पंचांग के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत हर वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस लेख में हम जानेंगे पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व,शुभ मुहूर्त और कथा।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
पापमोचनी एकादशी का महत्व और लाभ
हर एकादशी व्रत को केवल एक उद्देश्य से रखना चाहिए – श्री कृष्ण को प्रसन्न करना। एकादशी का व्रत करने का मतलब है कि हमें भक्ति के कार्यों में वृद्धि करनी चाहिए और भक्ति का उत्साह बढ़ाना चाहिए, जैसे कि भगवान के कीर्तन सुनना, भगवान का नाम जपना, भक्तों के साथ मिलना, और इसी प्रकार से हम इस एकादशी के व्रत को रखकर श्री कृष्ण की कृपा के पात्र बन सकते हैं।
ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेख है कि एक बार युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का व्रत करने से हमें कौन से लाभ प्राप्त होते हैं।
इसके उत्तर में भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे राजश्रेष्ठ, सभी प्राणियों के कल्याण के लिए, मैं इस एकादशी का महत्व तुम्हें बता रहा हूँ। इस एकादशी के प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो सकते हैं और वह बहुत पुण्यवान और धार्मिक हो जाता है। इसलिए इस एकादशी को सुनना और पढ़ना अत्यंत लाभकारी है।”
तिथि और शुभ मुहूर्त
अब जानते हैं कि पापमोचनी एकादशी व्रत कब है।
वर्ष 2025 में पापमोचनी एकादशी 25 मार्च, मंगलवार को पड़ेगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 25 मार्च 2025 को सुबह 5:55 बजे होगी और इसका समापन 26 मार्च 2025 को सुबह 3:45 बजे होगा।
पारण का समय
व्रत का पारण 26 मार्च 2025 को दोपहर 1:04 से 4:08 बजे के बीच किया जाएगा।
तो, इस पावन तिथि को याद रखें और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर अपने जीवन को धन्य बनाएं।
पापमोचनी एकादशी 2025: पूजा विधि और तिथि
आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी के व्रत की पूजा विधि और इसके पालन से जुड़ी आवश्यक जानकारी।
पूजा की विधि
सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें। लकड़ी के पाटे पर पीला वस्त्र बिछाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। पूजा सामग्री में गंगाजल, चंदन, रोली, कुमकुम, अक्षत (साबुत चावल), फल, मिष्ठान और पीले फूल अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं। इसके बाद श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें अध्याय का पाठ करें। यदि संभव हो, तो भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
पापमोचनी व्रत के नियम
इस दिन व्रतधारी को प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि करना चाहिए। इस दिन शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। व्रत के दौरान झूठ, क्रोध और हिंसा से बचना चाहिए। साथ ही, जरूरतमंदों को दान करने का भी विधान है।
पापमोचनी एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें
इस एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाना चाहिए। इस दिन यदि कुछ गलतियाँ की जाएं तो व्रत का पुण्य नष्ट हो सकता है। आइए जानते हैं इस दिन क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए।
क्या न करें पापमोचनी एकादशी के दिन
- तुलसी के पत्ते न तोड़ें: पापमोचनी एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते भी गलती से नहीं तोड़े जाते। पूजा के लिए तुलसी के पत्ते एक दिन पहले ही तोड़कर पूजा में अर्पित करें।
- वृक्ष और पौधे न तोड़ें: इस दिन किसी भी वृक्ष या पौधे को न तोड़ें।
- बाल और नाखून न काटें: एकादशी के दिन बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। ऐसा करने से घर में दरिद्रता और दुर्भाग्य आ सकता है।
- अजनबी का भोजन न स्वीकार करें: जो व्यक्ति व्रत कर रहा है, उसे किसी और का भोजन गलती से भी स्वीकार नहीं करना चाहिए।
- विलंब से न सोएं और झगड़ा न करें: व्रती को एकादशी के दिन देर तक सोना नहीं चाहिए और न ही किसी प्रकार के झगड़े या विवाद में शामिल होना चाहिए।
क्या करें पापमोचनी एकादशी के दिन
- दान करें: एकादशी व्रत के दिन दान बहुत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि एकादशी व्रत तब तक अधूरा रहता है, जब तक किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान नहीं किया जाता। इसलिए इस दिन दान जरूर करें।
- प्रातःकाल उबटन और स्नान करें: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें।
- संपूर्ण दिन उपवासी रहें: इस दिन उपवासी रहना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो फलाहार किया जा सकता है।
