हर महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी पूरी छटा के साथ दिखाई देता है। पौष माह की पूर्णिमा का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इस दिन से जुड़े कई धार्मिक विश्वास और कृत्य हमारे जीवन में शुभता और पुण्य का संचार करते हैं।
यह दिन सभी सनातनियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पौष माह के साथ माघ मास की शुरुआत होती है, जो विशेष धार्मिक महत्व रखता है।
पौष पूर्णिमा को विशेष रूप से भगवान विष्णु, संसार के रक्षक, की पूजा का दिन माना जाता है। इस दिन, भगवान सत्यनारायण, जो भगवान विष्णु का एक अवतार हैं, और माँ लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इसके साथ ही, पौष मास को सूर्य देवता को समर्पित किया जाता है, जबकि पूर्णिमा तिथि का शासक चंद्र देव होते हैं।
इस दिन सूर्य और चंद्र के मिलन का विशेष योग बनता है, जो इसे और भी खास बनाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्णता में होता है, और इसे विशेष रूप से पूजा के लिए महत्व दिया जाता है।
पौष पूर्णिमा 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी।
तिथि प्रारंभ: 13 जनवरी 2025, सुबह 5:03 बजे
तिथि समाप्त: 14 जनवरी 2025, सुबह 3:06 बजे
पौष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करके जीवन के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, और व्यक्ति के सभी जन्मों के पापों का नाश होता है।
इस दिन का व्रत और पूजा न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए है, बल्कि यह आत्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
एक मान्यता के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पूरे पौष माह में सूर्य की पूजा नहीं कर पाता, तो पौष पूर्णिमा को सूर्य को जल अर्पित करना, पूरे महीने की पूजा के समान फलदायी माना जाता है। इस दिन सूर्य को जल अर्पित करने से व्यक्ति को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
पौष पूर्णिमा और कंबरी पूर्णिमा
यह पूर्णिमा को कंबरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता दुर्गा ने माता शा कंबरी के रूप में अपने भक्तों की भलाई के लिए अवतार लिया था। इस दिन, देवी दुर्गा ने पृथ्वी पर अन्न की बरसात की थी, जिससे भक्तों को भोजन की कमी से मुक्ति मिली और उन्हें अनंत आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसी कारण से पौष पूर्णिमा को दान और कर्म का दिन माना जाता है।
पौष पूर्णिमा व्रत
पौष पूर्णिमा का व्रत विशेष रूप से पुण्यकारी होता है। व्रति सुबह सूर्योदय से पहले सूर्य को जल अर्पित करके व्रत की शुरुआत करते हैं। इसके बाद, दिनभर उपवासी रहते हुए चंद्र देवता की पूजा करते हैं। शाम को, चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करने के बाद व्रत को समाप्त किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान का महत्व है, खासकर हरिद्वार और काशी जैसे पवित्र स्थानों पर।
महाकुंभ और पौष पूर्णिमा
पौष पूर्णिमा के साथ ही प्रयागराज में महाकुंभ मेला भी शुरू होता है। महाकुंभ का पहला शाही स्नान भी इस दिन होता है, जो भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। यदि आप इस दिन शाही स्नान करने का अवसर प्राप्त करें, तो विशेष समय पर स्नान और दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
स्नान और दान का श्रेष्ठ समय
इस दिन स्नान और दान करने के लिए कुछ विशेष मुहूर्त बताए गए हैं:
- 7:14 AM से 8:33 AM के बीच स्नान और दान करना सबसे शुभ माना जाता है।
- 9:52 AM से 11:1 AM तक भी स्नान और दान करने का समय श्रेष्ठ है।
- 3:6 PM और 4:2 PM के बाद का समय भी फलदायी माना गया है।
यदि भक्त इन समयों में स्नान और दान करते हैं, तो उन्हें श्री हरि और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उनका जीवन समृद्ध होता है।
पौष पूर्णिमा पर दान
पौष पूर्णिमा के दिन कुछ विशेष चीजों का दान करना अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन, गर्म कपड़े, तिल, गुड़, चावल और अन्न का दान करना विशेष रूप से शुभ है। चंद्र देव से संबंधित चीजों का दान, जैसे कि सफेद चीजें, इस दिन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, कच्चे दूध को पवित्र जल में मिलाकर चंद्रमा को अर्पित करने से चंद्र देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि बनी रहती है।
निष्कर्ष
यह दिन अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस दिन किए गए दान और पूजा से न केवल आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद भी मिलता है। पौष पूर्णिमा और महाकुंभ मेला दोनों ही धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इस दिन का सही तरीके से पालन करने से जीवन में अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं।