शनि ग्रह का परिचय
सबसे पहले, शनि ग्रह के बारे में बात करते हैं। आपने ग्रहों में देखा होगा कि शनि को न्याय का देवता कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि शनि आपके अनुकूल हैं, तो कोई भी आपको जीवन में परेशान नहीं कर सकता। लेकिन यदि शनि आपके विपरीत हैं, तो कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यदि आप शनि से संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शनिवार व्रत करें। यह माना जाता है कि इससे जीवन में शनि से संबंधित परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
शनिवार व्रत के बारे में बात करें तो शनि देव ने भगवान शंकर को अपना गुरु माना, श्रीकृष्ण के भक्त थे और हनुमान जी का बहुत सम्मान करते थे। इसलिए, शनिवार को इनमें से किसी एक की पूजा करें, उन्हें अपना आदर्श मानें।
शनिवार के दिन व्रत रखें, शनि देव को तेल, फूल और नीले कपड़े अर्पित करें। शनि देव को यह सब बहुत प्रिय है।
महिमा
- शनिवार का व्रत करने से शनि दोष खत्म होता है
- शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से छुटकारा मिलता है
- इससे नौकरी और व्यापार में सफलता मिलती है
- सुख-समृद्धि, मान-सम्मान, और धन-यश की प्राप्ति होती है
- घर में सुख और शांति रहती है
- रोग से भी छुटकारा मिलता है
- शनि व्रत करने से राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है
- मनुष्य की सभी मंगलकामनाएं सफल होती हैं
शनिवार व्रत नियम
- व्रत का संकल्प केवल उस वर्ष लें जब खरमास न हो।
- व्रत केवल महीने के शुक्ल पक्ष में ही रखें।
- संकल्प लेते समय शनि देव से पूरी भक्ति के साथ प्रार्थना करें और अपने संकल्प में संख्या 11 या 21 रखें।
- व्रत के दौरान पूरा दिन बिना खाए-पीए रहना श्रेष्ठ माना जाता है। यदि ऐसा संभव न हो तो आप सुबह फल खा सकते हैं और दिनभर शनि देव का स्मरण कर सकते हैं।
शनिवार व्रत सेवा और दान का महत्व
यह माना जाता है कि शनि देव गरीब, पीड़ित और बीमार व्यक्तियों में निवास करते हैं।
- शनिवार को मजदूरों, गरीबों और बुजुर्गों को भोजन कराएं।
- जरूरतमंदों को कंबल दान करें।
- यह सब करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और उनके साथ साढ़ेसाती के प्रभाव में भी शुभता आती है।
शनिवार व्रत कथा
नौ ग्रहों का विवाद
एक समय की बात है, सभी नौ ग्रह – सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु के बीच यह विवाद हो गया कि उनमें से सबसे महान कौन है। वे आपस में लड़ने लगे और जब कोई समाधान नहीं निकला तो वे देवताओं के राजा इंद्र के पास गए।
राजा विक्रमादित्य का न्याय
देवता इस विवाद को सुलझाने में असमर्थ रहे और उन्होंने सुझाव दिया कि पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो न्यायप्रिय हैं और इस निर्णय को कर सकते हैं। सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास गए और अपनी समस्या बताई। राजा ने समस्या का समाधान करते हुए नौ सिंहासन बनवाए – सोना, चांदी, पीतल, सीसा, टिन, जस्ता, अभ्रक और लोहे से। इन सिंहासनों पर ग्रहों को बैठने के लिए कहा। जो सबसे अंत में बैठा, वह सबसे छोटा घोषित हुआ। शनि देव लोहे के सिंहासन पर बैठे और उन्हें सबसे छोटा कहा गया।
शनि देव का क्रोध
शनि देव ने सोचा कि राजा ने जानबूझकर ऐसा किया है और क्रोधित होकर कहा, “राजा, आप मुझे नहीं जानते। जब मेरी साढ़ेसाती आती है, तो बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश होता है। श्रीराम को साढ़ेसाती के कारण वनवास जाना पड़ा और रावण की लंका बंदरों की सेना ने तबाह कर दी। अब आपकी साढ़ेसाती भी आने वाली है।”
राजा विक्रमादित्य की साढ़ेसाती
कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य की साढ़ेसाती आ गई। एक दिन एक घोड़ा व्यापारी आया और राजा के लिए एक विशेष घोड़ा लाया। राजा जब उस घोड़े पर सवार हुए, तो घोड़ा जंगल की ओर भाग गया और वहां गायब हो गया। राजा भूखे-प्यासे भटकते रहे। एक गाय चराने वाले ने उन्हें पानी पिलाया।
