माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। उनका रूप अत्यधिक शांत और कल्याणकारी है। माता के माथे पर आधे चाँद के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
उनका रूप अत्यंत प्रभावशाली है, उनका शरीर सोने जैसा चमकदार और दस हाथों से सुसज्जित है। वे शेर पर सवार हैं और उनकी पूजा से शरीर के सभी रोग, पीड़ाएँ और अन्य दुख दूर हो जाते हैं।
माता चंद्रघंटा की उपासना से संसार और परलोक दोनों में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चंद्रघंटा माता की उपासना से भय, मानसिक शांति और समृद्धि मिलती है। यह दिन विशेष रूप से मानसिक और शारीरिक शांति के लिए लाभकारी होता है।
माँ चंद्रघंटा की कथा
पुराणों में माता चंद्रघंटा की एक कथा का वर्णन किया गया है। एक समय देवलोक में असुरों का आतंक बढ़ गया था। उस समय महिषासुर असुरों का राजा था। महिषासुर ने देवों का राज्य छीनने के लिए कई उपाय अपनाए। उसकी इच्छाओं के आगे देवता परेशान हो गए थे, और इस पर वे त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे।
तीनों देवता जब महिषासुर के अत्याचारों के बारे में जानते हैं, तो उनका क्रोध बढ़ जाता है। इसी क्रोध से एक देवी का जन्म हुआ। भगवान विष्णु ने इस देवी को चक्र दिया, भगवान शिव ने त्रिशूल और भगवान ब्रह्मा ने कमंडलु प्रदान किया।
सभी देवताओं से आशीर्वाद लेकर देवी चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची। देवी का भव्य रूप देखकर महिषासुर को समझ में आ गया कि अब उसका विनाश निश्चित है। वह डर से कांपने लगा और देवी के सामने हार मान ली।
माता चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया और देवलोक में शांति स्थापित की। उनकी पूजा से भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि
माता चंद्रघंटा की पूजा विधि अत्यंत सरल है। नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह उबटन करके स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर माता के चित्र या मूर्ति को रजत घंटे के साथ रखें और दीपक जलाएं। देवी के मंत्रों का जाप करें और उनका ध्यान करके पूजा करें।
पूजा विधि
1. स्नान करें: पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ हो जाएं।
2. मूर्ति या चित्र स्थापना: माँ चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र को अपने पूजा स्थान पर स्थापित करें।
3. पवित्र जल से स्नान: माँ के चित्र या मूर्ति को गंगाजल, केवड़ा या केसर से स्नान कराएं।
4. सज्जा: फिर उन्हें सोने जैसे रंग के वस्त्र पहनाएं।
5. फूलों की माला अर्पित करें: उनके सिर पर कमल या गुलाब के फूलों की माला चढ़ाएं।
6. भोग अर्पित करें: फिर मिठाइयाँ, पंचामृत और मिश्री अर्पित करें।
7. मंत्र जाप: जो लोग दुर्गा का पाठ करते हैं, वे दुर्गा चालीसा, स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
8. आरती: अंत में माँ चंद्रघंटा की आरती गाएं।
माँ चंद्रघंटा का रूप
चंद्रघंटा माँ का रूप अत्यंत आकर्षक और दिव्य है। उनके माथे पर चाँद की आधी अवस्था है, जो उनके शांति और सामर्थ्य का प्रतीक है। वे दस हाथों से सुसज्जित हैं और उनके हाथों में विभिन्न शस्त्र होते हैं। वे सिंह पर सवार हैं, जो उनकी शक्ति का प्रतीक है।
माँ चंद्रघंटा के प्रिय
– रंग: माँ चंद्रघंटा का प्रिय रंग लाल है।
– फूल: गुलाब और कमल उनके प्रिय फूल हैं।
– भोग: माँ चंद्रघंटा को दूध से बनी खीर या दूध से बनी मिठाइयाँ अर्पित करना अत्यंत प्रिय है।
मंत्र
माँ चंद्रघंटा का विशेष मंत्र है:
“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से सभी प्रकार के शारीरिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।