पौष पुत्रदा एकदाशी का महत्व, विशेष रूप से हिंदू में पूजा और उपवास के रूप में। यह दिन भगवान विष्णु के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने बच्चों की खुशी प्राप्त करना चाहते हैं। 2025 में, पौष पुत्रदा एकादशी को गुरुवार 9 जनवरी को मनाया जाएगा।
यह उपवास न केवल उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो संतान प्राप्ती चाहते हैं, बल्कि दीर्घायु, खुशी, शांति और समृद्धि के लिए भी हैं। भारतीय शास्त्रों के अनुसार, इस गति का अवलोकन न केवल परिवार की खुशी और शांति लाता है, बल्कि व्यक्ति को मोचन प्राप्त करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। साल 2025 में यह व्रत 9 जनवरी को पड़ेगा।
एकादशी तिथि प्रारंभ: 8 जनवरी 2025 को रात 09:12 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 9 जनवरी 2025 को रात 08:20 बजे
पारण का समय: 10 जनवरी 2025 को प्रातः 07:15 से 09:30 बजे तक
पारण का समय द्वादशी तिथि के समाप्त होने से पहले किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी का बहुत धार्मिक महत्व है। यह व्रत उन दम्पत्तियों के लिए विशेष मानी जाती है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। पुत्रदा का अर्थ है “वह जो पुत्र देता है”। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, इस व्रत को करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि संतान की खुशहाली, दीर्घायु और समृद्धि के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना जाता है। यह व्रत पापों से मुक्ति दिलाता है और आत्मा की शुद्धि का मार्ग खोलता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौष पुत्रदा एकादशी के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कथा प्रचलित है। एक बार, भद्रावती नामक एक शहर ने सुकेतूमान नाम के राजा को शासित किया। राजा धर्मात्म और न्याय प्रिय था, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा और उसकी पत्नी शैव्या बेहद दुखी थे क्योंकि वे निःसंतान थे।
एक बार राजा दुखी हो गया और जंगल में चला गया। वहाँ उसने कई ऋषि मुनियों को देखा। उन्होंने राजा को पौष एकदाशी के उपवास का महत्व बताया। साथ ही राजा को व्रत करने का सुझाव दिया।
राजा ने संपूर्ण विधि विधान के साथ एकादशी का उपवास किया है। भगवान विष्णु की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह बेटा बहुत तेजस्वी और गुणवत्ता पूर्ण था। तब से, इस एकादशी को ” पुत्रदा एकादशी” कहा जाना शुरू कर दिया है।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत विधि
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कुछ नियमों का पालन पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
दशमी तिथि का पालन
दशमी तिथि से ही एकादशी का व्रत प्रारंभ हो जाता है। इस दिन सात्विक भोजन करें और तामसिक भोजन से बचें। व्रत के लिए अपना मन शुद्ध और स्थिर बनायें।
एकादशी के दिन का पालन
सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहन लें।
भगवान विष्णु की मूर्तियों को गंगा जल से धोये।
भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, चंदन, पीले फूल, फल और पंचामृत अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता या विष्णु चालीसा का जाप करें।
पूरे दिन उपवास करें यदि पूर्ण व्रत संभव न हो तो फल खा सकते हैँ ।
पूरे दिन शांत रहें और भक्ति में डूबे रहें।
रात्रि जागरण भी महत्व है। इस समय हम भजन कीर्तन किया जाता है।
द्वादशी पर व्रत का पारण
द्वादशी के दिन एकादशी का व्रत खोला जाता है। इस दिन ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं और दान दें। व्रत का समापन इसी के साथ होता है।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के लाभ
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- बच्चों का कल्याण:
यह व्रत विशेष रूप से उन जोड़ों के लिए उपयोगी है जो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। - बच्चों की प्रगति:
व्रत रखने से बच्चों को लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। - पाप से मुक्ति:
इस व्रत को करने से पिछले जन्म और इस जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाती है। - आध्यात्मिक शुद्धि:
यह व्रत हृदय और आत्मा को शुद्ध करता है। व्यक्ति को धर्म और अच्छे कर्मों के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। - पारिवारिक सुख शांति
भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में शांति, समृद्धि और प्रेम का माहौल बनता है।
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निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति की कामना पूरी करता है। बल्कि जीवन में सुख-शांति और धर्म की स्थापना भी करता है। इस पावन व्रत के जरिए व्यक्ति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है। साथ ही अपने जीवन को सफल बना सकते है। श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत परिवार में सुख-समृद्धि लाने वाला है।
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