हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था, जिसे परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है।
यह तिथि अक्षय तृतीया के दिन भी पड़ती है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता हैं।
परशुराम जी को शस्त्र ज्ञान, न्याय और धर्म का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन व्रत, पूजा और दान का विशेष महत्व होता है।
व्रत रखने वाले भक्तों के लिए कुछ विशेष नियम और सावधानियां बताई गई हैं, जिनका पालन करने से व्यक्ति को जीवन में पुण्य फल और आध्यात्मिक शांति मिलती है।
इस लेख में हम परशुराम जयंती की व्रत विधि, पूजा क्रम, नियम और निषेध के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व
भगवान परशुराम न केवल एक योद्धा ब्राह्मण थे, बल्कि वे न्यायप्रिय, तेजस्वी और धर्म के रक्षक भी थे।
अन्याय और अत्याचार का नाश करने के लिए उनका धरती पर अवतार हुआ था।
वे क्षत्रियों के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए आए थे और उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था।
परशुराम जयंती का दिन धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
यह दिन अधर्म के खिलाफ खड़े होने और सत्य और न्याय का साथ देने की शिक्षा देता है।
वैशाख मास की तृतीया तिथि को जब सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा वृष राशि में होता है, तब यह जयंती विशेष पुण्यदायी मानी जाती है।
इस दिन व्रत रखने, ब्राह्मणों को दान देने और परशुराम जी की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में विजय की प्राप्ति होती है।

परशुराम जयंती व्रत से पहले की तैयारी
परशुराम जयंती व्रत के लिए भक्तों को एक दिन पहले से ही पवित्रता और संयम का पालन करना चाहिए।
व्रत रखने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक भोजन करना चाहिए।
घर की सफाई करें और विशेष रूप से पूजा स्थल को शुद्ध जल से धोकर साफ करें।
पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे तुलसी दल, चंदन, अक्षत, रोली, दीपक, घी, फूल, मिठाई आदि एकत्रित कर लें।
संभव हो तो व्रत से एक दिन पहले फलाहार करें और अगले दिन की तैयारी पूर्ण व्रत की भावना से करें।
व्रत की शुरुआत संकल्प लेकर करना जरूरी है।
साथ ही भगवान परशुराम के चरित्र और जीवन से जुड़ी कथाओं का मानसिक स्मरण करें, ताकि पूजा भावनात्मक रूप से अधिक प्रभावी बन सके।
व्रत और पूजा की विधि व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
फिर पूजा स्थल पर भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं, चंदन, फूल, अक्षत, धूप, दीप आदि से पूजा करें।
पीले या सफेद फूलों का विशेष रूप से प्रयोग करें।
परशुराम जी को शस्त्र प्रिय हैं, इसलिए परशु के प्रतीक के रूप में कोई धातु रखें।
उन्हें चंदन, तुलसी और गाय का दूध अर्पित करें।
पूजा के दौरान “ॐ परशुरामाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। कथा सुनें या पढ़ें।
अंत में आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।
दिनभर उपवास रखें और शाम को फिर से भगवान की पूजा करें।
रात में केवल फलाहार करें या पूरा उपवास करें।
भगवान परशुराम के आदर्शो को अपनाये
व्रत नियम
व्रत के दौरान क्या करें
परशुराम जयंती पर कुछ विशेष नियमों का पालन करना बहुत लाभकारी माना जाता है। जैसे –
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें।
शुद्धता, पवित्रता और संयम का पालन करें।
पूरे दिन भगवान परशुराम के मंत्रों का जाप करें।
कोई झूठ, छल या कटु वचन न बोलें।
ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, दान आदि दें।
तुलसी का सेवन करें और भगवान को भी अर्पित करें।
रात में जप, ध्यान और भजन-कीर्तन करें।
परशुराम कथा अवश्य सुनें या सुनाएं।
इन नियमों का पालन करने से व्रत का पूरा लाभ प्राप्त होता है और भगवान परशुराम की कृपा हमेशा बनी रहती है।
व्रत के दौरान क्या नहीं करना चाहिए
व्रत के नियमों का पालन करना तो जरूरी है ही, साथ ही कुछ कामों से बचना भी उतना ही जरूरी है:
मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि का सेवन पूरी तरह वर्जित है।
