महेश नवमी की कथा
महेश नवमी की कथा कर अनुसार, एक समय की बात है राजस्थान के खंडेल गांव में खड़गलसेन नाम का राजा राज्य करता था। प्रजा बहुत ज्यादा सुखी थी राजा धर्म अवतार भी था। परंतु राजा के वंश का दीपक नहीं हुआ था मतलब राजा रानी के कोई पुत्र नहीं था इस कारण राजा रानी बहुत दुखी रहा करते थे।
राजा ने पुत्र के लिए कामष्टिक यज्ञ करवाया। ऋषि मुनियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और कहां तुम्हें पराक्रमी पुत्र होगा चक्रवर्ती होगा और ध्यान रखना उसे 20 वर्ष तक उत्तर दिशा में मत।
थोड़े समय बाद पंचवटी रानी के सुजान कंवर नाम का पुत्र हुआ। वह यशस्वी हुआ विद्या व शस्त्र विद्या में वह निपुण हो गया। एक दिन एक जैन मुनि उनके गांव में आए उनके धर्म उद्देश्य से कुंवर बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ले ली।
और जैन धर्म का प्रचार करने लगे। धीरे-धीरे प्रजा भी जैन धर्म को मानने लगी। शिव वह वैष्णो मंदिर जैन मंदिर में रूपांतरित होने लगे। एक दिन राजकुमार शिकार करने के लिए वन में गए।
एकाएक राजकुमार की इच्छा उत्तर दिशा में जाने की हुई। साथ वाले राजकुमार को मना करने लगे मगर राजकुमार नहीं माने और वे रवाना हो गए। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास छह ऋषि योगी कर रहे थे।
वेद ऋषि से वातावरण कुंजित हो रहा था जिससे राजकुमार क्रोधित हो गए और बोले मुझे अंधेरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया। तभी उन्होंने उमराहों को भेज कर यज्ञ का विध्वंश करवाया।
ऋषियों ने उसे श्राप दिया और वह सभी पत्थरवल हो गए। राजा ने जब यह समाचार सुना तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए और रनिया भी सती हो गई। सुजान कुंवर की पत्नी चंद्रवती, उमराहो की पत्तियों को लेकर ऋषि के पास गई।
क्षमा याचना करने लगी जिससे ऋषियों ने कहा हमारा श्राप जूठा नहीं जा सकता। यहां से नजदीक ही एक गुफा है तुम वहां जाकर महेश भगवान की आराधना करो।
तपस्या करने से मां पार्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया सौभाग्यवती पुत्रवती हो। चंद्रावती ने सब बात बताइए और उमराहों को जीवित करने को कहा।
महेश भगवान ने तथास्तु कहा और सब जीवित हो गए सभी ने फिर महेश भगवान के पैर पड़े और भगवान ने उन्हें क्षत्रित्व छोड़ वैष्णव वर्ण धारण करने को कहा। उन्होंने यह स्वीकार कर लिया परंतु उनकी पत्नियों ने मना कर दिया क्योंकि वह क्षत्राणीया थी तब पार्वती माता ने उनका समझौता किया और कहा मेरी परिक्रमा करो।
परिक्रमा करते-करते पति पत्नी बन जाएंगे। जिस दिन उन्होंने यह वरदान दिया उसे दिन ज्येष्ठ शुक्ल नवमी थी। ऋषियों ने भगवान से शिकायत की और पूछा अब यज्ञ कैसे संपन्न होगा तो भगवान ने कहा प्रत्येक जाने इनमें से बारह बारह लोगों को यजमान बना लो।
समय-समय पर यह लोग तुमको सहायता करेंगे। सूजान कुंवर पर पार्वती की कुदृष्टि पड़ी पार्वती जी ने उन्हें श्राप दिया कि तू मांग मांग कर खाएगा वैश्य परिवार की वंशावली तेरे पास रहेगी वे तुम्हें अपने यहां जगह देंगे।
इस प्रकार छह ऋषियों, वैश्यों के गुरु सुजान सिंह और बाहत्तर उमराहो पर मां पार्वती और महेश भगवान का आशीर्वाद बना।
समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा व भक्ति से भगवान शिव व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। इसलिए आज भी ‘माहेश्वरी समाज’ के नाम से इसे जाना जाता है।
।। महेश नवमी की कथा संपन्न हुई।।

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शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ऊं जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
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