मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है कनकधारा स्तोत्र का पाठ। यह स्तोत्र आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचा गया था।
यदि कनकधारा स्तोत्र का पाठ को सही तरीके से किया जाए, तो मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और धन प्राप्ति के अवसर बनते हैं। हम आपको बताते हैं कि कनकधारा स्तोत्र क्या है। कनकधारा स्तोत्र का अर्थ है – कणक अर्थात सोना और धारा अर्थात प्रवाह। यानी वह स्तोत्र जो सोने की धारा प्रवाहित करता है, उसे कनकधारा स्तोत्र कहते हैं।
हम आपको बताएंगे कि चमत्कारी कनकधारा स्तोत्र के पाठ से सोने की वर्षा कैसे होती है। जो लोग इसका पाठ करते हैं, उन्हें इसे अपने हृदय से स्वीकार करना चाहिए। यदि आप इसका पाठ करते हैं, तो आपके जीवन में अपार धन की प्राप्ति होगी।
मां लक्ष्मी स्वयं कहती हैं कि जो व्यक्ति कनकधारा स्तोत्र का पाठ करता है, उसके परिवार में कभी धन की कमी नहीं होती।
कनकधारा स्तोत्र की रचना
जब आदि शंकराचार्य ने इस ग्रंथ की रचना की और मां लक्ष्मी की स्तुति की, तो स्वर्ग से सोने की वर्षा होने लगी। इसीलिए इसका नाम कनकधारा स्तोत्र पड़ा। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से इसका पाठ करता है, उसके जीवन में धन की कभी कमी नहीं होती।
शास्त्रों में उल्लेख है कि इस स्तोत्र के प्रभाव से मां लक्ष्मी ने सोने की वर्षा की। यह घटना उस समय की है जब आदि शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र और गीता जैसे उपनिषदों पर व्याख्यान दिया और उनके विभिन्न अर्थों को समझाया। उन्होंने ‘चूड़ामणि’ जैसे ग्रंथ की रचना की, जो साधारण आत्मा का काम नहीं है। यह दिव्य आत्मा ही ऐसा कर सकती है।
आदि शंकराचार्य के इस चमत्कारी स्तोत्र की रचना से आप भी इस कनकधारा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। इससे आपके जीवन में धन की कमी कभी नहीं होगी।
कनकधारा स्तोत्र की पौराणिक स्वर्ण वर्षा कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य भोजन की तलाश में भटक रहे थे और वे एक गरीब ब्राह्मण के घर भिक्षा मांगने गए। ब्राह्मण अत्यंत निर्धन था और उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने उन्हें सूखा आंवला भिक्षा में दिया। शंकराचार्य ने मां लक्ष्मी से प्रार्थना की कि उस ब्राह्मण की गरीबी दूर हो। उनकी प्रार्थना समाप्त होते ही ब्राह्मण के घर में सोने के आंवले बरसने लगे।
इस प्रार्थना को कनकधारास्तोत्र के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके घर में कभी धन की कमी नहीं होती।
कनकधारास्तोत्र का पाठ
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कनकधारास्तोत्र का पाठ बहुत ही सरल है। इसे “स्वर्णधारा स्तुति” के नाम से भी जाना जाता है। यह माना जाता है कि इस स्तोत्र का प्रभाव चमत्कारी होता है और यह शुभ परिणाम देता है। मां लक्ष्मी को प्राप्त करने के सभी मंत्रों में कनकधारास्तोत्र का विशेष स्थान है।
यह स्तोत्र धन और स्थिरता से संबंधित सभी समस्याओं को शांत करने में अधिक सक्षम है। इस स्तोत्र की महिमा के बारे में कहा गया है कि यह स्वर्ण वर्षा लाने वाला अद्भुत स्तोत्र है। इसके कई लाभ हैं। यदि आप इसका पाठ करते हैं, तो आपको अपने जीवन में कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
यह कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति नियमित रूप से कनकधारास्तोत्र का पाठ करता है, उसे धन की प्राप्ति होती है। यदि आपकी कुंडली में धन का योग न हो, तब भी कनकधारास्तोत्र के पाठ से धन प्राप्ति संभव है। यदि आप अपने कर्मों के कारण निर्धन हो गए हैं, तो इस स्तोत्र का पाठ करने से आपकी गरीबी हमेशा के लिए दूर हो जाती है।
इसके चमत्कारी लाभ
मां लक्ष्मी ने स्वयं कहा है कि जो भी व्यक्ति इसे भक्ति और श्रद्धा से पढ़ता है, उसके परिवार में कभी धन की कमी नहीं होती। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए भी यह पाठ बहुत प्रभावी है। यदि आप भारी कर्ज में हैं और जीवन में परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो कनकधारास्तोत्र का नियमित पाठ करें।
