मेष संक्रांति हिंदू धर्म का एक बहुत ही पवित्र त्योहार है, जो सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ मनाया जाता है।
यह त्योहार न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत के विभिन्न राज्यों में इसे सौर नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और यह किसानों, भक्तों, साधकों और समाज के हर वर्ग के लिए नई ऊर्जा और नई चेतना लेकर आता है।
यह दिन सूर्य पूजा, दान और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। 2025 में यह त्योहार 14 अप्रैल को मनाया जाएगा।
मेष संक्रांति क्या है?
मेष संक्रांति वह दिन है जब सूर्य देव मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
यह सौर संक्रांति का पहला चक्र है और इसी से सौर वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
हिंदू कैलेंडर में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं, लेकिन मेष संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि इससे नए साल की शुरुआत होती है।
इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू होती है, जिसे शुभ और पुण्य माना जाता है।
मेष संक्रांति को कुछ स्थानों पर ‘महाविशुव संक्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है।

2025 में तिथि और मुहूर्त
वर्ष 2025 में मेष संक्रांति 14 अप्रैल, सोमवार को मनाई जाएगी। सूर्य सुबह के समय मेष राशि में प्रवेश करेगा।
14 अप्रैल को सूर्य देव सुबह 03:21 बजे मीन राशि से मेष राशि में गोचर करेंगे।
सूर्य देव 14 मई तक मेष राशि में ही रहेंगे। सूर्य देव के मेष राशि में गोचर के साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा।
इस दिन से सभी तरह के शुभ कार्य किए जा सकेंगे।
पुण्य काल सुबह 5:57 बजे से दोपहर 12:22 बजे तक और महापुण्य काल सुबह 5:57 बजे से सुबह 8:05 बजे तक रहेगा।
यह अवधि आध्यात्मिक कार्यों के लिए अत्यंत फलदायी होती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मेष संक्रांति को भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कृषि, सामाजिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
पंजाब: बैसाखी – फसल उत्सव
केरल: विशु – केरल नववर्ष
तमिलनाडु: पुथंडु – तमिल नववर्ष
ओडिशा: महाविशुव संक्रांति
असम: बिहू
इन सभी त्योहारों का उद्देश्य सूर्य की नई ऊर्जा का स्वागत करना, समाज में सामूहिक आनंद फैलाना और ऋतु परिवर्तन के साथ जीवन का नया चक्र शुरू करना है।
पूजा विधि और शुभ कर्म
मेष संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
इसके बाद तांबे के बर्तन में जल, लाल फूल, रोली, चावल और गुड़ लेकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
सूर्य मंत्र: “ॐ घृणि: सूर्याय नमः” का 108 बार जाप करें।
घर को साफ रखें और धूपबत्ती से वातावरण को शुद्ध करें।
गाय, ब्राह्मण और जरूरतमंदों को भोजन कराना, वस्त्र दान करना विशेष फल देता है।
इस दिन किए गए शुभ कर्म और तप से कई गुना अधिक फल मिलता है।

इस दिन किए जाने वाले उपाय
मेष संक्रांति के दिन कुछ खास उपाय करके आप जीवन से नकारात्मकता को दूर कर सकते हैं:
लाल कपड़े, लाल चंदन, तांबा, गुड़ और गेहूं का दान करें।
गरीब बच्चों को लाल फल या मिठाई खिलाएं।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और उसकी 7 बार परिक्रमा करें।
तांबे के बर्तन से सूर्य को जल चढ़ाएं और “ॐ आदित्याय नमः” मंत्र का जाप करें।
ये छोटे-छोटे उपाय आपके जीवन में समृद्धि, शांति और ऊर्जा लाते हैं।
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ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्व
ज्योतिष के अनुसार मेष संक्रांति का सीधा संबंध सूर्य की स्थिति से है।
जब सूर्य मेष राशि में आते हैं तो यह उनकी उच्च राशि होती है, जिसके कारण उनका प्रभाव सबसे अधिक प्रभावी होता है।
इस समय ऊर्जा का स्तर अधिक होता है और यह कुछ नया शुरू करने के लिए आदर्श समय होता है।
व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में नए संकल्प लेना, जमीन या वाहन खरीदना, कोई भी नया काम शुरू करना बहुत शुभ होता है।
यह समय आत्मविश्वास, साहस और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
क्षेत्रीय त्यौहार और नाम (भारत में विविधता)
भारत में विविधता में एकता का एक अद्भुत उदाहरण मेष संक्रांति है। इस एक दिन को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:
बैसाखी (पंजाब): यह सिखों का धार्मिक त्यौहार और फसल कटाई का दिन है।
पुथांडु (तमिलनाडु): तमिल नववर्ष।
विशु (केरल): सौर नववर्ष का त्योहार, विशेष पूजा और ‘विशुक्कनी’ दर्शन की परंपरा।
बोहाग बिहू (असम): नया साल और कृषि जीवन का उत्सव।
महाविशुव संक्रांति (ओडिशा): सूर्य पूजा, दान और सामाजिक कार्यक्रमों का दिन।
इससे यह स्पष्ट होता है कि सूर्य की पूजा और नए जीवन की अवधारणा पूरे भारत में एक ही भावना से जुड़ी हुई है।

निष्कर्ष
मेष संक्रांति केवल एक खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि धर्म, विज्ञान, प्रकृति और संस्कृति का एक सुंदर संगम है।
यह दिन हमें प्रकृति की शक्ति, सूर्य की ऊर्जा और आत्म-विकास के महत्व की याद दिलाता है।
संकल्प, पूजा, दान और नई शुरुआत की प्रेरणा देकर यह त्योहार हमें आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से समृद्ध होने का अवसर देता है।
अगर सही भावना से मनाया जाए तो यह दिन जीवन में सुख, शांति और प्रगति का आधार बन सकता है।