देवी भागवत पुराण के अनुसार, चैत्र नवरात्र में देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना अत्यंत फलदायी मानी जाती है।नवरात्रों में भक्तजन मां की कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न पूजन सामग्री का प्रयोग करते हैं।
यह पर्व भक्तों को शक्ति, ज्ञान और समृद्धि प्रदान करता है।
नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक नवरात्र में देवी की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें जीवन में सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
हर सामग्री का एक आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व होता है, जो पूजा की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
महत्वपूर्ण पूजन सामग्री
कलश
कलश स्थापना किसी भी देवी-देवता की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
इसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जिसमें देवी की उपस्थिति होती है।
कलश में जल भर कर उसमें आम के पत्ते, सुपारी, पंचरत्न और नारियल रखे जाते हैं।
आम के पत्ते सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं, सुपारी मंगल कार्यों की सफलता का प्रतीक होती है, पंचरत्न पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और नारियल श्रीफल के रूप में देवी को अर्पित किया जाता है।
कलश स्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहती है।

माता का आसन
माता का आसन लाल या पीले कपड़े पर बनाया जाता है।
लाल रंग शक्ति, ऊर्जा और विजय का प्रतीक होता है, जबकि पीला रंग शुभता और ज्ञान का प्रतीक है।
देवी का आसन सही तरीके से स्थापित करने से पूजा में स्थायित्व और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
ऐसा माना जाता है कि उचित आसन पर स्थापित देवी की प्रतिमा या चित्र से घर में शांति और समृद्धि आती है।
अक्षत
पूजन में प्रयोग किए जाने वाले चावल को अक्षत कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘जो खंडित न हो।
यह संपूर्णता, अखंडता और समृद्धि का प्रतीक है। देवी को अक्षत अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
विशेष रूप से, हल्दी से रंगे चावल देवी लक्ष्मी और दुर्गा की पूजा में अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
हल्दी और कुमकुम
कुमकुम और हल्दी देवी पूजन में अनिवार्य माने जाते हैं।
कुमकुम सौभाग्य, शक्ति और समृद्धि का प्रतीक है, जबकि हल्दी स्वास्थ्य और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है।
देवी को कुमकुम अर्पित करने से भक्तों पर उनका आशीर्वाद बना रहता है और जीवन में सुख-शांति आती है।

पुष्प
विभिन्न फूल देवी को प्रिय होते हैं, जैसे-गुड़हल मां
काली को अत्यंत प्रिय होता है और शक्ति का प्रतीक है।
कमल और गुलाब मां लक्ष्मी का प्रिय फूल है और धन- समृद्धि को आकर्षित करते हैं।
गेंदा शुभता और मंगल कार्यों का प्रतीक माना जाता है।
पुष्प पूजन से वातावरण पवित्र होता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
नारियल
नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है, जिसका ‘अर्थ है ‘शुभ फल’।
यह कठोर बाहरी आवरण वाला होता है, जो मनुष्य के अहंकार को दर्शाता है, जिसे त्यागने के बाद ही आंतरिक शुद्धता प्राप्त की जा सकती है।
देवी को ‘नारियल अर्पित करने से जीवन में उन्नति, सफलता और सुख-शांति आती है।
अखंड दीपक
नवरात्र में अखंड दीपक जलाने की परंपरा अत्यंत शुभ मानी जाती है।
खासतौर पर गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाना बहुत ही लाभकारी होता है।
यह न केवल वातावरण को पवित्र करता है बल्कि घर में दिव्य
ऊर्जा को बनाए रखता है।
घी का दीपक जलाने से देवी महालक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
कहा जाता है कि अखंड दीप जलाने से घर में कोई नकारात्मकता प्रवेश नहीं करती।

कपूर और धूप
कपूर जलाने से वातावरण शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
यह बुरी शक्तियों को दूर करता है और मन को शांति प्रदान करता है ।
धूप, देवी को अर्पित करने से वातावरण सुगंधित होता है, जिससे ध्यान और पूजा में एकाग्रता बनी रहती है।
भोग
नवरात्र में मां दुर्गा को विशेष भोग अर्पित किया जाता है।
नौ दिनों में अलग-अलग प्रसाद चढ़ाने की परंपरा होती है, जैसे-
- पहले दिन घी,
- दूसरे दिन शक्कर,
- तीसरे दिन दूध,
- चौथे दिन मालपुए,
- पांचवें दिन केले,
- छठे दिन शहद,
- सातवें दिन नारियल,
- आठवें दिन हलवा और
- नौवें दिन पूड़ी, खीर या हलवा का भोग अर्पित करने से मां की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में खुशहाली आती है।
हवन सामग्री
नवरात्र में हवन करने का विशेष महत्व होता है।
इसमें विशेष जड़ी-बूटियां, गुग्गुल, लोबान, चंदन और अन्य पवित्र पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
हवन से वातावरण शुद्ध होता है, नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। और देवी की कृपा प्राप्त होती है।

