माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा कहा जाता है। इस पवित्र दिन का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगा में वास करते हैं। इस दिन गंगा स्नान, दान, ध्यान, जप और तप का बहुत महत्व है। इस में हम जानेंगे कि माघ पूर्णिमा 2025 में कब पड़ रही है, इसकी तिथि और समय क्या हैं, श्री सत्यनारायण पूजा का शुभ मुहूर्त कब है, व्रत और स्नान का महत्व क्या है।
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाती है। माघ पूर्णिमा की पूजा और कथा का भी विशेष महत्व माना गया है। साथ ही, इस दिन रैदास जयंती और ललिता जयंती भी मनाई जाती हैं।
माघी पूर्णिमा का नाम मघा नक्षत्र से लिया गया है। इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। यह भी मान्यता है कि चंद्रदेव इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करते हैं और व्रत करने वाले सभी दुखों से मुक्त हो जाते हैं।
माघ पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
माघ पूर्णिमा के दिन किया गया स्नान, हवन, दान और व्रत जीवन के कष्टों को दूर करता है। इस दिन भगवान विष्णु की कृपा से सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
पवित्र नदी में स्नान और दान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करना, पितरों को तर्पण देना और पुण्यात्माओं को दान देना शुभ माना जाता है।
माघ पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में माघ पूर्णिमा बुधवार, 12 फरवरी को पड़ेगी।
- माघ शुक्ल पूर्णिमा तिथि:
- प्रारंभ: 11 फरवरी, शाम 6:05 बजे
- समाप्त: 12 फरवरी, शाम 7:11 बजे
श्री सत्यनारायण पूजा का शुभ मुहूर्त
12 फरवरी 2025, बुधवार, शाम 7:15 बजे से श्री सत्यनारायण की पूजा शुरू करने का शुभ समय है। यह पूजा पूरे दिन की गई जा सकती है, लेकिन इस समय पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
गंगा स्नान का शुभ समय
12 फरवरी 2025 को, बुधवार की सुबह 6:50 बजे से 8:30 बजे तक गंगा स्नान करना सबसे शुभ माना गया है। जो लोग गंगा में स्नान नहीं कर सकते, वे स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
माघ पूर्णिमा पर स्नान विधि
- माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें।
- पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान करें।
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- सूर्यदेव को अर्घ्य दें और उनके मंत्रों का जाप करें।
व्रत और पूजा विधि
- भगवान मधुसूदन की पूजा का संकल्प लें।
- इस दिन विशेष रूप से सफेद और काले तिल का दान जरूरतमंदों को करें।
- वस्त्र, घी, फल और गुड़ का दान करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
दान का महत्व
माघी पूर्णिमा के दिन दान करना विशेष फलदायी होता है।
- गरम कपड़े: इस दिन गरीबों को गरम कपड़े दान करें।
- अन्न और भोजन: जरूरतमंदों को अन्न, भोजन और गुड़ का दान करें।
- चंद्रदेव को दूध का दान: चंद्रमा की रोशनी में दूध का दान करें। इससे पूरे साल आर्थिक संकट नहीं आएगा।
- ब्राह्मण भोज: ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमता अनुसार नए कपड़े व तौलिए दान करें।
लक्ष्मी कृपा पाने के उपाय
माघी पूर्णिमा के दिन श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। इस दिन की गई पूजा और दान से जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होती। यह दिन सभी इच्छाओं को पूर्ण करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।
कथा
एक समय की बात है, एक नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी रूपवती एक अत्यंत सुशील और धर्मपरायण स्त्री थी। लेकिन उनकी एक बड़ी समस्या थी—उनके कोई संतान नहीं थी। इस कारण दोनों ही बहुत दुखी रहते थे।
योगी का आगमन और धनेश्वर की चिंता
एक दिन, उस नगर में एक महान तपस्वी योगी पधारे। वे नगर के हर घर से भिक्षा लेते थे, लेकिन धनेश्वर के घर से भिक्षा नहीं लेते थे। यह देखकर धनेश्वर बहुत चिंतित और उदास हो गया।
एक दिन धनेश्वर ने हिम्मत जुटाई और योगी से जाकर पूछा, “महाराज, आप सभी के घर से भिक्षा लेते हैं, लेकिन मेरे घर से कभी नहीं लेते। इसका क्या कारण है?”
