माता चंद्रघंटा तीसरी नवदुर्गा है। उनका नाम माता चंद्रघंटा और चंद्रघंडा,चंडिका, और रणचंडी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूजा हुआ मां चंद्रघंटा की कथा पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ऐसा माना जाता है की माता अपनी कृपा बहादुरी और साहस से लोगों को पुरस्कृत करती है।
उनकी कृपा से इनके भक्तों के सभी पाप,कष्ट,शारीरिक कष्ट, मानसिक क्लेश, और भूत प्रेत बाधा भी नष्ट हो जाती है।
आइये पढ़े मां चंद्रघंटा की कथा।

मां चंद्रघंटा की कथा
मां चंद्रघंटा की कथा के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं और असुरों के बीच बहुत लंबे समय तक युद्ध हुआ। उस दौरान असुरो का राजा महिषासुर था और देवताओं के स्वामी इंद्रदेव थे।
युद्ध में असुरों की जीत हुई और महिषासुर ने देवलोक में विजय प्राप्त करके भगवान इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया।
महिषासुर ने इंद्र, सूर्य, चंद्रमा और वायु समेत सभी देवताओं से उनके अधिकार छीन लिए।
स्वर्ग से निकाल diyeजाने पर सभी देवता गण इस समस्या से निकलने के लिए ब्रह्मा विष्णु और महेश के पास गए।
वहां जाने पर उन्होंने असुरों द्वारा किए गए अत्याचार और जीने गए अधिकारों के बारे में बतलाया।
देवताओं ने त्रिदेव को बताया कि महिषासुर के अत्याचार से हमारा स्वर्ग लोक तथा पृथ्वी लोक पर भी विचरण करना संभव हो गया है।
क्रोधित होने पर उन तीनों भगवान के मुँह से एक ऊर्जा प्रकट हुई। वह ऊर्जा जाकर देवतागण के शरीर की ऊर्जा से मिल गई। यह ऊर्जा दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी।
तभी उसे ऊर्जा से एक कन्या उत्पन्न हुई पूर्ण विरमता भगवान शंकर ने देवी को अपना त्रिशूल भेंट किया। भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया।
इसी तरह भगवान ने माता को अस्त्र-शस्त्र देकर सजा दिया। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी माता को भेंट किया। सूर्य ने अपना तेज,तलवार और सवारी के लिए शेर प्रदान किया।
तब देवी चंद्रघंटा सभी शास्त्रों को लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि में आ गई। मां चंद्रघंटा का यह विशाल रूप देखकर महिषासुर भय से कांप उठा।
महिषासुर ने अपनी सेना को मां चंद्रघंटा के ऊपर हमला करने का आदेश दिया। कहते हैं कि महिषासुर की विशाल सिंह क्षण भर में माता के कोप से नष्ट हो गई।
चंद्रघंटा मां ने राक्षसों की सेना का संघार करने के लिए त्रिशूल की टंकार को धरा। माता के सिंह ने भी दहाड़ना शुरू कर दिया और फिर माता ने घंटे के शब्द से उसे ध्वनि को और बढ़ा दिया।
जिससे त्रिशूल की टंकार, सिंह की दहाड़ और घंटे की ध्वनि से संपूर्ण दिशाएं गूंज उठी। उसे भयंकर शब्द और अपने प्रताप से देवी मैं दैत्यों के समूह का संघार कर कर देवताओं को विजय प्राप्त करवाई।
इस प्रकार मां चंद्रघंटा ने असुरों का वध किया और देवताओं को अभय दान देते हुए अंतर ध्यान हो गई।
मां चंद्रघंटा की कथा संपूर्ण हुई।।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की विधि विधान से पूजा करें और इस मंत्र “ॐ देवी चंद्रघण्टाये नमः ” का 108 बार जाप करें।
इसके बाद मां चंद्रघंटा को सिंदूर अक्षत धूप पुष्प आदि अर्पित करें।
अब देवी मां को चमेली के फूल के अलावा कोई भी लाल फूल अर्पित कोई भी लाल फूल अर्पित कर सकते हैं साथ ही साथ दूध से बनी किसी मिठाई का भोग लगाएं।
साथ ही दुर्गा चालीसा का पाठ या दुर्गा आरती का गान करें।
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मां दुर्गा की आरती
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता ।
सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित,
वर मुद्रा धारी । [खड्ग खप्पर धारी]
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी ।
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