पूजन सामग्री की वैज्ञानिक व्याख्या
देवी पूजन में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी होती है।
उदाहरण के लिए, कपूर जलाने से वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और हवा शुद्ध हो जाती है।
धूप और अगरबत्ती में इस्तेमाल की जाने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ मानसिक शांति प्रदान करती हैं।
हवन सामग्री में आम, पीपल, बेल, चंदन और अन्य औषधीय तत्व होते हैं, जो जलाने पर वातावरण को शुद्ध करते हैं और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं।
गंगाजल में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जिसके कारण इसे शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
हल्दी और कुमकुम का उपयोग त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें एंटीसेप्टिक गुण होते हैं।
इस प्रकार, देवी पूजन की प्रत्येक सामग्री वैज्ञानिक आधार पर भी सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।
पूजन सामग्री चुनने के महत्वपूर्ण नियम
देवी पूजन के लिए शुद्ध और सात्विक सामग्री का चयन बहुत महत्वपूर्ण है।
- प्राकृतिक और शुद्ध सामग्री चुनें – जैसे जैविक हल्दी, देसी घी, शुद्ध कपूर, गंगाजल आदि।
- अशुद्ध और मिलावटी वस्तुओं से बचें – बाजार में नकली कुमकुम, केमिकल युक्त अगरबत्ती और सिंथेटिक धूपबत्ती उपलब्ध हैं, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
- ताजे फूल और फलों का उपयोग करें – पूजा में बासी या खराब फूल और फल चढ़ाना अशुभ माना जाता है।
- स्थानीय और पारंपरिक सामग्रियों को प्राथमिकता दें – जैसे बेलपत्र, तुलसी के पत्ते, देसी गाय का घी आदि।
- प्लास्टिक और हानिकारक सामग्रियों से बचें – पूजा सामग्री को प्राकृतिक रूप से संरक्षित करें और पर्यावरण के अनुकूल पूजा करें।
सही पूजा सामग्री से न केवल देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।
पूजन सामग्री से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
क्या करें
- पूजा सामग्री को शुद्ध और साफ जगह पर रखें।
- पूजा से पहले स्नान करके खुद को शुद्ध करें।
- देवता के सामने घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
- पूजा सामग्री को श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्पित करें।
- पूजा पूरी होने के बाद सामग्री का उचित तरीके से विसर्जन करें, खासकर फूल और प्रसाद को नदियों में न बहाएं।
क्या न करें
- पूजा सामग्री को गंदे स्थान पर न रखें।
- पूजा के दौरान अनुचित शब्दों या विचारों से बचें।
- पानी, दूध या अन्य तरल पदार्थों को बर्बाद न करें।
- पूजा समाप्त होने के तुरंत बाद दीपक को न बुझाएं, इसे स्वाभाविक रूप से बुझने दें।
- पूजा सामग्री को अशुद्ध हाथों से न छुएं और इसे किसी भी अशुद्ध स्थान पर न रखें।
देवी पूजा सामग्री के बिना भी प्रभावी पूजा कैसे करें?
अगर पूजा सामग्री उपलब्ध न हो, तो भी देवी पूजा की जा सकती है।
- मानसिक पूजा करें – देवी के सामने ध्यान करें और मन में भक्ति का भाव रखें।
- जल और अक्षत का प्रयोग करें – यदि अन्य सामग्री उपलब्ध न हो तो केवल जल, अक्षत और पुष्प अर्पित करके भी पूजा की जा सकती है।
- मंत्र जाप करें – मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के मंत्रों का जाप करने से भी देवी की कृपा प्राप्त होती है।
- ध्यान और प्रार्थना करें – एकांत में बैठकर देवी का ध्यान करें, यह भी पूजा का एक प्रभावी तरीका है।
- अपने कर्मों को शुद्ध करें – देवी को प्रसन्न करने के लिए अच्छे कर्म, दान और सेवा को अपनाएं
यह भी देखें: दुर्गा सप्तशती का पाठ

निष्कर्ष
देवी पूजन सामग्री का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है।
शुद्ध और सात्विक सामग्री का चयन करना आवश्यक है, जिससे पूजा का प्रभाव बढ़ता है और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।
पूजा करते समय नियमों का पालन करना चाहिए, ताकि देवी की कृपा प्राप्त हो सके।
मानसिक आस्था, ध्यान और मंत्र जाप के माध्यम से पूजा सामग्री के अभाव में भी प्रभावी पूजा संभव है।
सही तरीके से पूजा करने से आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है, मन को शांति मिलती है और सकारात्मकता का संचार होता है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति होती है।