हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी या गणेश चतुर्थी कहते हैं।
यह दिन भगवान श्री गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और आरंभ के देवता माना जाता है।
ज्येष्ठ मास की विनायक चतुर्थी 2025 में शुक्रवार, 30 मई को मनाई जाएगी।
इस दिन विशेष पूजा, व्रत और मंत्रों के जाप से गणपति की पूजा की जाती है ताकि जीवन में समृद्धि, सफलता और बाधाओं का नाश हो।
इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बेहद अधिक है, खासकर उन भक्तों के लिए जो कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं या किसी बाधा से मुक्ति चाहते हैं।
ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी 2025 तिथि और पूजा मुहूर्त
ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी 2025 में शुक्रवार, 30 मई को मनाई जाएगी।
यह तिथि भगवान गणेश के जन्म की स्मृति में मनाई जाती है, जिसमें उन्हें दूध, दूर्वा, मोदक और लाल फूल विशेष रूप से चढ़ाए जाते हैं।
इस दिन पूजा का विशेष समय सुबह 10:56 बजे से दोपहर 01:42 बजे तक है।
इस दौरान विधि-विधान से गणपति की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
यह दिन व्यापारियों, विद्यार्थियों और जीवन में नई शुरुआत करने वालों के लिए विशेष रूप से शुभ है।
पंचांग के अनुसार इस दिन चंद्रदर्शन वर्जित है, इसलिए रात में चंद्रमा को देखने से बचना चाहिए।

विनायक चतुर्थी का धार्मिक महत्व
विनायक चतुर्थी सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक विशेष अवसर है।
श्री गणेश को प्रथम पूज्य देवता कहा गया है।
कोई भी शुभ कार्य, विवाह, गृह प्रवेश या नया व्यवसाय गणेश पूजा से शुरू किया जाता है।
इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
खासकर ज्येष्ठ माह की विनायक चतुर्थी अत्यधिक गर्मी के समय आती है, जब मन और शरीर दोनों को शांति की आवश्यकता होती है।
गणेश की पूजा इस तनाव और अशांति को समाप्त करने का उपाय बनती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि और सामग्री की सूची
विनायक चतुर्थी की पूजा सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनकर शुरू करनी चाहिए।
पूजा के लिए एक चौकी पर गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
लाल कपड़ा, दूर्वा, शुद्ध घी, मोदक, गुड़, नारियल, रोली, अक्षत, लाल फूल, धूपबत्ती, कपूर और पंचामृत की व्यवस्था करें।
गणेश जी के मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” से पूजा शुरू करें।
सबसे पहले गणेश जी को स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं, तिलक लगाएं, फिर दूर्वा और फूल चढ़ाएं।
मोदक का भोग लगाएं, दीपक जलाएं और आरती करें। अंत में कथा सुनें और व्रत का संकल्प लें।
पूजा के बाद प्रसाद बांटें और चंद्र दर्शन से बचें।
व्रत रखने की विधि एवं नियम
इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा सुबह उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
व्रत दो प्रकार से रखा जा सकता है- निर्जल (बिना जल ग्रहण किए) या फलाहार (फल और दूध ग्रहण करके)।
इस दिन भगवान गणेश का स्मरण, मंत्र जाप और कथा सुननी चाहिए।
सूर्यास्त के बाद आरती करके व्रत समाप्त करना उचित रहता है।
कुछ लोग रात्रि में चंद्रमा को देखकर अर्घ्य देकर व्रत पूरा करते हैं, लेकिन विनायक चतुर्थी पर चंद्रमा को देखना वर्जित है।
व्रत के दौरान झूठ, कटु वचन, विवाद और मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए।
व्रत का उद्देश्य केवल शरीर को कष्ट देना ही नहीं है, बल्कि मन और आत्मा को शुद्ध करना भी है।
विनायक चतुर्थी पर व्रत और पूजा के लाभ
गणेश चतुर्थी पर व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है जिनके कार्यों में बार-बार रुकावट आती है।
विद्यार्थियों को बुद्धि, स्मरण शक्ति और सफलता प्राप्त होती है।
व्यापारियों को नए अवसर और लाभ मिलते हैं।
