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Reading: Guruwar Vrat Katha: बृहस्पति देव की कथा
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Marg Darshan > Blog > Vrat > Vrat Katha > Guruwar Vrat Katha: बृहस्पति देव की कथा
Vrat Katha

Guruwar Vrat Katha: बृहस्पति देव की कथा

Sadhana Pandey
Last updated: November 17, 2024 1:29 am
By Sadhana Pandey
23 Min Read
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गुरुवार व्रत कथा सुनने मात्र से गुरु बृहस्पति प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख समृद्धि तथा परिवार मैं शांति का वातावरण बना रहता है|

Contents
बृहस्पतिवार व्रत कथा –घर लौटकर राजा ने अपनी रानी से कहा, हे रानी! हम निसंतान है, इसलिए कोई हमारा मुंह देखना नहीं चाहता है और ऐसा बोलकर राजा भोजन इत्यादि नहीं किए और अपने महल में जाकर विश्राम करने लगेlVideo Regarding This Topic :-

चलिए भगवान गणेश का नाम लेकर गुरुवार व्रत कथा प्रारंभ करते हैं|

बृहस्पतिवार व्रत कथा –

प्राचीन समय की बात है| भारत में एक प्रतापी और महादानी राजा राज करता था| वह गरीबों की सेवा करता था, ब्राह्मणों को दान देता था, कुएं, तालाब, बाग-बगीचे आदि लगाता था परंतु यह सब दान-पुण्य और धार्मिक कार्य उसके रानी को पसंद नहीं आता था और वह राजा को ऐसा करने से मना किया करती थी|

एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन को गए हुए थे| रानी अपने महल में अकेली बैठी हुई थी| उस समय बृहस्पति देव साधु के वेश में रानी के पास आए और भिक्षा मांगने लगे| रानी ने भिक्षा देने से मना किया और कहा साधु महाराज मैं इस दान-पुण्य से परेशान हो गई हूं| मेरे पति सारा दिन धन का दान-पुण्य करते हैं| इससे मेरा मन बहुत दुखी होता है| मेरी यही इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए और मैं पूरे आराम से रह सकूंl

इस पर साधु रूप में आए हुए गुरु बृहस्पति ने रानी को बहुत समझाया और कहा हे, रानी तुम इस धन का दान करो, पुण्य कर्मों में लगाओ, तालाब बाग बगीचे आदि का निर्माण कराओ इससे तुम्हारा और तुम्हारे कुल के वंशज का नाम बढ़ेगा परंतु रानी ने ऐसा करने से साफ मना किया और कहा कि मैं ऐसा नहीं करना चाहती हूं| आप कुछ ऐसा उपाय बताइए जिससे यह धन नष्ट हो जाए और मैं पूरे चैन से रह सकूंl

ऐसा सुनने के बाद साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं तुम्हें जैसा बताता हूं वैसा ही करना ऐसा करने से तुम्हारा घर धन-धान्य से हीन हो जाएगा| साधु ने बताया कि गुरुवार को अपने घर को गोबर से लीपना, अपना सिर धोना, कपड़े धोना, पति से कहना कि बाल बनवाये, भोजन में मांस-मदिरा का सेवन करना| इससे तुम्हारा यह सब धन नष्ट हो जाएगा और तुम चैन की सांस ले सकोगेl

साधु के कहे अनुसार रानी ने वैसा ही किया| इसे करते हुए मात्र 3 गुरुवार ही बीता था कि रानी का सब धन नष्ट हो गया और वह भोजन के लिए तरसने लगी| तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी! तुम यहां रहो मैं दूसरे देश को जाता हूं क्योंकि देश चोरी परदेस भिक्षा| ऐसा कर कर राजा परदेस को चला गया| वहां जंगल से लकड़ियां काट कर लाता और शहर में बेचता| इस तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा| इधर राजा के परदेस जाते ही रानी और उसकी दासी बहुत दुखी रहने लगीl

एक बार जब रानी अपने दासी को 7 दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा तो रानी ने दासी से कहा कि यहां पास में ही मेरी बहन रहती है वह बहुत धनवान है संपन्न है तू उसके पास जा और कुछ भोजन के लिए मांगना जिससे कि कुछ दिन हमारे गुजर बसर हो जाएंगे इतना सुनकर दासी रानी के बहन के पास चली गई|

