भारत की सांस्कृतिक विरासत में ऐसे कई त्यौहार और उत्सव हैं जो न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करते हैं बल्कि सामाजिक एकता और भक्ति की गहराई को भी दर्शाते हैं। ऐसा ही एक अनूठा त्यौहार है जगन्नाथ रथ यात्रा, जो हर साल उड़ीसा के पुरी शहर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
यह त्यौहार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के वार्षिक नगर भ्रमण का प्रतीक है।
भगवान जगन्नाथ का स्वरूप और महिमा
भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और उनका स्वरूप नीले रंग, बड़ी आंखों और चंदन से बने एक विशेष रूप में प्रतिष्ठित है।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में उनका विशेष स्थान है, जहां वे हमेशा बलभद्र और सुभद्रा के साथ विराजमान रहते हैं।
उनकी यह यात्रा भक्तों के लिए एक दुर्लभ अवसर है, जब वे उनके दर्शन करके भगवान की निकटता का अनुभव कर सकते हैं।

रथ यात्रा की विशेष परंपराएँ
रथ यात्रा के दौरान तीन भव्य रथ बनाए जाते हैं:
भगवान जगन्नाथ के लिए ‘नंदी घोष’ रथ
बलभद्र जी के लिए ‘तालध्वज’ रथ
सुभद्रा जी के लिए ‘दर्पदलन’ रथ
ये रथ लकड़ी से बने होते हैं और इनकी ऊँचाई और निर्माण विधि वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार होती है।
जब ये रथ सिंहद्वार से निकलकर गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ते हैं, तो लाखों भक्त इन्हें रस्सियों से खींचते हैं।
इस रस्सी को खींचना अत्यंत पुण्य माना जाता है।
रथ यात्रा 2025 की तिथि और समय
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 27 जून से शुरू होकर 7 जुलाई को समाप्त होगी।
इस दौरान भगवान गुंडिचा मंदिर में 8 दिनों तक विश्राम करेंगे।
रथ यात्रा की शुरुआत: 27 जून 2025
रथ यात्रा का समापन: 7 जुलाई 2025
इस यात्रा की तिथि आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर दशमी तिथि तक चलती है।
आषाढ़ माह में आने वाली यह यात्रा चातुर्मास के आरंभ का भी प्रतीक है।
गुंडिचा मंदिर की आध्यात्मिक विशेषता
गुंडिचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। इस मंदिर को श्री हरि विश्राम स्थल भी कहा जाता है।
जब भगवान यहां पहुंचते हैं तो मंदिर परिसर को विशेष फूलों, रंगोली और भजनों से सजाया जाता है।
यहां रहकर वे भक्तों को विशेष आशीर्वाद देते हैं।
यात्रा के अंतिम दिन बहुदा यात्रा होती है, जिसमें भगवान अपने मूल मंदिर लौटते हैं।
भक्तों की भक्ति और आस्था
इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होते हैं। भक्त अपने-अपने गांव और कस्बों से पुरी पहुंचते हैं, कई लोग नंगे पैर यह यात्रा करते हैं।
यात्रा के दौरान कीर्तन, भजन, संकीर्तन और प्रसाद वितरण होता है।
यह भक्तों के लिए आत्मशुद्धि, दान, सेवा और भगवान की भक्ति का समय होता है।
रथ यात्रा के दौरान जपे जाने वाले मंत्र
यह मंत्र रथ यात्रा के दौरान बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है:
“जय जगन्नाथ! हरि बोल! हरि बोल!”
इसके साथ ही यह मंत्र भी बहुत प्रभावशाली है:
“श्री जगन्नाथाय नमः”
इस मंत्र का जप करते हुए रथ को खींचना विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति की जीवंत झलक है।
यह उत्सव आत्मा की यात्रा का प्रतीक है – जब आत्मा अपने शरीर रूपी रथ में सवार होकर प्रभु की ओर बढ़ती है।
यह यात्रा समाज में सद्भाव, एकता और सहयोग की भावना को भी मजबूत करती है।

सामाजिक सद्भाव और वैश्विक आकर्षण
यह यात्रा भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। रथ यात्रा अब न्यूयॉर्क, लंदन, टोक्यो जैसे शहरों में भी निकाली जाती है।
इस प्रकार यह उत्सव वैश्विक मंच पर भारतीय संस्कृति को स्थापित करने का काम करता है।
निष्कर्ष: जगन्नाथ रथ यात्रा का संदेश
जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मानवता, प्रेम, सेवा और समर्पण का संदेश भी देती है।
यह हमें सिखाती है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों के पास आते हैं, उन्हें दर्शन देते हैं और उनके जीवन को धन्य करते हैं।
यह पर्व हमें भक्ति, अनुशासन और सेवा के महत्व का एहसास कराता है।
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