सरस्वती चालीसा का महत्व
श्री सरस्वती माता ज्ञान और बुद्धि की देवी हैं। उनके चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में अद्भुत और चमत्कारी लाभ देखने को मिलते हैं। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ सभी वर्ग के लोगों के लिए उपयोगी है। यह सच्ची भक्ति और विश्वास के साथ किया जाए, तो व्यक्ति के जीवन में कई चमत्कारी परिवर्तन होते हैं।
मां सरस्वती न्याय, ज्ञान, बुद्धि और भविष्य की देवी हैं। श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने से मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। मां की कृपा से व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान होता है, और सुख, सौभाग्य, समृद्धि और तेजस्विता का आगमन होता है।
सरस्वती चालीसा का साधना विधि
यहाँ हम सरस्वती चालीसा की साधना के बारे में चर्चा करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि माता सरस्वती की कृपा से शिक्षा के क्षेत्र में कैसे सफलता प्राप्त की जा सकती है। माँ सरस्वती की पूजा के विषय में लोगों का मानना है कि केवल माता सरस्वती की आराधना से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
सरस्वती चालीसा का पाठ करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका विशेष नियम यह है कि किसी भी पंचमी, बुधवार या बुधवार की शाम को अपने कक्ष में बैठकर तुलसी का एक पत्ता अपने सामने रखें और सरस्वती मंत्र का जप करें।
मंत्र
“ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।”
इसके साथ ही सरस्वती चालीसा का पाठ करें। इसे 11 बार पढ़ना सुरक्षित और प्रभावी माना गया है। यदि आप इसे 11 बार पढ़ते हैं, तो यह अधिकतम 15 से 20 मिनट में पूरा हो जाएगा। पाठ के दौरान तुलसी का पत्ता अपने सामने रखें और उसके बाद चालीसा का पाठ करें।
यह साधना 11 दिनों तक करनी होती है। इस प्रक्रिया को नियमित रूप से करने से मानसिक खिड़कियाँ खुलने लगती हैं, और ऐसा महसूस होता है जैसे सोचने और समझने की शक्ति वापस लौट आई हो। आप पाएंगे कि आप सही समय पर सही निर्णय ले रहे हैं।
इस साधना से:
- बुद्धि और वाणी में सुधार: आपकी बोलने की क्षमता बहुत तेज़ी से विकसित होती है, जिससे आपकी बातों का प्रभाव दूसरों पर पड़ता है।
- संबंध सुधार: यह साधना मित्रों की संख्या बढ़ाती है और शत्रुओं की संख्या कम करती है।
- मार्केटिंग क्षमता में वृद्धि: आपकी बातचीत और अभिव्यक्ति की कला को निखारती है।
- सरकारी नौकरी में लाभ: सरकारी नौकरी करने वाले व्यक्तियों के लिए यह साधना विशेष रूप से फलदायी मानी गई है।
साधना के नियम
- साधना के दौरान धूम्रपान और मांसाहार से बचें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- गरीबों को भोजन दान करें।
- सुबह 4 बजे से 7 बजे के बीच चालीसा का पाठ करें।
पाठ के बाद तुलसी का पत्ता ग्रहण कर लें। इसे करना बहुत सरल और आसान है। 11 दिनों तक इसे करने से आप अपने अंदर सकारात्मक बदलाव महसूस करेंगे।
यह ज्ञान साधना का सरल और प्रभावी उपाय है। आशा है कि आप इस विधि को अपने जीवन में अपनाएंगे और इसके अद्भुत परिणाम देखेंगे।
श्री सरस्वती चालीसा के लाभ
- छात्रों के लिए लाभकारी:
- सरस्वती चालीसा का पाठ छात्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
- यह उनकी पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ाता है।
- प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए यह अत्यंत उपयोगी है।
- व्यवसायियों और युवाओं के लिए उपयोगी:
- यह अपने व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
- मानसिक संतुलन बनाए रखने और कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
- सुखी वैवाहिक जीवन:
- सरस्वती चालीसा के पाठ से पारिवारिक संबंध सुधरते हैं।
- परिवार में एकता स्थापित होती है।
- यह दांपत्य जीवन को सुखद और संतोषजनक बनाता है।
- ज्ञान, बुद्धि और कौशल में वृद्धि:
- मां सरस्वती की कृपा से व्यक्ति के ज्ञान, शिक्षा और बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है।
- एक अज्ञानी व्यक्ति भी ज्ञानी और बुद्धिमान बन सकता है।
- कलाकारों और संगीत प्रेमियों के लिए:
- सरस्वती चालीसा का पाठ कलाकारों और संगीत प्रेमियों के लिए अत्यंत फलदायी होता है।
- यह उनकी कला और कौशल में निखार लाता है।
- शत्रुओं पर विजय:
- मां सरस्वती की कृपा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और शत्रुता समाप्त होती है।
- मां का आशीर्वाद व्यक्ति को शत्रु को मित्र बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
- जीवन की कठिनाइयों का समाधान:
- सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन की सबसे कठिन समस्याएँ भी सरल हो जाती हैं।
- यह व्यक्ति को इतना बलवान और बुद्धिमान बनाता है कि वह कठिन से कठिन कार्यों को आसानी से कर सकता है।
- दरिद्रता और अभाव का नाश:
- यह पाठ गरीबों की दरिद्रता को दूर करता है।
- धन और वैभव की संभावना बढ़ती है।
- जीवन में खुशियाँ आती हैं।
सरस्वती चालीसा
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
सरस्वती चालीसा चौपाई
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अंदर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहुता। तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप। डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु। मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय तू ही दे दातु ॥॥
निष्कर्ष
यह माना जाता है कि जब श्री राम को वनवास का कष्ट सहना पड़ा, तब उन्होंने कई राक्षसों और दुष्टों का नाश किया, जिससे समाज का कल्याण हुआ। इसी प्रकार, मां सरस्वती की कृपा से कठिन समय में भी व्यक्ति के जीवन में छुपा हुआ अच्छा पक्ष उजागर होता है।
श्री सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी बदलाव होते हैं। कठिन से कठिन कार्य सहज हो जाते हैं, और व्यक्ति का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है।