला एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है किसी, गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी, वह सदैव व्रत पूजन आदि में लगी रहती थी, परंतु उसने कभी भी कोई भी दान पुण्य नहीं किया था। वह ब्राह्मणी भगवान श्री हरि विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी।
एक बार उसने भगवान विष्णु का एक माह तक पूजन आदि किया, जिससे उसका शरीर आती दुर्बल हो गया। यह देखकर भगवान श्री हरि विष्णु ने सोचा, इस ब्राह्मणी ने मेरे व्रत पूजन से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, जिससे इसको बैकुंठ की प्राप्ति होना निश्चित है।
परंतु उसने आज तक कभी भी अन्य आदि का दान नहीं किया है,जिसके कारणवष इसके शरीर की मुक्ति होना मुश्किल है।
ऐसा सोचकर भगवान श्री हरि विष्णु ने एक गरीब व्यक्ति का वेश धारण किया और उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने चले गए। भिक्षा मांगने आए गरीब व्यक्ति को देखकर ब्राह्मणी को गुस्सा आ गया। ब्राह्मणी ने उसके भिक्षा पात्र में मिट्टी का एक ढेला डाल दिया। भगवान श्री हरि विष्णु ढेला लेकर वापस वैकुंठ लोक आ गए।
कुछ समय बाद उसे ब्रह्माणी की मृत्यु हो गई। जब वह स्वर्ग पहुंची तो मिट्टी दान करने के कारण उसे स्वर्ग में एक महल मिला।जब वह महल के अंदर गई तब वह हैरान हो गई, उसे महल के अंदर कुछ भी नहीं था, वह महल बिल्कुल खाली था।
वह भगवान श्री हरि के पास गई और हाथ जोड़कर कहने लगी ,’ भगवान मैं तो सच्चे मन से आपकी पूजा आदि करें हैं, परंतु मेरा घर अन्य वस्त्र आदि से शून्य क्यों है? इसका क्या कारण है?
इस पर भगवान श्री हरि विष्णु बोले,’ तुम अपने महल में जाओ और उसका दरवाजा अंदर से बंद कर दो, कुछ समय बाद तुम्हारे पास देवकन्या आएंगी तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का महत्व षटतिला एकादशी व्रत कथा आदि सुनना। इसके बाद ही उन्हें दरवाजा खोलना।
ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया। जब देव कन्या ने उसे षटतिला एकादशी व्रत कथा और महत्व आदि सुना दिया, तब ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला और देव कन्याओं ने देखा कि ब्राह्मणी अभी भी मनुष्य रूप में है। तब ब्राह्मणी ने देव कन्याओं के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत पूजन आदि किया।
षटतिला एकादशी व्रत कथा और पूजन से ब्राह्मणी अतिरूपवान हो गई और उसका महल अन्न,धन आदि भंडारों से भर गया।
है श्रीहरि विष्णु भगवान जय श्री कृपा अपने ब्राह्मणी पर करी वैसे ही हम सब पर भी बरसाना।साथी इस कथा को सुनते, कहते और हुंकारा भरने वाले सभी पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखना।
।।षटतिला एकादशी व्रत कथा।।
।।बोलो भगवान श्री हरि विष्णु की जय।।
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