नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी का यह रूप तपस्या और साधना का प्रतीक है। आइए जानें माँ ब्रह्मचारिणी की कथा, पूजा विधि और इस दिन का महत्व।
ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं।
उनके नाम का अर्थ है – ‘ब्रह्म’ अर्थात तपस्या और ‘चारिणी’ अर्थात तपस्या करने वाली देवी। माँ का यह स्वरूप साधकों को धैर्य, आत्मविश्वास और तप का मार्ग दिखाता है।
पूजा विधि
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाएं:
- सुबह स्नान के बाद स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करें।
- घर की सफाई करें और माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- पंचामृत से स्नान कराकर माँ को सफेद या पीले वस्त्र अर्पित करें।
- रोली, चंदन, अक्षत, गुड़हल या वट वृक्ष के फूल अर्पित करें। पूजा में केवल गुड़हल या लाल रंग के फूलों का ही उपयोग करें।
- सफेद रंग के भोजन, विशेषकर चीनी या गुड़ से बने प्रसाद का भोग लगाएं।
- माँ ब्रह्मचारिणी के मंत्र का जाप करें:
“दधाना कर पद्माभ्यां अक्षमाला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।”
माँ ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
देवी पार्वती का जन्म पर्वतराज हिमालय और उनकी पत्नी मैना के घर हुआ था। देवी पार्वती ने सभी प्रकार के ज्ञान में निपुणता प्राप्त की। जब उनके विवाह का समय आया, तब नारद मुनि ने हिमालय राज को देवी पार्वती के लिए वर के रूप में भगवान शिव का नाम सुझाया। नारद मुनि की इस आज्ञा को सभी ने स्वीकार किया।
इसके बाद, हिमालय राज अपनी पुत्री पार्वती के साथ भगवान शिव के पास गए और उनसे अपनी पुत्री को स्वीकार करने का आग्रह किया। महादेव ने देवी पार्वती को अपनी सेवा में स्वीकार कर लिया, लेकिन यह देखकर कि देवी पार्वती उनके प्रति आकर्षित नहीं हो रही हैं, देवता चिंतित हो गए। वे सोचने लगे कि यदि यह स्थिति बनी रही तो महादेव और पार्वती का विवाह संभव नहीं हो पाएगा।
इस समस्या का समाधान करने के लिए देवताओं ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की और कामदेव को भगवान शिव की तपस्या में विघ्न डालने के लिए भेजा। लेकिन भोलेनाथ ने अपनी तीसरी आँख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। इस घटना के बाद देवी पार्वती के लिए महादेव को प्रसन्न करना और भी कठिन हो गया।
देवी पार्वती की कठोर तपस्या
तब मुनिराज नारद ने देवी पार्वती को कठोर तपस्या करने का सुझाव दिया और भगवान शिव का पंचाक्षर मंत्र, “ॐ नमः शिवाय”, का जाप करने की सलाह दी।
अब देवी पार्वती ने यह संकल्प लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह तब तक विश्राम नहीं करेंगी जब तक महादेव को अपने पति रूप में प्राप्त नहीं कर लेतीं। अपने माता-पिता की अनुमति लेकर देवी पार्वती अपनी दो सहेलियों, जया और विजया, के साथ गंगा नदी के उद्गम स्थान, यानी गंगोत्री धाम, की ओर तपस्या करने के लिए निकल पड़ीं।
वहां पहुंचकर, देवी पार्वती ने एक सुंदर वन देखा। वहां उन्होंने एक वेदी पर बैठकर कठोर तपस्या आरंभ की, जो कि महान ऋषि-मुनियों के लिए भी अत्यंत कठिन थी। गर्मियों में, वह अग्नि का गोला बनाकर उसके बीच दिन-रात बैठकर पंचाक्षर मंत्र का जाप करती थीं। बरसात के मौसम में, देवी पार्वती एक चट्टान पर बैठतीं और मूसलधार वर्षा में भीगती रहतीं।
माँ ब्रह्मचारिणी का नामकरण
सर्दियों के दौरान, वह निराकार होकर अत्यधिक ठंडे पानी में खड़े होकर या बर्फीली चट्टान पर बैठकर तपस्या करती थीं। इस प्रकार उन्होंने भयंकर आंधी, कठोर केदारनाथ की ठंड, भारी बारिश और तीव्र गर्मी का सामना किया, लेकिन उनका संकल्प दृढ़ बना रहा। वह कभी विचलित नहीं हुईं। कभी-कभी वह फल खातीं और कभी केवल पत्ते खाकर तपस्या करतीं। अपनी तपस्या को और कठिन बनाते हुए, उन्होंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया, जिससे उन्हें अर्पणा नाम मिला।
इस कठोर तपस्या को करते हुए 3000 वर्ष बीत गए। उनकी कठिन साधना और तपस्या ने देवताओं और ऋषियों को भी विस्मित कर दिया । उनकी अतुलनीय भक्ति और तप के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा जाने लगा। अंततः, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।
तो यह थी माँ ब्रह्मचारिणी की दिव्य कथा, जो चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन से जुड़ी है।
माँ ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद का महत्व
जो भक्त माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करता है, उसे आत्मबल, धैर्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। माँ की कृपा से जीवन की सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं और साधक को विजय प्राप्त होती है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन की इस पावन कथा और पूजा विधि से अपने जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भरें। माँ ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना करें कि वे हमें तपस्या और भक्ति के मार्ग पर चलने की शक्ति दें।
देवी ब्रह्मचारिणी मंदिर
देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित एक दिव्य मंदिर काशी के के सप्तसागर, कर्णघंटा क्षेत्र में स्थित है। नवरात्रि के दौरान देशभर से भक्त इस मंदिर में आकर माँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं।
निष्कर्ष
जो भी माँ ब्रह्मचारिणी के इस रूप की पूजा करता है, उसे परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है। माँ के दर्शन मात्र से ही भक्त को यश और कीर्ति प्राप्त होती है। कई लोगों ने नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान कठोर तप करने का संकल्प लिया होगा, लेकिन यह संकल्प तब तक पूरा नहीं होता जब तक माँ की पूजा न की जाए।
इसलिए, माँ ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना करें कि वह हमें तपस्या के मार्ग पर चलने की शक्ति, बुद्धि और उचित गुरु का मार्गदर्शन प्रदान करें ताकि हम साधना और भक्ति के पथ पर अग्रसर हो सकें।