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Madhurashtakam Lyrics: अधरं मधुरं वदनं मधुरं पाठ और अन्य तथ्य

Anushka Mishra
Last updated: January 3, 2025 6:32 pm
By Anushka Mishra
7 Min Read
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मधुराष्टकम् क प्रसिद्ध भक्ति गान है जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करता है।

Contents
मधुराष्टकम् का अर्थमधुराष्टकम् के पाठ की विधिमधुराष्टकम्पाठ के नियममधुराष्टकम् से जुड़े अन्य तथ्यदार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण- मधुराष्टकम् केनिष्कर्षFrequently Asked Questions (FAQs) related to मधुराष्टकम्

यह आठ छंदों का समूह है, जिसमें भगवान कृष्ण के मधुर स्वरूप और उनके चरित्र की अत्यधिक प्रशंसा की गई है।

मधुराष्टकम् के गायक भगवान श्री कृष्ण के भक्ति में निमग्न होते हैं, और यह भक्ति गीत विशेष रूप से कृष्ण श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत प्रिय है।

मधुराष्टकम् का अर्थ

मधुराष्टक में आठ श्लोक हैं, जो प्रत्येक श्लोक में भगवान श्री कृष्ण के प्यारे रूप, उनकी सुंदरता और दिव्य लीलाओं का विवरण करते हैं।

यह गान हमें भगवान के प्यार, करुणा और महिमा का अनुभव करने का अवसर देता है।

इन श्लोकों में भगवान कृष्ण को “मधुर” (मीठा) रूप में चित्रित किया गया है, जो भक्तों के मन में प्यार और श्रद्धा का प्रतीत होता है।

मधुराष्टकम् के पाठ की विधि

मधुराष्टक का पाठ करना भगवान श्री कृष्ण के प्रति विशेष श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करने की एक विशेष भक्ति प्रक्रिया है। इसके लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  • स्थान और समय: शांत और पवित्र स्थान पर, सुबह या शाम वक्त पर पाठ करें।
  • स्वच्छता: स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर पाठ करना अच्छा होता है।
  • मानसिक स्थिति: मन को एकाग्र और शांत रखें, पूर्ण श्रद्धापूर्वक भगवान श्री कृष्ण के प्रति पाठ करें।
  • पाठ विधि: नियमित रूप से आठ श्लोकों का पाठ करें, 1 माला (108 बार) का भी जप कर सकते हैं।
  • ध्यान: पाठ के बाद भगवान का ध्यान करें और उनके मधुर स्वरूप की धारणा करें।
  • नियमितता: नियमित पाठ से भक्ति में वृद्धि और शांति मिलती है।

यह विधि जीवन में सुख, शांति और आंतरिक संतुलन लाने में मददगार है।

मधुराष्टकम् पाठ

मधुराष्टकम्

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

पाठ के नियम

मधुराष्टकम् के पाठ के नियम निम्नलिखित है:-

  • प्रशांत और स्थिर स्थान पर पठन करें।
  • स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें।
  • मन को शांतिपूर्वक और एकाग्र बनाए रखें।
  • नियमित रूप से आठ श्लोकों का पाठ करें।
  • १०८ बार (१ माला) मंत्र जपें।
  • पठ के बाद भगवान श्री कृष्ण की ध्यान करें।
  • नियमित तौर पर पठन करें।

मधुराष्टकम् से जुड़े अन्य तथ्य

  • मधुराष्टकम एक संस्कृतिक अष्टक है जो संत श्रीवल्लभाचार्य द्वारा लिखा गया था।
  • श्रीवल्लभाचार्य एक तेलुगु ब्राह्मण थे जिन्होंने पुष्टिमार्ग का प्रचार किया था।
  • इस अष्टक में बालरूप में श्रीकृष्ण की मधुरता का वर्णन किया गया है।
  • मधुराष्टकम का पाठ करने से श्रीकृष्ण भक्ति का आनंद मिलता है और इसे देवता की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका दिया जाता है।
श्री कृष्णा मधुराष्टकम्

दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण- मधुराष्टकम् के

मधुराष्टक का उद्देश्य सिर्फ भगवान श्री कृष्ण के विविध रूपों के स्तुति करने से ही नहीं, यह भक्ति और आत्मज्ञान की दिशा में भी मार्गदर्शन प्रदान करने में सहायक है।

इन श्लोकों के माध्यम से भक्तों को कृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को प्रोत्साहित किया जाता है।

प्रत्येक श्लोक की पारेशानी गहराती है जो हमारे जीवन में प्रेम, कारुण्य और परमात्मा की ओर स्थिर करती है।

निष्कर्ष

मधुराष्टक एक आध्यात्मिक सफ़र है, जो हमें भगवान श्री कृष्ण के मिष्ट रूप और उनकी दिव्य महिमा से जुड़ती है।

इस पाठ से हमें सिर्फ आत्मिक शांति ही नहीं मिलती, बल्कि यह हमारे जीवन को एक नये आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी जोड़ता है।

इस लेख के जरिए हमने इस गीत के महत्व और इसके पाठ की विधि को समझा, जो हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

भगवान श्री कृष्णा मधुराष्टकम् पाठ

Frequently Asked Questions (FAQs) related to मधुराष्टकम्

मधुराष्टकम् का अर्थ क्या है?

मधुराष्टकम् भगवान श्री कृष्ण के आठ श्लोकों की एक धार्मिक गीत है, जो उनके प्रिय स्वरूप और गुणों की चर्चा करती है।

इसे विशेष रूप से उनके भक्तों द्वारा पूजनीय माना जाता है, जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को अभिव्यक्त किया है।

मधुराष्टकम् में कितने श्लोक होते हैं?

भगवान श्री कृष्ण के मधुराष्टकम् में कुल आठ श्लोक होते हैं, जो भगवान श्री कृष्ण की महिमा, उनकी दिव्य लीलाएँ और रूपों की स्तुति करते हैं।

मधुराष्टकम् को किसने लिखा था?

मधुराष्टकम् का रचयिता श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्य, श्री कृष्णदास जी ने किया था।

उन्हें भगवान श्री कृष्ण के आश्चर्यजनक स्वरूप और गुणों के लिए विशेष प्रसिद्धि प्राप्त है।

मधुराष्टकम् का पाठ क्यों किया जाता है?

इसका पठन उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति विश्वास और भक्ति को व्यक्त करना चाहते हैं।

यह उन्हें मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और ईश्वर के साथ एकीभाव का अनुभव कराता है।

मधुराष्टकम् का महत्व क्या है?

मधुराष्टकम् में भक्ति में गहराई और कृष्ण के प्रति प्रेम की मानुकार है।

इसके पाठ से व्यक्ति अपने अंतर में ईश्वर की उपस्थिति महसूस कर

पढ़िए, मधुराष्टकम् का अर्थ

जरूर पढ़ें, भागवत गीता के उपदेश

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