यह एक सिद्ध स्तोत्र है, जिसके पाठ से आपकी इच्छाएं शीघ्र पूरी होती हैं। नए धन के मार्ग खुलने लगते हैं, जिससे आपके जीवन में अपार धन आने लगता है। यदि व्यवसाय में धन आता है लेकिन वह बचता नहीं है, तो यह स्तोत्र धन को संचित करने में भी सहायक होता है।
कनकधारास्तोत्र के पाठ से आठ सिद्धियां, धन, वैभव, मान-सम्मान, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि, संतान सुख, विजय, और शांति की प्राप्ति होती है। यह पाठ इतना सरल है कि इसके लिए किसी विशेष माला या पूजा विधि की आवश्यकता नहीं होती। केवल इसे एक बार पढ़ना पर्याप्त है।
पाठ की विधि
- मां लक्ष्मी की एक मूर्ति या चित्र को लाल कपड़े पर एक स्थान पर स्थापित करें।
- कनकधारायंत्र या श्री यंत्र को दक्षिण दिशा में रखें। यदि कनकधारायंत्र उपलब्ध न हो, तो श्री यंत्र का उपयोग करें।
- रोजाना यंत्र के सामने अगरबत्ती जलाएं।
- इसे सुबह या शाम, किसी भी समय पढ़ सकते हैं। नियमित रूप से एक ही समय पर पाठ करना लाभकारी होता है।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ मात्र 8 मिनट में पूरा हो जाता है। यह आपके जीवन में चमत्कारिक बदलाव ला सकता है। इस स्तोत्र को दीवाली, अक्षय तृतीया, नवरात्रि या किसी शुक्रवार से आरंभ कर सकते हैं। यदि आप इसे नियमित रूप से पढ़ते हैं, तो आपके जीवन में धन, सुख, और समृद्धि का वास होगा।
कनकधारा स्तोत्र हिंदी अनुवाद सहित
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया: || 1 ||
हिंदी – जिस भांति भ्रमरी आधे खिले हुए पुष्पों से सुशोभित तमाल-तरु का आसरा लेती है| उसी भांति जो प्रकाश भगवान श्रीहरि के रोमांच से सुसज्जित श्री अंगों पर पड़ता है| जिसके भीतर सम्पूर्ण ऐश्वर्य निवास करती है| सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी की वह दिव्य दृष्टि मेरे लिए मंगलकारी हो|
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: || 2 ||
हिंदी – जिस प्रकार भ्रमरी महान कमल की पंखुड़ियों पर मंडराती रहती है| उसी प्रकार से जो भगवान श्रीहरि के मुखारविंद की ओर प्रेमपूर्वक जाती है तथा पुनः लज्जा के कारण लौट आती है| माता लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान कीजिये|
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय: || 3 ||
हिंदी – जो सभी देवताओं के अधिपति देवराज इंद्र के पद का वैभव-विलास प्रदान करने में सक्षम है| मधुहंता भगवान श्रीहरि को भी अत्यधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो कि नीलकमल के भीतरी भाग के समाग मनोहर ज्ञात होती है| उन माता लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि कुछ समय के लिए मुझ पर अवश्य पड़े|
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया: || 4 ||
हिंदी – वैकुंठ स्वामी भगवान विष्णु जी की धर्मपत्नी माता लक्ष्मीजी के नयन हमे ऐश्वर्य व धन संपत्ति प्रदान करने वाले हो| जिनकी पुतली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत हो, लेकिन साथ ही अपलक नयनों से देखने वाले श्री मुकुंद जी को अपने समीप पाकर थोड़ी तिरछी हो जाती है|
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया: || 5 ||
हिंदी – जो भगवान विष्णु के कौस्तुभमणि मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलम हरावली की भांति सुशोभित होती है तथा उनके मन में भी प्रेम का संचार करने वाली है| वह कमल कुंजवासिनी की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करें|
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया: || 6 ||
हिंदी – जिस प्रकार बादलों की घटा में बिजली चमकती है| उसी प्रकार से कैटभ शत्रु भगवान श्री विष्णु की काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है| जिन्होंने अपने अवतरण से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो सम्पूर्ण जगत की जननी है| वह भगवती लक्ष्मी माता की प्रतिमा मुझे कल्याण प्रदान करे|
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया: || 7 ||
हिंदी – समुन्द्र कन्या मात लक्ष्मी की बह मंद, अलस व मंथर दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान श्रीहरि के हृदय में पहली बार स्थान प्राप्त किया था|, वह मुझ पर भी पड़े|
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: || 8 ||
