प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक विशेष व्रत है, जो हर माह की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
यह व्रत प्रदोष काल में मनाया जाता है, जब दिन और रात मिलते हैं।
मई 2025 में दो महत्वपूर्ण प्रदोष व्रत- शुक्र प्रदोष और शनि प्रदोष आने वाले हैं, जिनका धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।
इस लेख में हम मई माह के प्रदोष व्रत की तिथि, पूजा विधि, व्रत नियम, उपाय, मंत्र, लाभ और उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ जानेंगे।
मई 2025 के प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्त
- शुक्र प्रदोष व्रत – 9 मई, शुक्रवार
पूजा का शुभ समय: शाम 07:13 से रात 09:16 बजे तक
- शनि प्रदोष व्रत – 24 मई, शनिवार
पूजा का शुभ समय: शाम 07:23 से रात 09:23 बजे तक
प्रदोष व्रत के दिन शाम के प्रदोष काल में शिव की पूजा करना बहुत शुभ होता है।
यह काल सूर्यास्त के लगभग 45 मिनट बाद शुरू होता है और लगभग ढाई घंटे तक रहता है।
इन तिथियों का चयन व्रत की पूर्णता और फलदायीता में मदद करता है।
यह व्रत शुक्र और शनि दोनों ग्रहों से जुड़ी ऊर्जा को संतुलित करने के लिए बहुत उपयोगी है।
इसलिए इन तिथियों को ध्यान में रखते हुए व्रत और पूजा को भक्ति भाव से करना चाहिए।

प्रदोष व्रत का महत्व और विशेषता
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा पाने का एक पवित्र माध्यम है।
यह व्रत जीवन के तीनों दोषों- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक को दूर करता है।
इसे प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि को करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और नियम से करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है, सभी कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
यह व्रत ग्रह दोषों को दूर करने, दांपत्य जीवन में सामंजस्य, आर्थिक समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति में सहायक है।
शिव भक्तों के लिए यह व्रत एक साधना भी है, जो आत्मशुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के विस्तार में सहायक है।
व्रत की संपूर्ण विधि
प्रदोष व्रत सूर्योदय से शुरू होकर रात्रि में प्रदोष काल तक चलता है।
व्रती को सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
यह व्रत निर्जल, फलाहारी या जल युक्त हो सकता है- व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार इसे रखता है।
व्रत के दौरान पूरे दिन भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए।
शाम को प्रदोष काल में शिव-पार्वती की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
पूजा के बाद दीप, धूप, नैवेद्य और फल अर्पित करें। 108 बार “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
रात में शिव की आरती और चालीसा का पाठ करें।
अगले दिन सुबह ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराकर व्रत खोलें।
संयम, आस्था और नियमों का पालन इस व्रत को सफल बनाता है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद शुरू होती है।
सबसे पहले घर में पूजा स्थल को साफ करें और वहां भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और नंदी की मूर्ति स्थापित करें।
गंगाजल से स्नान कराकर बेलपत्र, धतूरा, चंदन, दूध, दही, शहद, गंगाजल और भस्म से अभिषेक करें।
भगवान शिव को विशेष रूप से बेलपत्र चढ़ाएं।
शिव चालीसा का पाठ करें, दीपक जलाएं और आरती करें तथा अंत में प्रसाद वितरित करें।
पूजा के दौरान मन में शुद्ध भावना रखें तथा परिवार के अन्य सदस्य भी पूजा में शामिल हो सकते हैं।
इस दिन शिव पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष फलदायी होता है।
पूजा के दौरान मौन रहना या कम बोलना शुभ माना जाता है।