- मिट्टी के घड़े में पानी भरकर दान करें: एक मिट्टी के घड़े में पानी भरकर दान करें।
- भोजन या अनाज मंदिर में दान करें: मंदिर में भोजन या अनाज का दान करें।
- तुलसी के पास घी रखें और परिक्रमा करें: सुबह और शाम तुलसी के पास घी रखें और उसकी परिक्रमा करें।
- भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करें: शाम को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा: युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण का संवाद
युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे प्रभु, कृपया मुझे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली पापमोचनी एकादशी के बारे में बताएं।”
श्रीकृष्ण ने कहा, “हे राजन, पापमोचनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे अष्ट सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस व्रत की कथा इस प्रकार है:
बहुत समय पहले की बात है, कुबेर के राजकोषाध्यक्ष के पास चैत्ररथ नामक एक अत्यंत सुंदर उपवन था। इस उपवन में भोलानाथ के परम भक्त मेधावी ऋषि तपस्या कर रहे थे। कई देवताओं और अप्सराओं ने उनकी तपस्या भंग करने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे।
तब मंजुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनकी तपस्या में विघ्न डालने का निश्चय किया। उसने आश्रम से थोड़ी दूरी पर जाकर मधुर वीणा बजाना और सुंदर गीत गाना शुरू किया। ऋषि मेधावी उसके मधुर संगीत से आकर्षित होकर उसकी ओर खिंचे चले गए।
अप्सरा को देखकर मेधावी ऋषि मंत्रमुग्ध हो गए और उसके साथ समय व्यतीत करने लगे। इस दौरान वे भगवान भोलेनाथ का स्मरण भी भूल गए। इस प्रकार आनंद लेते हुए बहुत समय बीत गया।
एक दिन, अप्सरा मंजुघोषा ने देवलोक लौटने का निश्चय किया। जाने से पहले उसने ऋषि से कहा, “हे ब्राह्मण, अब मुझे अपने देश जाने की अनुमति दें।”
इस पर ऋषि मेधावी ने कहा, “हे देवी, अभी रुकें, जब तक सुबह शाम में न बदल जाए।” मंजुघोषा ने उत्तर दिया, “हे मुनिवर, मुझे नहीं पता अब तक कितनी संध्याएँ बीत चुकी हैं, मुझ पर कृपा करें और जो समय बीत चुका है, उसके बारे में सोचें।”
पापमोचनी एकादशी की कथा: ऋषि मेधावी और मंजुघोषा का संवाद
ऋषि मेधावी ने मंजुघोषा से कहा, “मैं नहीं जानता कि कितने संध्याएँ बीत चुकी हैं, कृपया मेरी स्थिति पर कृपा करो और यह सोचो कि कितना समय बीत चुका है।” यह सुनकर बुद्धिमान ऋषि ने जब समय की गणना की, तो पाया कि उसने मंजुघोषा के साथ 57 वर्ष व्यतीत किए हैं। यह जानकर कि मंजुघोषा ने उसकी तपस्या को नष्ट कर दिया है, ऋषि मेधावी क्रोधित हो गए और उन्होंने उसे शाप देते हुए कहा, “हे पापिनि, तूने मेरी कठोर तपस्या को नष्ट कर दिया है। मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू पिशाचिनी के रूप में जन्म लेगी।”
ऋषि का शाप सुनकर मंजुघोषा ने विनम्रता से कहा, “हे मुनिवर, मैंने आपके साथ इतने वर्ष बिताए हैं। कृपया मुझ पर दया करें।” इस पर बुद्धिमान ऋषि ने कहा, “क्या करूँ? तूने मेरी महान तपस्या को नष्ट किया है। जो पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आती है, वह सभी पापों का नाश करती है। इस एकादशी का व्रत करके तू पिशाचिनी के गर्भ से मुक्त हो जाएगी।”
फिर मेधावी मुनि अपने पिता के पास पहुंचे, जो च्यवन मुनि के आश्रम में तपस्या कर रहे थे। च्यवन मुनि ने उन्हें देखा और पूछा, “पुत्र, तूने कौन सा अपराध किया है? तूने अपने जीवन को नष्ट कर लिया।” इस पर मेधावी मुनि ने कहा, “पिताजी, मैंने पाप किया है।”
पापमोचनी एकादशी का व्रत और उसका महात्म्य
मेधावी मुनि ने च्यवन मुनि से कहा, “कृपया मुझे ऐसा कोई प्रायश्चित्त बताएं, जिससे मेरे पाप समाप्त हो जाएं।” इस पर च्यवन मुनि ने कहा, “यदि तुम चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत रखोगे, तो तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।”
यह सुनकर मेधावी मुनि ने श्रद्धा पूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए और वह पुनः अपने तप में संलग्न हो गए।
मंजुघोषा ने भी पापमोचनी एकादशी का महान व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप वह पिशाचिनी के गर्भ से मुक्त हो गईं और एक दिव्य रूप धारण करके स्वर्ग को चली गईं।
हे राजा, जो व्यक्ति पाप करता है और पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। और जो इस व्रत की कथा सुनता या पढ़ता है, उसे हजार गायों का दान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत अत्यंत पवित्र और लाभकारी है।
इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति पुण्य की दिशा में अग्रसर होता है।
सार
इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।