हिंदी – भगवान विष्णु जी सबसे प्रिय माता लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर करके विषाद रूपी धर्मजन्य ताप के द्वारा पीड़ित चातक पर धनरूपी जलधारा की वर्षा करे|
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:|| 9 ||
हिंदी – विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग के पद को आसानी से प्राप्त कर लेते है, पद्मासन माता लक्ष्मी जी की वह विकसित कमल के गर्भ के समान आपकी यह कांतिमय दृष्टि मुझे मनोवांछित फल प्रदान करे|

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै:|| 10 ||
हिंदी – जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के समय में शाकम्भरी अथवा चंद्रशेखर वल्लभा पार्वती के रूप में विराजमान होती है| इस सम्पूर्ण जगत के एकमात्र पिता भगवान श्री विष्णु जी की उन नित्य यौवना प्रिय श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार है|
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै:|| 11 ||
हिंदी – हे शुभ कर्मों का फल देने वाली माता लक्ष्मी श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है| रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है| कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूप माता लक्ष्मी को नमस्कार है व पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है|
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै:|| 12 ||
हिंदी – कमल वदना माता लक्ष्मी को नमस्कार है| क्षीर सिन्धु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है| सुधा व चंद्रमा की सगी बहन को नमस्कार है| भगवान श्री नारायण की वल्लभा को प्रणाम है|
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्:|| 13 ||
हिंदी – कमल के समान नयनो वाली माता लक्ष्मी ! आपके चरणों में किये गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनंद प्रदान करने वाले, साम्राज्य देने में सक्षम तथा सम्पूर्ण पापों को कर लेने के लिए हमेशा उद्यत है| वे सदा मुझे अवलंबन प्रदान करे|
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे:|| 14 ||
हिंदी – जिनकी कृपा कटाक्ष के लिए गई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथ तथा धनसंपत्ति का विस्तार करती है, भगवान श्रीहरि की हृदयेश्वरी माता लक्ष्मी का मैं मन, वाणी तथा शरीर से भजता हूँ|
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्:|| 15 ||
हिंदी – हे भगवती महालक्ष्मी ! आप कमल वन में निवास करने वाली हो, आपको हाथों में नीला कमल सुशोभित है| आप अत्यंत ही उज्जवल वस्त्र, गंध एवं माला से सुसज्जित है| आपकी झांकी बड़ी ही मनोरम व सुकून प्रदान करने वाली है| हे त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देव, आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइये|
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्:|| 16 ||
हिंदी – बड़े दिग्गजों के द्वारा स्वर्ण कलश से गिराए गए आकाश गंगा के समान निर्मल एवं मनोहर से जिनके श्री अंगों का अभिषेक संपादित होता है| सम्पूर्ण लोकों के पालनकर्ता भगवान विष्णु की गृहणी व क्षीरसागर की पुत्री माता लक्ष्मी को मैं प्रातकाल: प्रणाम करता हूँ|
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया :|| 17 ||
हिंदी – कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं दिन-हिन मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ| अत: आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ| आप उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह नयनों द्वारा मेरी ओर देखो|
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया :|| 18 ||
हिंदी – जो भी मनुष्य प्रतिदिन इन स्तुतियों के द्वारा वेदत्रयी स्वरुप भगवती माता लक्ष्मी जी की स्तुति करते है| वह लोग इस सम्पूर्ण धरा पर महान गुणवान और सौभाग्यशाली होते है| तथा बड़े से बड़े विद्वान पुरुष भी उनके मन में चल रहे भावो को जानने के लिए उत्सुक रहते है|
निष्कर्ष
आप भी इसे अपनाएं और इसके लाभ अनुभव करें। मां लक्ष्मी की कृपा से आपका जीवन धन, वैभव और सुख-शांति से परिपूर्ण होगा।