उस दिन गुरुवार था रानी की बहन उस समय गुरुवार का व्रत धारण कर गुरुवार तक कथा सुन रही थी दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया l लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह उस समय गुरुवार व्रत की कथा सुन रही थी l पूजा और कथा संपन्न करके ही बोला जाता है इस नियम का पालन कर रही थी| इससे रानी द्वारा भेजी गई दासी बहुत दुखी हुई और घर आकर रानी से कहा कि मैंने आपकी बहन को आपका हाल सुनाया है परंतु उसने कोई उत्तर नहीं दिया इससे रानी बहुत दुखी हुई और उसने अपनी दासी से कहा हे दासी जब बुरे दिन आते हैं तो कोई नहीं सुनता है ऐसा बोलकर रानी अपने भाग्य को कोसने लगीl

इधर जब रानी की बहन कथा समाप्त कर पूजा समाप्त कर उठी तो वह बहुत दुखी हुई की मेरी बहन की दासी आई थी परंतु उसने मैंने कुछ बोला नहीं कुछ कहा नहीं इससे वह बहुत दुखी हुई होगीl कथा सुनकर पूजन समाप्त कर रानी अपनी बहन के घर आई, और कहने लगी हे बहन मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी तुम्हारी दासी मेरे घर गई थी परंतु जब तक कथा होती है तब तक कुछ बोला नहीं जाता है और उठा नहीं जाता इसलिए मैं कथा समाप्त होने का इंतजार कर रही थी और जैसे ही कथा समाप्त कि मैं तुरंत तुम्हारे घर आई कहो बहन तुम्हें क्या परेशानी हैl

इस पर रानी की बहन फूट कर रोने लगी और कहने लगी बहन इस समय हमारी स्थिति बहुत खराब हो गई है, खाने-खाने के लिए हम मोहताज हो गए हैं| घर में अनाज नहीं था इसलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास भेजा था कि तुम कुछ खाने को अनाज दे दो जिससे हमारे कुछ दिन खाने की व्यवस्था हो जाए, ऐसा सुनकर रानी की बहन ने पूरे विश्वास के साथ कहा हे बहन! तुम अपने घर में जाकर देखो तुम्हारे घर में भी अनाज मिलेगा ऐसा सुनकर रानी की दासी ने घर में जाकर देखा तो अनाज से भरा हुआ एक घड़ा मिला इस पर रानी और दासी बहुत खुश हुईl

यह चमत्कार देखकर दासी रानी से कहने लगी है रानी हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत रोज ही करते हैं इसलिए क्यों नहीं यह व्रत की विधि और कथा पूछ लिया जाए ताकि हम व्रत कर सके तब रानी की बहन ने अपनी बहन से गुरुवार व्रत के बारे में सारी जानकारी लीl

रानी की बहन ने बताया बृहस्पति वार के व्रत में चने की दाल मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें दीपक जलाए कथा सुने पीला पूजन करे पीला वस्त्र पहने इससे गुरु बृहस्पति प्रसन्न होते हैं और पुत्र की प्राप्ति होती है| व्रत और पूजन विधि बता कर रानी की बहन अपने घर को लौट आईl

अगले हफ्ते जब गुरुवार का दिन आया तो रानी और दासी दोनों ने व्रत रखा और घुड़शाले में जाकर चना और गुड़ बिन कर ले आए फिर उसको केले की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा किया पीला भोजन कहां से आए इस बात को सोचकर रानी और दासी दोनों बहुत दुखी उनके व्रत रखने के कारण गुरु बृहस्पति उनके ऊपर बहुत प्रसन्न थे इसलिए वह एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण करके 2 थालों में व्रत का सादा साधारण भोजन लेकर उनके सामने उपस्थित हुए दासी को भोजन देकर बोले कि यह तुम्हें और तुम्हारी रानी के लिए भोजन है यह भोजन तुम आराम के साथ करनाl