योगी ने उत्तर दिया, “यह इसलिए है क्योंकि तुम निःसंतान हो।”
संतान प्राप्ति का उपाय
धनेश्वर ने दुखी होकर हाथ जोड़ते हुए कहा, “महाराज, कृपया मुझे कोई उपाय बताइए जिससे मुझे संतान सुख प्राप्त हो सके।”
तब योगी ने कहा, “हे ब्राह्मण, तुम जंगल में जाओ और माँ चंडी की आराधना करो। उनकी कृपा से तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।”
तपस्या के लिए जंगल की ओर प्रस्थान
धनेश्वर ने घर आकर यह बात अपनी पत्नी रूपवती को बताई और तुरंत जंगल की ओर प्रस्थान कर गया।
जंगल में धनेश्वर ने सोलह दिनों तक माँ चंडी की कठोर तपस्या की। उसने निरंतर उपवास और पूजा करके माँ को प्रसन्न करने का प्रयास किया।
माँ चंडी का वरदान
सोलहवें दिन, माँ चंडी ने धनेश्वरको स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “हे धनेश्वर, तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा, लेकिन उसकी आयु केवल 16 वर्ष की होगी। यदि तुम और तुम्हारी पत्नी 32 पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करोगे, तो तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी हो जाएगी।”
माँ चंडी ने धनेश्वर को स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “जितने हो सके, आटे के दीपक बनाकर भगवान शिव की पूजा करो। सुबह तुम्हें इस स्थान पर एक आम का पेड़ दिखाई देगा। उस पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ना और तुरंत अपने घर लौट आना। वह फल अपनी पत्नी को खिलाना। भगवान शिव की कृपा से वह गर्भवती हो जाएगी।”
धनेश्वर का प्रयास
सुबह जब धनेश्वर जागा, तो उसने देखा कि वहां एक आम का पेड़ उग आया था। पेड़ पर आम के फल भी लगे थे, लेकिन वे पेड़ के ऊंचे हिस्से में थे। धनेश्वर ने पेड़ पर चढ़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा।
थक-हारकर धनेश्वरने भगवान गणेश की प्रार्थना की, “हे विघ्नहर्ता, कृपया मेरी यह समस्या दूर करें ताकि मैं आम का फल तोड़ सकूं।” प्रार्थना के बाद उसने फिर से प्रयास किया और इस बार वह पेड़ पर चढ़कर एक आम तोड़ने में सफल हो गया।
धनेश्वर ने वह आम अपनी पत्नी रूपवती को दिया और कहा, “भगवान शिव का स्मरण करते हुए इस फल को खाओ।” कुछ समय बाद भगवान शिव की कृपा से रूपवती गर्भवती हो गई।
देवदास का जन्म
समय आने पर धनेश्वरऔर रूपवती को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने देवदास रखा। पुत्र प्राप्ति के बाद धनेश्वरऔर रूपवती ने हर पूर्णिमा का व्रत रखना शुरू कर दिया।
जब देवदास सोलह वर्ष का हुआ, तो माता-पिता को उसकी आयु की चिंता सताने लगी। उन्हें याद था कि माँ चंडी ने बताया था कि उसके जीवन की अवधि केवल 16 वर्ष होगी।
अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए धनेश्वर ने देवदास को उसके मामा के साथ काशी शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया। जाते समय उसने मामा से कहा, “एक वर्ष बाद ही उसे लेकर वापस आना।”
पूर्णिमा का व्रत और माँ भगवती की पूजा
धनेश्वरऔर रूपवती ने निरंतर पूर्णिमा का व्रत रखा और माँ भगवती की पूजा करते रहे, ताकि उनके पुत्र की आयु लंबी हो। इस बीच मामा और भांजा काशी के लिए निकल गए।
काशी जाते समय देवदास और उनके मामा एक गांव से गुजर रहे थे। उस गांव में एक ब्राह्मण कन्या का विवाह होने वाला था, लेकिन एक दुर्घटना के कारण कन्या की आंखों की रोशनी चली गई।
देवदास का विवाह प्रस्ताव
कन्या के पिता ने देवदास को देखा और उनके मामा से कहा, “कुछ समय के लिए देवदास को हमें दे दीजिए ताकि हम उसके स्थान पर उसका विवाह करवा सकें। इसके बाद आप उसे वापस ले जा सकते हैं।”
मामा ने कहा, “जो भी कन्यादान में प्राप्त होगा, वह हमें दे दीजिए। फिर मैं अपने भांजे को इस विवाह का दूल्हा बना दूंगा।” कन्या के पिता ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया, और देवदास को दूल्हा बनाया गया। विवाह के सभी संस्कार विधिपूर्वक संपन्न हुए।
विवाह के बाद जब देवदास भोजन के लिए बैठे, तो उन्होंने कुछ नहीं खाया। उनकी पत्नी ने पूछा, “आप खाना क्यों नहीं खा रहे? आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं? आप इतने दुखी क्यों हैं?”
