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Sawan Somvar Vrat Katha: पढ़े सावन सोमवार व्रत की कथा व शिव आरती

Anushka Mishra
Last updated: June 3, 2025 4:03 pm
By Anushka Mishra
12 Min Read
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सावन सोमवार व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही शुभ और फलदायी व्रत है।

Contents
सावन सोमवार व्रत कथाशिव जी की आरती

सावन महीना शिव जी का प्रिय महीना है और इस महीने के हर सोमवार को भक्त व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध, शहद आदि चढ़ाते हैं।

यह व्रत खासतौर पर अविवाहित लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए और विवाहित महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं।

मान्यता है कि सावन सोमवार व्रत रखने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं। यह व्रत भक्तों को मानसिक शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है।

यह भी पढ़े: सावन सोमवार 2025 की तिथियां व पूजन व व्रत की विधियां

सावन सोमवार व्रत

सावन सोमवार व्रत कथा

एक नगर में एक बहुत धनवान साहूकार रहता था जिसके घर में धान की कमी नहीं थी परंतु उसकी एक बहुत बड़ा दुख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था।

वह इसी चिंता में दिन-रात लगा रहता था और पुत्र की कामना के लिए प्रत्येक सोमवार को शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था तथा स्वयं कल को शिव जी के मंदिर में जाकर शिव जी के विग्रह के सामने दीपक जलाया करता था।

उसके उसे भक्ति भाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिवाजी महाराज से कहा- हे महाराज, यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।

शिव जी ने कहा है पार्वती यह संसार कर्म क्षेत्र है। किसान खेत में जैसा बीज होता है वैसा ही फल काटता है।

इसी प्रकार इस संसार में जो जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल होते हैं पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा महाराज जब यह आपका अनन्य भक्त है और यदि इसको किसी प्रकार का दुख है तो आपको अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपकी सेवा व्रत और पूजन क्यों करेंगे?

पार्वती जी का ऐसा आग्रह है देख शिवाजी महाराज कहने लगे है पार्वती इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अति दुखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वार देता हूं परंतु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक की ही जीवित रहेगा।

इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा इससे अधिक मैं और कुछ नहीं कर सकता। यह सब बातें साहूकार सुन रहा था। इससे उसको ना कुछ प्रसन्नता हुई और ना ही कुछ दुख हुआ। वह पहले जैसा ही शिवाजी महाराज का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ कल व्यतीत हो जाने पर साहू कल की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।

साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परंतु जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उसे बालक की माता ने उसके पिता से उसका विवाह आदि करने के लिए कहा तो वह साहूकार कहने लगा कि अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा अपने पुत्र को काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा।

फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुलाकर उसकी बहुत साधन देकर कहा तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जो यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन करते जो। वह दोनों मां और भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन करने जा रहे थे।

रास्ते में एक शहर पड़ा। उसे शहर में राजा की कन्या की विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह करने के लिए बारात लेकर आया था वह एक आंख से कहना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं पर को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अर्चन पैदा ना करें इस कारण जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों ना दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चला लिया जाए।

ऐसा विचार कर वर्ग के पिता ने उसे लड़के और मामा से बात की तो वह राजी हो गए। फिर उसे लड़के को वर्क के कपड़े पहनना तथा घोड़ी चढ़ा कन्या के दरवाजे पर ले गए और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया।

फिर वर्ग के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से कर लिया जाए तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा ने कहा यदि आप पैरों का और कन्यादान के भी काम को भी कर दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले में आपको बहुत कुछ धन दूंगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया।

परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी के पाले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं।

लड़के के जाने के पश्चात उसे राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी के पाले पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। मेरा विवाह जिसके साथ हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है।

राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई। उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया।

जब लड़के की आयु 12 वर्ष की हो गई तो उसी दिन उन्होंने यज्ञ रचा था की लड़के ने अपने मां से कहा मामा जी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है मामा ने कहा अंदर जाकर सो जाओ लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए।

जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसे बड़ा दुख हुआ और उसने मन में विचार किया कि यदि मैं अभी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः इसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के पश्चात रोना पीटना आरंभ कर दिया।

सहयोग वर्ष इस समय शिव पार्वती जी भी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगी महाराज कोई दुखिया रो रहा है और इसके कष्ट को दूर कीजिए। जब शिव पार्वती ने पास जाकर देखा तो वह एक लड़का मुर्दा पड़ा था।

पार्वती जी कहने लगी महाराज यह तो इस सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था। शिवजी कहने लगे हैं पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी। वह यह भोग चुका। तब पार्वती जी ने कहा है महाराज इस बालक को और आयु दो नहीं तो उसके माता-पिता तड़प तड़प का मर जाएंगे।

पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिव जी ने उसकी जीवन वरदान दिया और शिवाजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिवजी और पार्वती जी कैलाश पर्वत को चले गए। तब वह लड़का और मामा इस प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन करते अपने घर की ओर चल पड़े।

रास्ते में उस शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होंने यह की आरंभ कर दिया तो उसे लड़के के ससुर ने उसकी पहचान लिया और अपने महल में ले आए। महल में उसकी बड़ी खातिर की और साथ ही बहुत से दास दासियों सहित आदर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया।

जब वह अपने शहर के निकट आए तो मां ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूं। जब लड़के का मां लड़के के घर पहुंचा तो देखा कि लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे हैं और यह प्रण कर रहे हैं कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आएगा तो हम राजी खुशी नीचे आ जाएंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण खो देंगे।

इतने में उसे लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है और उनका विश्वास नहीं आया तब उसकी मां ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री और बहुत सारा धन साथ लेकर आया है।

तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पड़ता या सुनता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

।। इस प्रकार सावन सोमवार व्रत की कथा समाप्त हुई।।

शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ऊं जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

शिव जी के बारे में अधिक जाने

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ByAnushka Mishra
An enthusiast author at Marg Darshan who holds the proficiency in the fields of Finance, Ethics and Sports.
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