रानी ने फिर अगले हफ्ते गुरुवार का व्रत धारण किया इससे उनकी खोई हुई राज्य संपत्ति से वापस आ गई रानी ने इस व्रत को लगातार करना प्रारंभ करने लगा और वह आलस्य को त्याग कर दीl

कुछ समय बीता रानी फिर पहले की तरह से लगे तब दासी बोली देखो रानी तुम पहले भी इस तरह आलस्य कर देती तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था| इस कारण सभी धन नष्ट हो गयाl अब जब भगवान के कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर आलस्य क्यों होता है? आलस्य त्यागो और गुरु बृहस्पति के शरण में बने रहो,रानी को समझाते हुए दासी यदि कहीं की बहुत मुसीबत और समस्याओं के बाद हमने यह धन पाए इसलिए हमें दान पुण्य करना चाहिए भूखे को भोजन कराना चाहिए हमको शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा स्वर्ग की प्राप्ति होगीl पितृ प्रसन्न होंगे और तुम्हारा नाम बढ़ेगाl दासी की बात सुनकर रानी अपना सारा धन शुभ कार्य में खर्च करने लगी और पूरे नगर में इस बात की यश कीर्ति और चर्चा फैलने लगीl

एक दिन राजा दुखी होकर जंगल में पेड़ के नीचे आसन जमा कर बैठा हुआ था| आपने दशा को याद करके बहुत दुखी होने लगा गुरुवार का दिन था| एकाएक उसने देखा कि उसी समय साधु प्रकट हुए| साधु के भेष में वह गुरु बृहस्पति थे| लकड़हारे के सामने आकर बोले लकड़हारे सुनसान जंगल में तुम किस व्यर्थ की चिंता में बैठे हुए हो,लकड़हारे ने हाथ जोड़कर गुरुदेव को प्रणाम किया और अपनी सारी पुरानी बातों को वह गुरु बृहस्पति देव के सामने कहने लगाl महात्मा जी ने कहा हे राजा! तुम्हारी रानी ने गुरु बृहस्पति देव का अनादर किया था, जिस कारण तुम्हें यह कष्ट भोगना पड़ाl अब तुम चिंता ना करो और मेरे कहे हुए मार्ग पर चलो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जाएंगे और पहले से भी अधिक धन-संपत्ति भगवान की कृपा से तुम्हें प्राप्त होगी| तुम बृहस्पतिवार के दिन कथा किया करो, दो पैसे के चने मुनक्का लाकर उसका प्रसाद बनाओ शुद्ध जल के लौटे में शक्कर और हल्दी मिलाकर केले के पेड़ का पूजा किया करो तत्पश्चात इस कथा को श्रवण किया करोl

साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला हे प्रभु! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता जिसे भोजन के उपरांत मैं कुछ बचा सकूंl मैंने रात्रि के स्वप्न में अपनी रानी को व्याकुल देखना मेरे पास कुछ भी नहीं जिसे मैं उसकी खोज खबर ले सकूं ने गुरु बृहस्पति ने कहा कि किसी बात की चिंता मत करो तुम रोजाना की तरह लकड़िया लेकर जाओ तुमको रोज से दुगना धन मिलेगा जिससे तुम भली-भांति पूजन और व्रत कर सकोगेl 

इतना कह कर साधु वहां से अंतर्ध्यान हो गए धीरे-धीरे समय बीतने लगा और वही बृहस्पतिवार का दिन आया लकड़हारे जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने गया उस दिन उस दिन राजा को रोज से दुगना धन मिला और उस धन से गुरु बृहस्पति देव की पूजा की संपूर्ण सामग्रीया खरीद कर लाया और व्रत और पूजा कियेl

परंतु दूसरे सप्ताह राजा व्रत करना भूल गयाl इस कारण बृहस्पति देव नाराज हो गए उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था l और और पूरे शहर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर का चूल्हा नाजलाएं सभी राजा के यहां निमंत्रण में भोजन करने को पहुंचेl

