हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्व रखता है। कामदा एकादशी व्रत को भगवान विष्णु का सर्वश्रेष्ठ व्रत माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और पापों का नाश होता है। आइए जानें कामदा एकादशी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, कथा और इसका महत्व।
कामदा एकादशी का व्रत न केवल भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है, बल्कि यह पापों का शुद्धिकरण करने वाला भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत से भक्त या उसके परिवार के सदस्य सर्पदंश से भी मुक्त हो सकते हैं।
कामदा एकादशी व्रत का महत्व और लाभ
इस एकादशी का व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति और पापों के नाश के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
कामदा एकादशी व्रत करने से लाभ:
- सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
- जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- पापों का नाश होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कामदा एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
- कामदा एकादशी की तिथि: मंगलवार, 8 अप्रैल 2025
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 7 अप्रैल 2025 को रात 8:00 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 8 अप्रैल 2025 को रात 9:00 बजे
- पारण का शुभ मुहूर्त: 9 अप्रैल 2025 को सुबह 6:02 बजे से 8:34 बजे तक
दशमी तिथि पर क्या करें?
इस एकादशी से एक दिन पहले, यानी दशमी तिथि की दोपहर में केवल एक बार भोजन करना चाहिए। भोजन में गेहूं और मूंग आदि ग्रहण करें और भगवान का स्मरण करें।
कामदा एकादशी 2025: पूजा विधि
- स्नान और व्रत संकल्प:
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। - भगवान विष्णु की पूजा:
पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। - धूप-दीप और भोग:
धूप, दीप, फूल, तुलसी दल और फल अर्पित करें। भगवान को नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। - दिनभर भगवान का स्मरण:
पूरे दिन भगवान विष्णु का स्मरण करें और उनके मंत्रों का जाप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। - फलाहार करें: पूरे दिन व्रत रखें और फलाहार करें।
- रात्रि जागरण:
रात्रि में पूजा स्थल के पास बैठकर भजन-कीर्तन करें। - व्रत का पालन:
एकादशी के दिन पूरी निष्ठा से उपवास रखें और जल व फलाहार का सेवन करें।

कामदा एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज का संवाद
कामदा एकादशी की महिमा को समझाने के लिए एक बार भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज के बीच एक संवाद हुआ। युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे केशव, मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं। कृपया मुझे चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी के विषय में बताएं।”
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे धर्मराज, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली इस एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत के पालन से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्रती को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।” इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने कामदा एकादशी की व्रत कथा सुनाई।
कामदा एकादशी व्रत कथा
बहुत समय पहले, रत्नपुर नामक एक गंधर्व और किन्नरों के राज्य में राजा पुंडरिक राज्य करते थे। यह राज्य समृद्धि, सुख और आनंद से परिपूर्ण था। इस राज्य में ललिता नाम की एक अप्सरा अपने पति गंधर्व ललित के साथ रहती थी। दोनों एक-दूसरे के प्रेम में हमेशा मग्न रहते थे।
एक दिन, ललित राजा पुंडरिक के दरबार में नृत्य करने के लिए गया। वहाँ वह गाना प्रस्तुत कर रहा था, लेकिन उसकी प्रियतमा पत्नी ललिता उसके साथ नहीं थी। नृत्य और गान करते समय ललित को अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इस कारण उसका नृत्य मंथर हो गया और उसके स्वर लड़खड़ाने लगे।
कामदा एकादशी व्रत कथा: गंधर्व ललित का राक्षस बनना
राजा पुंडरिक के दरबार में, गंधर्व ललित के नृत्य और गान में गलती करने का कारण उसकी पत्नी ललिता की याद थी। दरबार में उपस्थित श्रेष्ठ नागराज कर्कोटक ने यह बात जान ली। उन्होंने राजा पुंडरिक को बताया कि ललित का ध्यान नृत्य में नहीं था और वह अपनी पत्नी को याद कर रहा था।
यह सुनकर राजा पुंडरिक को क्रोध आ गया। उन्होंने गंधर्व ललित को श्राप दिया, “मूर्ख! मेरे सामने गान करते समय अपनी पत्नी को याद कर रहा है? मैं तुझे राक्षस बनने का श्राप देता हूं।”
जैसे ही राजा ने यह कहा, गंधर्व ललित का रूप तुरंत बदल गया। वह एक भयंकर राक्षस बन गया। उसका विशाल और डरावना चेहरा, भयानक आंखें, और विकराल शरीर देखकर हर कोई भयभीत हो जाता। वह अपने कर्मों का फल भोगने लगा।
ललिता का दुख और समाधान की खोज
जब ललिता को अपने पति के राक्षस बनने की खबर मिली, तो वह अत्यंत दुखी हो गई। अपने पति को इस भयानक रूप में देखकर वह सोचने लगी, “मैं क्या करूं? कहाँ जाऊं? मेरे पति अत्यंत कष्ट में हैं।”
वह रोते हुए अपने पति के पीछे-पीछे जंगल में भटकने लगी। तभी उसे एक सुंदर आश्रम दिखाई दिया, जहाँ एक शांतिपूर्ण ऋषि ध्यानमग्न बैठे थे।
ललिता तुरंत उनके पास गई और उन्हें प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हो गई। ऋषि ने उस दुखी स्त्री को देखकर पूछा, “तुम कौन हो और यहाँ कैसे आई हो?”
ललिता ने कहा, “हे महामुनि, मेरा नाम ललिता है। मेरे पति अपने पापों के कारण राक्षस बन गए हैं और इस घने जंगल में भटक रहे हैं। मैं उन्हें इस अवस्था में नहीं देख सकती। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे पति इस राक्षस योनि से मुक्त हो सकें।“
पापों से मुक्ति का मार्ग
ऋषि ने ललिता से कहा, “हे पुत्री, यह समय चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का है, जो सभी पापों को नष्ट करने वाली और अत्यंत शुभ है। तुम विधिपूर्वक इस कामदा एकादशी का व्रत करो और इसके व्रत का पुण्य अपने पति को दान कर दो। इससे तुम्हारे पति के सभी पाप एक क्षण में नष्ट हो जाएंगे।”
कामदा एकादशी व्रत का पालन और परिणाम
ऋषि की बात सुनकर ललिता ने पूरे विधि-विधान से कामदा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु की पूजा की। व्रत और पूजा समाप्त करने के बाद वह उसी ब्राह्मण ऋषि के पास गई और बोली, “हे ऋषिवर, मैंने कामदा एकादशी का व्रत किया है और इसके पुण्य को अपने पति के उद्धार के लिए अर्पित करती हूं।”
जैसे ही ललिता ने ऐसा कहा, उसके पति ललित के सभी पाप क्षण भर में नष्ट हो गए और वह अपने दिव्य स्वरूप में लौट आए।
स्वर्ग की प्राप्ति
कामदा एकादशी व्रत के प्रभाव से पति-पत्नी दोनों पहले से भी अधिक सुंदर रूप में परिवर्तित हो गए। वे स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए।
कामदा एकादशी का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज युधिष्ठिर, मैंने आपके समक्ष इस व्रत की कथा का वर्णन लोक कल्याण के लिए किया है। कामदा एकादशी ब्रह्महत्या जैसे महापापों से भी मुक्ति दिलाती है।”
जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार कामदा एकादशी व्रत कथा की शुरुआत होती है। इस कथा को सुनने और व्रत का पालन करने से भक्त को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
निष्कर्ष
कामदा एकादशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने और जीवन में सुख-शांति लाने का श्रेष्ठ मार्ग है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।