शनि दशा की यातना
राजा विक्रमादित्य को एक व्यापारी के घर शरण मिली। वहां उन्होंने देखा कि एक खूंटी पर एक हार टंगा हुआ है। खूंटी ने धीरे-धीरे उस हार को निगल लिया। कुछ समय बाद पूरा हार गायब हो गया। राजा पर चोरी का आरोप लग गया। उन्हें चोर मानकर उनके हाथ-पैर काट दिए गए और शहर से बाहर फेंक दिया गया। एक तेली ने उन पर दया की और उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाया।
बारिश का मौसम और राजकुमारी का प्रेम
बारिश के मौसम में राजा ने राग मल्हार गाना शुरू किया। जिस शहर में वह रह रहे थे, वहां की राजकुमारी ने उनकी आवाज सुनकर उन्हें बहुत पसंद किया। राजकुमारी ने मन ही मन निश्चय किया कि वह केवल उसी व्यक्ति से विवाह करेगी, जिसने यह गाना गाया है। उसने अपनी दासी को उस व्यक्ति की तलाश में भेजा।
दासी ने बताया कि वह चौरंगी (कटे हुए हाथ-पैर वाला व्यक्ति) है, लेकिन राजकुमारी नहीं मानी। अगले दिन राजकुमारी ने उपवास शुरू कर दिया। जब उसे बहुत समझाया गया, तब भी वह नहीं मानी।
तेली के पास संदेश और विवाह
राजा के बारे में जानने के बाद, तेली को बुलाकर विवाह की तैयारी करने के लिए कहा गया। राजा का विवाह राजकुमारी से हुआ।
शनि देव का प्रकट होना और आशीर्वाद
एक दिन प्रार्थना के दौरान शनि देव राजा के सपने में प्रकट हुए और बोले, “हे राजा, देखो तुमने मुझे अपमानित किया था, इसलिए तुम्हें इतना कष्ट सहना पड़ा।”
राजा ने शनि देव से क्षमा मांगी और प्रार्थना की, “हे शनि देव, जैसा आपने मुझे कष्ट दिया, वैसा किसी और को न देना।”
शनि देव ने राजा से कहा, “जो मेरी कथा सुनेंगे और व्रत करेंगे, उन्हें मेरे कारण कोई कष्ट नहीं होगा। जो ध्यानपूर्वक चींटियों को आटा देंगे, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी।” शनि देव ने राजा के कटे हुए हाथ-पैर वापस कर दिए।
शनि देव की कृपा
सुबह जब राजकुमारी ने राजा को देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गई। तब उसे बताया गया कि वह उजैन राजा विक्रमादित्य हैं। सभी बहुत खुश हुए।
राजा के बारे में सुनकर लोग और सेठ उनके चरणों में गिरकर माफी मांगने लगे। राजा ने कहा, “यह शनि देव की परीक्षा थी, इसमें किसी का दोष नहीं।”
सेठ ने फिर भी राजा से निवेदन किया कि जब तक वे उनके घर आकर भोजन नहीं करेंगे, तब तक उन्हें शांति नहीं मिलेगी।
अन्य लोगों ने भी अपने-अपने घरों में विविध प्रकार के व्यंजनों के साथ राजा का स्वागत किया। जब सबने देखा कि जो खूटी हार निगल गयी थी वही अब हार उगल रही थी, तो सेठ ने राजा का धन्यवाद किया।
सेठ ने राजा से अपनी बेटी श्रीकनवरी से विवाह करने का अनुरोध किया। राजा ने इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
राजा का स्वागत
कुछ समय बाद राजा अपनी दो रानियों, मान भवानी और श्रीकनवरी के साथ उज्जैन शहर गए। उज्जैन पहुंचने पर नगरवासियों ने राजा का सीमा पर भव्य स्वागत किया।
राजा विक्रमादित्य वापस अपने राज्य पहुंचे। पूरे राज्य में दीप जलाए गए और उत्सव मनाया गया। राजा ने घोषणा की कि शनि देव सबसे महान हैं। तब से शनि देव की पूजा और कथा प्रचलित हो गई।
शनि देव की कृपा से राजा का जीवन पुनः सुख-शांति से भर गया।
कथा सुनने का लाभ
जो भी इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस कथा को शनिवार के व्रत के दिन अवश्य पढ़ना चाहिए।
व्रत का उद्यापन
जब आपका संकल्प पूरा हो जाए, तो व्रत का उद्यापन अवश्य करें।
- व्रत के अंतिम दिन शनि देव की पूजा करें।
- शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
- ब्राह्मणों और मजदूरों को दान दें।
- काले तिल और सरसों के तेल से शनि देव का अभिषेक करें।
निष्कर्ष
शनिवार के दिन शनि देव की पूजा, व्रत और दान से जीवन में शुभता आती है। यह न केवल शनि से संबंधित समस्याओं का समाधान करता है, बल्कि आपके जीवन को सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करता है।
अधिक जानकारी के लिए : शनि चालीसा