दाम्पत्य जीवन में प्रेम और समझदारी बढ़ती है।
साथ ही यह व्रत ग्रह दोषों को शांत करने और जीवन में आर्थिक, मानसिक और पारिवारिक समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है।
भगवान गणेश को प्रसन्न करके व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है।
गणेश जी के विशेष मंत्र और जप विधि
विनायक चतुर्थी पर विशेष मंत्रों का जप करना बहुत फलदायी होता है।
“ॐ गं गणपतये नमः” का 108 बार जप करने से मानसिक शांति और इच्छित कार्यों में सफलता मिलती है।
इसके अलावा “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्याशु सर्वदा॥” मंत्र का भी जाप करना चाहिए।
जप करते समय मन को एकाग्र रखें और गणेश जी की मूर्ति के सामने आसन पर बैठकर जप करें।
रुद्राक्ष की माला से जप करना सर्वोत्तम माना जाता है।
यदि आप किसी विशेष उद्देश्य के लिए व्रत कर रहे हैं तो उस भावना को मन में स्पष्ट रखें और मंत्र का जाप भक्ति भाव से करें।
इस दिन गणेश चालीसा जरूर पढ़ें।

चंद्र दर्शन से क्यों बचना चाहिए?
विनायक चतुर्थी पर चंद्र दर्शन अशुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लग सकता है।
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश ने चंद्रमा को उसके अहंकारी और उपहास करने वाले व्यवहार के कारण श्राप दिया था कि जो भी इस दिन चंद्रमा को देखेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा।
इससे बचने के लिए इस दिन विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और रात में खुले आसमान की ओर नहीं देखना चाहिए।
अगर गलती से चंद्रमा दिख जाए तो “श्री कृष्ण स्यमंतक मणि कथा” सुनना या सुनाना दोष का निवारण माना जाता है।
ज्येष्ठ मास की विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व ज्येष्ठ मास की विनायक चतुर्थी भीषण गर्मी के बीच आती है, जब मनुष्य को मानसिक और शारीरिक राहत की जरूरत होती है।
इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मानसिक संतुलन और सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है।
ज्येष्ठ मास में गंगा स्नान और पवित्र आचरण का विशेष महत्व है और विनायक चतुर्थी इस पवित्र वातावरण को और भी ऊर्जावान बना देती है।
इस समय किया गया व्रत और पूजन तप, ध्यान और आत्म कल्याण की ओर एक सशक्त कदम माना जाता है।
भक्तों को इस दिन भगवान गणेश की पूजा भक्ति, ध्यान और सेवा की भावना से करनी चाहिए, ताकि उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिल सके।
FAQs ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी से सम्बंधित
- प्रश्न: ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी क्या है?
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और भक्त उनसे बाधाओं से मुक्ति और सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं।
- प्रश्न: 2025 में ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी कब है और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
2025 में यह व्रत शुक्रवार, 30 मई को है। पूजा का विशेष समय सुबह 10:56 बजे से दोपहर 01:42 बजे तक है।
- प्रश्न: क्या इस दिन चंद्रमा देखना वर्जित है?
हां, विनायक चतुर्थी पर चंद्रदर्शन अशुभ माना जाता है। इसे देखने से झूठे आरोप लगने की संभावना रहती है।
अगर गलती से दिख जाए तो “श्रीकृष्ण-स्यमंतक मणि कथा” का पाठ करना चाहिए।
- प्रश्न: व्रत कैसे रखें?
इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रत रखें। पूजा के बाद फलाहार या निर्जला व्रत रख सकते हैं।
शाम को गणेश आरती के बाद व्रत समाप्त करें।
- प्रश्न: यह व्रत कौन कर सकता है और इसके क्या लाभ हैं?
स्त्री-पुरुष, विद्यार्थी, व्यवसायी, गृहस्थ – सभी यह व्रत रख सकते हैं। इससे विघ्न दूर होते हैं, बुद्धि का विकास होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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