राजा की आज्ञा मानकर नगर के सभी लोग राजा के यहां निमंत्रण में शामिल हुए लकड़हारा कुछ देर में पहुंचा देर से पहुंचने के कारण राजा उसे स्वयं अपने महल में ले जाए और भोजन करा रहे थे तब तक रानी की दृष्टि खूंटी पर पड़े हुए उनके नौलखा हार की तरफ गई वह हार रानी को नहीं दिखा इसलिए वह व्याकुल होकर राजा से इस बारे में बात की और राजा और रानी ने लकड़हारे को उस हार का चोर साबित कर दिया और उसे कारागार में डलवा दियाl

लकड़हारा कारागार में पड़ गया तो बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि ना जाने कौन से जन्म के कर्म के कारण दुख प्राप्त हुआ और उस साधु को याद करनें लगा जो उसे जंगल में मिला थाl गुरु बृहस्पति अपने भक्तों की करुण पुकार पर तुरंत वहां प्रकट हुए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे हे मूर्ख तूने बृहस्पति देव की कथा पूजा नहीं किया इस कारण तुम्हें यह दुख प्राप्त हुआ हैl अगले गुरुवार को कारागार के दरवाजे पर पड़े हुए चार पैसे मिलेंगे उनसे तुम पूजा करना तुम्हारा यह दुख दूर हो जाएगाl

बृहस्पतिवार के दिन राजा को कारागार के दरवाजे पर पड़े हुए चार पैसे मिले उनसे राजा ने पूजा की सामग्री मंगाई तथा पूजा किया उसी रात्रि उस नगर के राजा को यह सपना आया कि यह व्यक्ति निर्दोष है उसे छोड़ दो नहीं तो मैं तुम्हारे समस्त राज्य को नष्ट कर दूंगाl

इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर राजा प्रात :काल उठा और खूंटी पर लटका हुआ रानी का नौलखा हार देखा इससे वह लकड़हारे को जिस को जेल में बंद कर दिया था| उसको बुलाया योग्य सुंदर वस्त्र आभूषण देकर उसे नगर को विदा किया तथा उस से क्षमा मांगीl

राजा जब अपने नगर के सभी पहुंचा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ नगर में पहले से अधिक बाग बगीचे को हुए तालाब धर्मशाला इत्यादि बन गए थे राजा ने पूछा यह सब किसका है तो नगर के सभी लोग कहने लगे कि यह सब रानी और बांदी ने किया है इस पर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ तथा क्रोध भी आया l

उधर जब रानी ने यह समाचार सुना कि राजा आ रहे हैं तो उन्होंने बांदी से यह कह दिया की हे बांदी राजा हमारी ऐसी हालत देखकर कहीं लौट ना जाए इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जाओ आज्ञा अनुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई राजा आए तो उनको साथ महल में आए जब राजा ने क्रोधित होकर अपनी रानी से पूछाl वह सब तुम्हें कैसे मिला तो उन्होंने कहा यह सब धन हमें गुरु बृहस्पति देव की व्रत के प्रभाव के कारण मिला हैl यह सब सुनकर राजा ने निश्चय किया कि 7 दिन के बाद फिर गुरुवार आएगा तो उस दिन मैं पूजन करूंगा और विधि विधान के साथ व्रत धारण करूंगा और दिन में प्रतिदिन मैं 3 बार कहानी सुना करूंगाl अब हर रोज राजा के दुपट्टे में चने की दाल बनी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहा करताl एक रोज राजा ने यह विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आते हैंl इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चलने लगेl मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लेकर जा रहे हैं| उन्हें रोक कर राजा कहने लगा अरे भाइयों मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लोl

इस पर कुछ लोग क्रोधित हो गए और बोले कि इधर हमारे आदमी की मृत्यु हो गई है और उधर तुम्हें अपने कथा की पड़ी है परंतु कुछ बुद्धिजीवी लोग बोले कि नहीं इसकी कथा सुन लेते हैं| कथा आधी जैसे ही पहुंची मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हुई तो आराम राम करके उठ खड़ा हुआl

आगे मार्ग में चलते हुए एक किसान जो खेत में हल चला रहा था| राजा ने उसे देख कर उसे बोले अरे भाई मेरी गुरुवार की कथा सुन लो, किसान बोला जब तक मैं तुम्हारी कथा सुन लूंगा तब तक 4 हरैया जोड़ लूंगाl अपनी कथा किसी और को सुनाना इस तरह राजा आगे चलने लगाl राजा के हटते ही किसान का बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा किसान के पेट में बड़े जोर से दर्द होने लगाl