किसी का अपमान करना, खास तौर पर ब्राह्मणों का अपमान करना वर्जित है।
वाणी में कटुता, गाली या झूठ का प्रयोग न करें।
दोपहर के समय सोना वर्जित माना गया है।
लोभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों से दूर रहें।
मोबाइल, टीवी या मनोरंजन से दूर रहें।
शांत वातावरण बनाएं ताकि पूजा के दौरान एकाग्रता भंग न हो।
अकारण किसी की निंदा या आलोचना करने से बचें।
यदि इन चीजों को वर्जित मानकर श्रद्धापूर्वक व्रत का पालन किया जाए तो परशुराम जी की कृपा से जीवन में सुख, शांति और उन्नति प्राप्त होती है।
परशुराम मंत्रों का जाप और उनका महत्व
व्रत के दिन मंत्र जाप विशेष फलदायी होता है।
“ॐ परशुरामाय नमः” इस बीज मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए।
इसके अलावा “ॐ ह्रीं क्लीं परशुरामाय नमः” या “ॐ विष्णुवे नमः” का जाप करना भी शुभ माना जाता है।
ये मंत्र मानसिक शुद्धता, क्रोध पर नियंत्रण और आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।
जाप करते समय रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
एकाग्र मन से जाप करें और प्रत्येक मंत्र के साथ भगवान परशुराम के स्वरूप का ध्यान करें।
इससे साधक के जीवन में शांति, साहस और दृढ़ संकल्प का संचार होता है।
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परशुराम जयंती पर दान का महत्व
दान को धर्म का प्रमुख आधार माना जाता है और परशुराम जयंती जैसे पवित्र पर्व पर दान करना अत्यंत फलदायी होता है।
इस दिन विशेष रूप से ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, तांबा, घी, चंदन, जनेऊ, पुस्तकें, छाता और शस्त्र दान करना शुभ होता है।
संभव हो तो शिक्षा और ज्ञान से जुड़ी संस्थाओं को भी दान दें।
दान से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
भगवान परशुराम ज्ञान और शस्त्र दोनों के स्वामी हैं, इसलिए ज्ञान और रक्षा से जुड़ी वस्तुओं का दान करें।
साथ ही दान करते समय दानकर्ता को विनम्रता के साथ, बाएं हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथों से देना चाहिए।
बच्चों और युवाओं के लिए व्रत का महत्व
परशुराम जयंती पर युवाओं और बच्चों को व्रत का महत्व भी समझाना चाहिए।
परशुराम जी तपस्वी होते हुए भी वीर और न्यायप्रिय थे। आज के युवाओं को उनसे दृढ़ता, अनुशासन और न्याय की प्रेरणा लेनी चाहिए।
व्रत के माध्यम से बच्चों को अनुशासित जीवन, संयमित आचरण और शुद्ध सोच के मूल्यों से परिचित कराना चाहिए।
इस दिन बच्चों को परशुराम जी की कहानियां, उनकी वीरता और ज्ञान की गाथाएं सुनाना बहुत लाभकारी होता है।
इससे उनमें धर्म, संस्कृति और आदर्शों के प्रति आस्था पैदा होती है।
घर में पूजा के दौरान बच्चों को शामिल करें, ताकि वे बचपन से ही भारतीय मूल्यों को समझ सकें।
परशुराम जयंती पर सामूहिक पूजा एवं समाज सेवा
वर्तमान समय में परशुराम जयंती के दिन अनेक स्थानों पर सामूहिक पूजा, हवन, भंडारा एवं शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है।
ऐसे आयोजनों में भाग लेकर व्यक्ति न केवल पुण्य अर्जित करता है, बल्कि समाज में एकता एवं समरसता का संदेश भी देता है।
वृद्धाश्रम में सेवा, अनाथालयों में भोजन वितरण, वृक्षारोपण, रक्तदान आदि समाज सेवा के कार्य भी इस दिन विशेष रूप से करने चाहिए।
न्याय एवं रक्षा के प्रतीक भगवान परशुराम के नाम पर समाज के कमजोर वर्गों की सहायता करना सच्ची भक्ति का प्रतीक है।
यह जयंती न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सामाजिक चेतना का पर्व भी है।
उपसंहार
परशुराम जयंती केवल व्रत या पूजा का दिन नहीं है, बल्कि यह धर्म, न्याय, तप एवं सेवा की प्रेरणा का पर्व भी है।
व्रत विधि, नियम एवं निषेध का पालन करके हम न केवल भगवान परशुराम का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को अनुशासित, शक्तिशाली एवं शांतिपूर्ण भी बना सकते हैं।
इस दिन श्रद्धा और संयम के साथ की गई पूजा जीवन में साहस, ज्ञान और सत्य की स्थापना करती है।
भगवान परशुराम से प्रार्थना है कि वे हमें सत्य के मार्ग पर चलने की शक्ति दें और हमारे भीतर से अधर्म, अहंकार और आलस्य को दूर करें।