व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें
क्या करें
सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
पूरे दिन जल, फल या निर्जल व्रत रखें।
शाम को शिव-पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें।
मंत्र जाप करें तथा ध्यान करें।
दान दें।
क्या न करें
क्रोध, निन्दा और झूठ से बचें।
तामसिक भोजन या नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
मोबाइल या सोशल मीडिया का अनावश्यक उपयोग न करें।
अशुद्ध वस्त्र या स्थान का उपयोग करके पूजा न करें।
इन नियमों का पालन करने से व्रत की सफलता सुनिश्चित होती है और शिव की कृपा आसानी से प्राप्त होती है।
प्रदोष व्रत से जुड़े सरल उपाय
- शिवलिंग पर गंगाजल और दूध से अभिषेक करें- मानसिक शांति मिलती है।
- बेलपत्र पर चंदन से “ॐ नमः शिवाय” लिखकर शिव को अर्पित करें- मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- घर के मंदिर या ईशान कोण में दीपक जलाएं और शिव मंत्र का जाप करें- नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और “ॐ नमः शिवाय” का 108 बार जाप करें- शनि दोष शांत होता है।
- किसी जरूरतमंद को भोजन या वस्त्र दान करें- शुभ फल प्राप्त होते हैं।
ये उपाय सरल होने के साथ-साथ अत्यंत फलदायी भी हैं।
अगर इन्हें आस्था और भक्ति के साथ किया जाए तो जीवन की कई समस्याएं अपने आप दूर हो जाती हैं।
शनि और शुक्र प्रदोष का विशेष प्रभाव
शुक्र प्रदोष व्रत जीवन में सुख, सौंदर्य, प्रेम और वैवाहिक संतुलन बढ़ाने में सहायक है।
शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत बहुत उपयोगी है, खासकर उन लोगों के लिए जिनका वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण है या जिनके वैवाहिक जीवन में परेशानियां हैं।
शनि प्रदोष व्रत शनि की दशा और साढ़ेसाती के प्रभाव को शांत करने के लिए किया जाता है।
नौकरी, व्यापार, कोर्ट-कचहरी में बाधा आने या बार-बार बीमार होने पर यह व्रत बहुत उपयोगी है।
ये व्रत ग्रहों की अशुभता को दूर करते हैं और जीवन में स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि लाते हैं।
साथ ही इन व्रतों के माध्यम से शिव की पूजा करने से आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्राप्त होती है।
प्रदोष व्रत और शिव मंत्रों का विशेष प्रभाव
प्रदोष व्रत के दौरान शिव मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी होता है।
इस व्रत के साथ निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है:
- ॐ नमः शिवाय – यह पंचाक्षरी मंत्र शिव की मूल शक्ति को जागृत करता है।
- महामृत्युंजय मंत्र – स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए बहुत प्रभावी है।
- शिव गायत्री मंत्र– आत्मबल और ज्ञान वृद्धि के लिए।
मंत्रों के जाप से मानसिक शांति, ध्यान और एकाग्रता में सहायता मिलती है।
शाम को मंत्रों के साथ दीपक जलाकर ध्यान करने और मौन व्रत रखने से व्रत की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
संभव हो तो एक माला (108 बार) अवश्य जपें।

पारिवारिक सुख, रोग नाश और ग्रह शांति के लिए प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत केवल व्यक्तिगत तपस्या नहीं है, बल्कि पारिवारिक सुख और शांति का आधार बन सकता है।
जब परिवार के सभी सदस्य एक साथ इस व्रत को करते हैं, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा, एकता और सद्भाव बना रहता है।
रोग निवारण में भी यह व्रत बहुत सहायक है।
मानसिक तनाव, अनिद्रा, बार-बार बीमार होने की स्थिति में यह व्रत चमत्कारी लाभ देता है।
ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रूप से करना चाहिए – शनि, राहु, केतु, मंगल दोष या पितृ दोष में यह बहुत ही प्रभावशाली है।
यह व्रत संतान प्राप्ति, दाम्पत्य जीवन को सुदृढ़ बनाने, आर्थिक उन्नति तथा आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति प्रदान करता है।
अत: इसे पूरे परिवार के साथ, श्रद्धापूर्वक तथा नियमपूर्वक किया जाए तो सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
निष्कर्ष
मई 2025 में आने वाले शुक्र तथा शनि प्रदोष व्रत न केवल शिव भक्ति का पर्व है, बल्कि जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने का दिव्य उपाय भी है।
इस व्रत को उचित नियम तथा मंत्रों के साथ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
पूजन, व्रत, जप तथा दान से शिव की कृपा सहज ही प्राप्त होती है।
यह व्रत न केवल आत्मिक शुद्धि तथा आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि सांसारिक समस्याओं से मुक्ति का साधन भी है।