उस समय किसान की माँ उसके लिए रोटी और पानी लेकर आई थी जब यह सब हाल देखा तो वह बहुत दुखी हुई तथा दौड़ कर उस राजा को बुलाया और उसे बुलाकर अपने खेत में बैठकर कथा सुनने लगीl कथा जैसे ही प्रारंभ हुई किसान के पेट का दर्द बंद हो गया तथा उसके बैल उठ खड़े हुएl

राजा अपनी बहन के घर पहुंचा बहन ने भाई की खूब स्वागत की दूसरे दिन प्रातः काल राजा दगा तो देखा कि सभी लोग भोजन कर रहे हैं राजा ने अपनी बहन से कहा ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसने अभी तक पूजन नहीं किया मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले, बहन बोली भैया यह देश ऐसा ही है कि पहले यहां लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आऊl

वह ऐसा बोलकर देखने चली गई परंतु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसमें अभी तक भोजन नहीं किया होता एक कुम्हार के घर गए जिसका लड़का बहुत बीमार था| उसे मालूम हुआ कि उसके यहां तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया हैl रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया राजा ने जाकर गुरुवार की कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गयाl अब तो राजा की बहुत ज्यादा प्रशंसा होने लगीl

एक रोज राजा ने अपनी बहन से कहा, हे बहन! हम अपने घर को जाएंगे तुम भी तैयार हो जाओl राजा की बहन ने अपनेसास से आज्ञा मांगी तो सास ने कहा तू चली जा परंतु अपने बच्चों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई की कोई संतान नहीं है|

बहन ने अपने भाई से कहा, हे भैया! मैं तो चलूंगी परंतु बालक लोग नहीं जा सकेंगे क्योंकि माता जी की आज्ञा नहीं हैl इस पर राजा बोला जब बालक ही नहीं चलेगा तो तुम चल कर क्या करोगी बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आयाl

घर लौटकर राजा ने अपनी रानी से कहा, हे रानी! हम निसंतान है, इसलिए कोई हमारा मुंह देखना नहीं चाहता है और ऐसा बोलकर राजा भोजन इत्यादि नहीं किए और अपने महल में जाकर विश्राम करने लगेl

रानी बोली, प्रभु बृहस्पति देव ने हमें सब कुछ दिया है, वह हमें संतान भी देंगे| उसी रात बृहस्पति देव ने स्वप्न में कहा कि राजा उठ तेरे दुख के दिन समाप्त हुए, तेरी रानी गर्भ से है| राजा गुरु बृहस्पति देव की यह बात सुनकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए| राजा की खुशी का ठिकाना ना रहाl नवे महीने में रानी की गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ| तब राजा बोला हे रानी!, एक स्त्री बिना भोजन के रह सकती है परंतु बिना कुछ कहे नहीं रह सकती है| जब मेरी बहन आये, तुम उसको कुछ मत कहना| रानी ने सुनकर हां कर दियाl

जब राजा की बहन ने नया शुभ समाचार सुना तो बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई, रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आईl

राजा की बहन बोली भाभी मैं इस प्रकार नाक होती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती है बृहस्पति देव ऐसे ही हैं, जिसके मन की मनोकामनाएं हैं सभी को पूर्ण करते हैं| प्रेम पूर्वक जो इस व्रत को धारण करता है, इस कथा को सुनता और पढ़ता है, उसकी सभी मनोकामनाएं गुरुदेव की कृपा से पूर्ण होती हैं|

बोलो गुरु बृहस्पति देव की जय…

Video Regarding This Topic :-

गुरुवार के दिन बस यह चार काम करना शुरू करें और जीवन में देखे चमत्कारी बदलाव | Guruwar Ke Din Bas Yeh Char Kaam Karna Shuru Karein Aur Jivan Mein Dekhein Chamatkari Badlav

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2 Comments
  • Sanrat Kaushal says:
    June 9, 2023 at 9:51 pm

    Thanks for this.

    Reply

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If the guidance is right then even a small lamp is no less than the sun..

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