गुरु प्रदोष व्रत कथा
गुरु प्रदोष व्रत कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र और वृत्तासुर में भयंकर युद्ध हुआ।
उसे समय देवताओं ने दैत्यों के सी को पराजित कर नष्ट भ्रष्ट कर दिया।
यह देखकर दैत्यराज वृत्तासुर बहुत दुखी हुआ। और वह फिर स्वयं युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि में आ गया।
वृत्तासुर के विकराल और भयानक रूप को देखकर सभी देवतागण भयभीत हो गए।
इस प्रकार सभी देवतागण देवराज इंद्र के परामर्श से देवगुरु बृहस्पति के पास सहायता के लिए पहुंचे।
देवगुरु बृहस्पति वहां प्रकट हुए और बोले पहले मैं आप सबको वृत्तासुर के पूर्व जन्म की कथा सुनाता हूं।
और तब गुरु बृहस्पति वृत्तासुर की कथा सुनाने लगे।
उन्होंने कहा वृत्तासुर बहुत ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ था। वृत्तासुर ने गंधमान पार्वत पर महादेव की कठोर तपस्या की और फिर उन्हें प्रसन्न किया।
पूर्व जन्म में वृत्तासुर चित्ररथ नाम का राजा हुआ करता था। एक बार चित्ररथ भगवान शिव के दर्शन करने के लिए अपने विमान में बैठकर कैलाश पर्वत पर गया।
भगवान का स्वरूप और वाम अंग में मां पार्वती को विराजमान देखकर चित्ररथ हस पड़ा और हाथ जोड़कर भोलेनाथ से कहने लगा, हे प्रभु हम तो मोह माया के बंधनों में जकड़े हुए हैं, जिस कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं।
किंतु देवलोक में कहीं ऐसा देखा नहीं गया कि कोई स्त्री सहित सभा में बैठा हो।
चित्र रथ को हंसता हुआ देखकर भगवान शिव भी मुस्कुरा कर कहने लगे।
हे राजन- मेरा दृष्टिकोण सबसे अलग है मैंने तो मृत्यु दाता कालकूट महविश का पान किया है फिर भी तुम साधारण मनुष्य के जैसे मेरी हंसी उड़ा रहे हो।
राजा चित्र रथ की ऐसी बातें सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ गया और वह चित्र को बोलने लगी दुष्ट तूने मेरे सर्वव्यापी के साथ मेरा भी उपहास उड़ाया है।
आज मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि कभी तू अपने जीवन में फिर संतों का उपहास करने का साहस नहीं कर पाएगा।
मेरा श्राप है अब तो दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिरे। मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू अभी पृथ्वी लोक पर चला जाए।
देवी पार्वती के श्राप देते ही राजा चित्र रथ इस पर विमान से नीचे गिर गया और राक्षस योनि को प्राप्त हो गया।
इस प्रकार वह महाशुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ फिर स्वष्टा नमक ऋषि के श्रेष्ठ तपस्या करने से वह वृत्तासुर बना।
फिर बृहस्पति देव ने देवताओं को बताया कि वृत्त और बचपन से ही शिव भक्त रहा हैं।
इसलिए अगर उसके विकराल रूप से बचाना है तो सभी को महादेव की भक्ति करनी होगी और उन्हें प्रसन्न करना होगा।
जिस भगवान शिव प्रसन्न होकर वृत्त सूर्य के संघार का आशीर्वाद आप सभी लोगों को प्रदान कर सकते हैं। इसके लिए आप सभी को गुरु प्रदोष का व्रत करना पड़ेगा।
गुरु प्रदोष का व्रत करने के साथ-साथ प्रदोष काल में पूजा करके भगवान शिव को प्रसन्न करना पड़ेगा।
तब देवराज इंद्र और अन्य देवता गणों ने प्रदोष व्रत करके शिवजी को प्रसन्न किया।
भगवान शिव प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने सभी देवताओं को आशीर्वाद दिया कि वह वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर लेंगे।
फिर से एक बार और युद्ध प्रारंभ हुआ और देवराज इंद्र समेत सभी देवता गण ने वृत्तासुर पर विजय प्राप्त करी।
इस प्रकार गुरु प्रदोष व्रत करने और गुरु प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से मनुष्य सदा सुखी रहता है और उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।
अगर कोई सुहागिन स्त्री इस व्रत को करती है तो उसके पति पर संकट छाया दूर हो जाता है।
साथी उसके पति की आयु भी बढ़ती है। कहते हैं गुरु प्रदोष का व्रत जो भी भक्ति विधि विधान से और कोई कामना रखकर करता है भगवान शंकर की कृपा से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
।। गुरु प्रदोष व्रत कथा समाप्त।।

अधिक जानकारी के लिए: प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण विधि
शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ऊं जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
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