देवदास ने बताई सच्चाई
देवदास ने अपनी पत्नी को पूरी सच्चाई बताई। यह सुनकर पत्नी ने कहा, “यह ब्रह्म विवाह के खिलाफ है। आग के समक्ष मैंने आपको अपना पति माना है।”
देवदास ने समझाने का प्रयास करते हुए कहा, “मेरी आयु बहुत कम है। मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा?”
पत्नी ने उत्तर दिया, “जो होगा देखा जाएगा। मैंने आपको अपना पति माना है, और अब कुछ भी बदल नहीं सकता।”
विचलित देवदास का विदा होना
देवदास जब विदा होने लगे, तो उन्होंने अपनी पत्नी को तीन रत्नों से जड़ी एक अंगूठी और एक रूमाल दिया। उन्होंने कहा, “मेरे जीवन और मृत्यु का पता लगाने के लिए एक फूलों का बगीचा बनाना। उसमें चमेली का पौधा लगाना और उसकी देखभाल करना। यदि वह सूख जाए, तो समझ लेना कि मेरी मृत्यु हो गई है। यदि वह हरा-भरा रहे, तो जान लेना कि मैं जीवित हूं।”
देवदास अपनी पत्नी को सांत्वना देते हुए वहां से काशी के लिए निकल पड़े। उनकी पत्नी ने उनके दिए गए संकेत को ध्यान में रखते हुए बगीचा बनाने का निश्चय किया।
सुबह का खुलासा
सुबह ब्राह्मण कन्या ने अपने पिता से कहा, “यह मेरे पति नहीं हैं। मेरे पति तो वही हैं, जिन्होंने मुझसे रात को विवाह किया था। अगर यह मेरे पति हैं, तो यह बताएं कि हमने रात में क्या बात की थी।”
यह सुनकर वह व्यक्ति शर्मिंदा हो गया और बोला, “मुझे कुछ नहीं पता, मैं कुछ नहीं जानता।” यह कहकर वह वहां से चला गया।
देवदास और उनके मामा काशी में शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे। एक सुबह, देवदास के पास एक सांप आया, जो उन्हें डसने वाला था। लेकिन 32 पूर्णिमा के व्रत की शक्ति के कारण सांप वहां से चला गया और देवदास को कुछ नहीं हुआ।
काल का आगमन और देवी-देवताओं का हस्तक्षेप
कुछ समय बाद स्वयं काल देवदास की प्राण शक्ति लेने आए। देवदास अचेत होकर गिर पड़े। यह देख भगवान शिव और माँ पार्वती वहां प्रकट हुए। माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा, “हे स्वामी, उसकी माता ने 32 पूर्णिमा के व्रत किए हैं। कृपया इसे जीवनदान दें।”
32 पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव से मृत्यु भी पीछे हट गई और देवदास को जीवनदान मिला।
देवदास की पत्नी ने फूलों का बगीचा बनाया था, जिसमें चमेली के पौधे लगाए गए थे। उसने देखा कि पूरा बगीचा सूख चुका था। अचानक बगीचा फिर से हरा-भरा हो गया। यह देख वह समझ गई कि उसके पति जीवित हैं।
काशी से वापसी और पुनर्मिलन
16 वर्ष पूरे होने के बाद देवदास और उनके मामा काशी से लौटे। वे कन्या के घर पहुंचे। कन्या ने तुरंत अपने पति को पहचान लिया। उसी दिन यह प्रमाणित हुआ कि 32 पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण धनेश्वरके पुत्र को जीवनदान मिला। तो यह थी माघ पूर्णिमा व्रत की कथा।
निष्कर्ष
इस प्रकार, पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव से सभी को लाभ मिलता है। यह व्रत न केवल कष्टों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
जो महिलाएं 32 पूर्णिमा का व्रत करती हैं, वे सदा सौभाग्यशाली रहती हैं। इस व्रत के प्रभाव से पुत्र, पौत्र और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। भोलेनाथ की कृपा से यह व्रत करने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।