पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वाले को प्रातः स्नान करके भगवान अच्युत (श्री विष्णु) की पूजा करनी चाहिए। भगवान की आरती कर उन्हें भोग लगाएं।
इसके अतिरिक्त पूजा के लिए अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार और लौंग का उपयोग करें। इस दिन दीपदान साथ ही रात्रि जागरण का विशेष महत्व बताया गया है। इस लेख में आपको सफला एकादशी व्रत की पूरी जानकारी मिलेगी जैसे की तिथि, महत्व, कथा,पूजा विधि और व्रत नियम |
तिथि और शुभ मुहूर्त
सफला एकादशी का पावन पर्व इस वर्ष 26 दिसंबर 2014, गुरुवार को मनाया जाएगा।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 26 दिसंबर 2014 को सुबह 3:33 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 27 दिसंबर 2014 को सुबह 5:57 बजे
सफला एकादशी व्रत का महत्व
इस व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से भगवान श्री विष्णु की पूजा करने से भक्त को पापों से मुक्ति मिलती है | हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। आइए जानते हैं व्रत की पूजा विधि और नियम।
सफला एकादशी व्रत की पूजा विधि
सबसे पहले व्रत रखने वाले को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान श्री विष्णु की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्र अर्पित करें।
धूप, दीप, चंदन, पुष्प, फल, तुलसी पत्र और नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं।
भगवान अच्युत को नारियल, सुपारी, अनार, आंवला और लौंग अर्पित करें।
भगवान श्री विष्णु की आरती करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
इस दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक जलाएं।
सफला एकादशी व्रत के नियम
इस व्रत में निर्जला (बिना जल ग्रहण किए) व्रत रखने का विधान है। यदि निर्जला व्रत संभव न हो, तो फलाहार या दूध ग्रहण किया जा सकता है।
तामसिक भोजन उदाहरण के तौर पर लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का पूर्णतः त्याग करें।
एकादशी के दिन निंदा, अपशब्द और बुरे विचारों से दूर रहें।
सफला एकादशी पर रात्रि जागरण करना अत्यंत फलदायी माना गया है। इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा, भजन और कथा सुनने का विशेष महत्व है।
इस प्रकार एकादशी व्रत का समापन द्वादशी तिथि पर पारण (अन्न ग्रहण) करके किया जाता है। पारण का समय ब्रह्म मुहूर्त या शुभ समय में होता है।
सफला एकादशी की कथा
एक बार महिष्मत नामक राजा के चार पुत्र थे। उनका सबसे छोटा पुत्र, लुका, बड़ा दुष्ट और पापी था। वह अपने पिता के धन को बुरी आदतों में बर्बाद करता रहता था। राजा उसके इस आचरण से बहुत दुखी होकर उसे देश निकाला दे देते हैं।
लेकिन अपनी दुष्ट आदतों के कारण लुका सुधर नहीं पाया।
एक दिन, लगातार तीन दिनों तक उसे भोजन नहीं मिला। भूख से व्याकुल होकर वह भोजन की तलाश में एक साधु की कुटिया पर पहुंचा। उस दिन सफला एकादशी थी।
साधु ने उसे मधुर वाणी में सत्कार करते हुए भोजन दिया। साधु के इस व्यवहार ने लुका के जीवन में परिवर्तन ला दिया। उसने सोचा, “मैं भी मनुष्य हूं, फिर मैं इतना दुराचारी और पापी क्यों हूं?”
यह सोचकर वह साधु के चरणों में गिर पड़ा। साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया। धीरे-धीरे लुका का चरित्र निखरने लगा और वह पाप से दूर हो गया।
साधु की आज्ञा से वह नियमित रूप से एकादशी का व्रत रखने लगा। जब उसका जीवन पूरी तरह से बदल गया, तो साधु ने अपने असली स्वरूप का प्रकट किया।
साधु के रूप में उसके पिता, राजा महिष्मत, उसके सामने खड़े थे। पिता ने उसे क्षमा कर दिया और राज्य संभालने की अनुमति दी। लुका ने आदर्श राजा बनकर राज्य का संचालन किया और आजीवन सफला एकादशी का व्रत करता रहा।
संदेश
यह व्रत न केवल आत्मा को शुद्ध करता है बल्कि जीवन में सफलता और शांति भी प्रदान करता है। इस प्रकार व्रत के माध्यम से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, और सभी संकट दूर हो जाते हैं।
निष्कर्ष
अंततः यह थी सम्पूर्ण जानकारी सफला एकादशी व्रत की तिथि, महत्व, कथा,पूजा विधि और व्रत नियम |व्रत हमेशा श्रद्धा, संयम और निष्ठा से करना चाहिए। इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और पुण्य की प्राप्ति होती है।