जब आप श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो भगवान श्री राम की कृपा से आपके जीवन की चारों दिशाओं से रक्षा होती है। आप सुरक्षित रहते हैं, आपके सभी बिगड़े हुए कार्य पूरे होते हैं, परिवार की समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है, नौकरी में तरक्की मिलती है, बच्चों को सद्बुद्धि मिलती है और किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का आपके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
जब भी आप श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें, तो इसे शुक्ल पक्ष के गुरुवार को करें। भगवान विष्णु जगत के रक्षक हैं, इसलिए जब आप उनकी पूजा करते हैं, तो आपके सभी कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
श्री राम रक्षा स्तोत्र का विशेष महत्व
जब आप भगवान श्री राम की आराधना करते हैं, उन्हें प्रणाम करते हैं और उनका रक्षा स्तोत्र पढ़ते हैं, तो आपको हर दिशा में सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। आप महसूस करेंगे कि आपको एक विशेष स्थान और मान्यता दी जा रही है।
आप सोच सकते हैं कि यह क्यों हो रहा है। इसका उत्तर भी आपको स्वयं मिलेगा। जब आप नियमित रूप से श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करेंगे, तो इसके अद्भुत परिणाम आपके सामने प्रकट होंगे।
विशेष अवसरों पर पाठ करें
- राम नवमी के दिन इसका पाठ करना सर्वोत्तम है।
- किसी भी एकादशी पर इसे पढ़ सकते हैं।
- पूर्णिमा के दिन भी इसका पाठ किया जा सकता है।
यदि आप अपने मन की कोई विशेष इच्छा पूरी करना चाहते हैं, तो इन तिथियों का ध्यान अवश्य रखें। हालांकि, श्रीराम रक्षा स्तोत्र को किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, क्योंकि भगवान श्री राम की पूजा में किसी प्रकार का विकल्प नहीं है।
पाठ करने की विधि
जब भी आप श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें, तो सबसे पहले भगवान गणेश, अपने गुरु, और अपने देवी-देवताओं का आह्वान करें। उन्हें प्रणाम करें, नमन करें, और उनकी वंदना करें। इसके बाद ही श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ आरंभ करें।
श्री राम रक्षा स्तोत्र विधि
यदि आप किसी विशेष कार्य के लिए श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं, तो पहले अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें। आप इसे विश्व शांति के लिए पढ़ रहे हों, या समाज के सभी लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए। जब आप इस प्रकार श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो भगवान श्री राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्री रामचंद्र कृपालु भजमन
पाठ के दौरान यदि आप मंत्र “ॐ श्री रामचंद्र कृपालु भजमन, हरण भवभय दारुणम्, नवकंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजरुणम्” का उच्चारण करते हैं, तो यह आपके मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।
स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं पाठ
श्री राम रक्षा स्तोत्र को किसी भी व्यक्ति द्वारा पढ़ा जा सकता है। महिलाएँ, माताएँ, बहनें, सभी इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ सकती हैं, चाहे वह संस्कृत में हो या हिंदी में।
पाठ के दौरान सावधानियाँ
- पाठ को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
- इसे कभी भी अशुद्ध या अपमानजनक तरीके से न करें।
- पाठ करते समय अपनी वाणी और भावनाओं को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित रखें।
श्री राम रक्षा स्तोत्र के चमत्कारी परिणाम
जब आप श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो आप अद्भुत और चमत्कारी परिणाम देखेंगे। यह आपके मन में एक अलग ऊर्जा और शांति का संचार करता है।
श्री राम रक्षा स्तोत्र
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥
राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
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आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
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श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