कलश स्थापना भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण आंशिक हिस्सा है।
कलश स्थापना शुभ समारम्भ, त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के आरंभ के दौरान किया जाता है।
इसे भलाई, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
कलश स्थापना ठीक रीति से की जाए तो घर और पूजा स्थल पर पवित्रता और देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।
इस लेख में, हम कलश स्थापना की सही प्रक्रिया, सामग्री और दिशा-निर्देशों के साथ-साथ इसके महत्व को विस्तार से समझेंगे।
कलश स्थापना का महत्व
हिंदू धर्म में, कलश को ब्रह्मांड और ईश्वर का प्रतीक माना जाता है।
यह पांच महाभूतों—जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु, और आकाश—का प्रतिनिधित्व करता है।
इसे देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है, और पूजा के समय कलश का स्थानापना शुभ और मंगलकारी ऊर्जा को आह्वान करता है।

उपयोगी सामग्री कलश स्थापना के लिए
कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित सामग्री उपयोग में आती है:
- कलश (तांबे, मिट्टी या पीतल का)
- पानी (पवित्र जल जैसे गंगाजल)
- आम के पत्ते (5 या 7)
- नारियल (पूरे खोल वाला)
- सुपारी
- चावल
- सिंदूर और हल्दी
- रोली या कुमकुम
- मौली (कलावा)
- पान के पत्ते
- धनिया और साबुत चावल
- फूल और दूर्वा घास
- सफेद या लाल रंग का कपड़ा
- दीपक और धूपबत्ती
कलश स्थापना का सही समय
पंचांग की मदद से कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करना उपयुक्त है।
विशेष त्योहारों जैसे नवरात्रि, गणेश चतुर्थी, दीवाली या किसी खास पूजा के लिए ज्योतिषाचार्य से सलाह लेकर मुहूर्त निर्धारित करें।
कलश स्थापना की विधि
पूजा स्थल की तैयारी
पूजा स्थल को स्वच्छ और पुण्यस्थल बनाएं।
आसन पर सफेद या लाल रंग का कपड़ा फैलाएं।
पूजा सामग्री और भगवान की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर रखें।
स्थान का चयन
कलश स्थापना के लिए पूजा स्थल पर उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) का चयन करें।
यह दिशा पॉजिटिव ऊर्जा के विस्तार के लिए आदर्श मानी जाती है।
कलश में जल भरना
तांबे, मिट्टी या पीतल के कलश में गंगा जल या पवित्र पानी डालें।
इसमें हल्दी, सिंदूर, चावल, सुपारी, और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) मिलाएं।
पान का एक पत्ता और दूर्वा घास भी डालें।
कलश के बाहरी भाग को सजाना
कलश के बाहरी भाग पर मौली धागा बंधे।
इसके चारों ओर रोली या सिंदूर से स्वास्तिक बनाएं।
यह शुभता और पॉजिटिव ऊर्जा का प्रतीक है।
आम के पत्तों की व्यवस्था
कलश के मुंह पर 5 या 7 आम के पत्ते इस तरह रखें कि उनकी चोटी बाहर की ओर हो।
ये पत्ते पंचतत्वों और प्राकृतिक ऊर्जा का प्रतीक होते हैं।
की स्थापना
नारियल यानी श्रीफल को लाल कपड़े से ढंककर मौली से बांधें।
नारियल को कलश के ऊपर इस प्रकार रखें कि उसका शीर्ष (नोकवाला भाग) बाहर की ओर हो।
यह भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मौजूदगी का प्रतीक है।
चावल की वेदी बनाना
पूजा स्थल पर चावल से एक वेदी तैयार करें।
इस वेदी पर कलश को स्थापित करें।
चावल को शुभता और समृद्धि के प्रतीक माना जाता है।
दिया प्रज्वलित करना
कलश के पास घी या तेल का दिया जलाएं।
धूप या अगरबत्ती जलाकर पूरे स्थान को सुगंधित और पवित्र बनाएं।
कलश की पूजा
कलश पर फूल अर्पित करें।
“ॐ गं गणपतये नमः” और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” जैसे मंत्रों का जाप करें।
देवी-देवताओं की ध्यान में जाकर जल, चावल, और फूल समर्पित करें।
मंत्र उच्चारण और प्रार्थना
कलश की स्थापना के बाद भगवान के ध्यान में जाएं और अपनी पूजा शुरू करें।
पूजा के दौरान नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करें:“ॐ कल्पद्रुमाय नमः”।
यह मंत्र कलश को पवित्र और शक्तिशाली बनाता है।

कलश स्थापना के दौरान विशेष बातों का रखें ध्यान
- पूजा के समय पवित्रता का ध्यान रखें।
- नारियल और आम के पत्ते हमेशा ताजे और स्वच्छ होने चाहिए।
- कलश स्थापना के समय मन को शांत रखें और अपना ध्यान भगवान पर केंद्रित करें।
- पूजा करते समय किसी भी तरह की जल्दबाजी न करें।
- कलश को एक बार स्थापित करने के बाद उसे वहीं से हटाने की कोशिश न करें।
कलश स्थापना से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य
- कलश में पानी डालने से पॉजिटिव एनर्जी उत्पन्न होती है।
- नारियल को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का आकर्षक माना जाता है।
- आम के पत्ते और दूर्वा घास वातावरण को साफ करने में मददगार होते हैं।
निष्कर्ष
कलश स्थापना एक पवित्र कार्यक्रम है जो हमारे संस्कृति और मान्यताओं का प्रतीक है।
यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि घर में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाने का एक तरीका भी है।
सही विधि और श्रद्धा से किया गया यह कार्य न केवल देवी-देवताओं को प्रसन्न करता है, बल्कि पूजा को भी सफल और फलदायक बनाता है।
अपने जीवन को शुभ और मंगलमय बनाने के लिए कलश स्थापना की इस प्रक्रिया को सच्चे मन से अपनाएं।