गुप्त का अर्थ है “छिपा हुआ” या “गोपनीय”। इस नवरात्रि के दौरान गुप्त ज्ञान की सिद्धि के लिए विशेष साधना की जाती है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
यह पर्व आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
इनमें से माघ मास की नवरात्रि अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इस दौरान दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।
हालांकि, आमतौर पर गृहस्थ लोग नौ दुर्गाओं की पूजा करते हैं।
आइए जानते हैं दस महाविद्याओं का संक्षिप्त परिचय।
नवरात्रि की नौ देवियाँ
नवरात्रि की 9 देवियाँ हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ये सभी माता सती, पार्वती और अंबिका के अलग-अलग रूप हैं।

गुप्त नवरात्रि की देवियाँ
- काली
- तारा
- त्रिपुर सुंदरी
- भुवनेश्वरी
- छिन्नमस्ता
- त्रिपुरभैरवी
- धूमावती
- बगलामुखी
- मातंगी
- कमला
ये दस महाविद्याएं अलग-अलग देवी स्वरूपों से संबंधित हैं।
नवरात्रि की दस महाविद्याओं की तीन श्रेणियाँ:
दस महाविद्याओं को तीन समूहों में विभाजित किया गया है:
प्रथम: सौम्य कोटि– त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला
द्वितीय: उग्र कोटि– काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी
तृतीय: सौम्य-उग्र कोटि-तारा और त्रिपुरभैरवी
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गुप्त नवरात्रि दस महाविद्याओं का परिचय
काली:
महाविद्याओं में काली का प्रथम स्थान है। यह देवी महान राक्षसों का नाश करने के लिए प्रकट हुई थीं।
साधना में माता के वीर रूप की पूजा की जाती है।
काली माता काजल पर्वत के समान शव पर बैठी, खोपड़ियों की माला पहने, एक हाथ में तलवार, दूसरे में त्रिशूल और तीसरे में कटा हुआ सिर लिए भक्तों के सामने प्रकट होती हैं।
वे चामुंडा का रूप हैं, जिन्होंने महिषासुर का वध किया और रक्तबीज का वध किया, तथा जिन्होंने देवताओं को राक्षसों पर विजय दिलाने में मदद की।
जब शिव उनके चरणों में लेट गए, तो उनका क्रोध शांत हो गया।
तारा:
तांत्रिक साधना की मुख्य देवी तारा हैं, जिनका नाम “रक्षक” के अर्थ से आया है।
महर्षि वशिष्ठ इनके उपासक थे।
तारा देवी शत्रुओं का नाश, आर्थिक समृद्धि, भोग और मोक्ष प्रदान करती हैं।
इनके तीन रूप हैं: तारा, एकजटा और नील सरस्वती।
त्रिपुर सुंदरी:
त्रिपुर सुंदरी षोडशी माहेश्वरी शक्ति हैं, जिनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं।
इन्हें ललिता, राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है।
इनमें सोलह कलाएं समाहित हैं, इसलिए इन्हें षोडशी कहा जाता है।
इनका शक्तिपीठ त्रिपुरा में है, जहां माता के वस्त्र गिरे थे।
त्रिपुर सुंदरी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।
भुवनेश्वरी:
भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति माना जाता है।
इन्हें शताक्षी और शाकंभरी नामों से भी जाना जाता है।
पुत्र प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की जाती है। भुवनेश्वरी मां का स्वरूप सौम्य और तेजस्वी है।
इनकी पूजा से भक्तों को निर्भयता और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
यह देवी सूर्य के समान तेज प्रदान करती हैं और इनके आशीर्वाद से व्यक्ति राजनीतिक पदों पर आसीन हो सकता है।
छिन्नमस्ता:
छिन्नमस्ता शक्ति का वह रूप है जिसका सिर कटा हुआ है और गले से तीन धाराओं में रक्त बह रहा है।
इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन-रति के ऊपर विराजमान हैं।
इनके गले में हड्डियों की माला सुशोभित है और इन्होंने अपने कंधे पर यज्ञोपवीत धारण किया हुआ है।
शांति स्वरूप में वे शांत और ध्यानस्थ हैं, जबकि उग्र स्वरूप में वे भयावह हैं।
छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत गुप्त है।
इनका ध्यान करने से साधक को सरस्वती की सिद्धि प्राप्त होती है, लेखन और बुद्धि में वृद्धि होती है, शरीर रोगमुक्त होता है और शत्रुओं का नाश होता है।
त्रिपुर भैरवी:
त्रिपुर भैरवी की पूजा करने से सभी बंधन टूट जाते हैं। ये बंदीछोरनी माता हैं।
इनके कई भेद बताए गए हैं जैसे त्रिपुर भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी आदि।
त्रिपुर भैरवी साधक को मोक्ष और बुद्धि प्रदान करती हैं।
इनका ध्यान करने से व्यक्ति को जीवन में धन, सुख, स्वास्थ्य और संतान की प्राप्ति होती है।
धूमावती:
धूमावती को विधवा माता माना जाता है, क्योंकि इनका कोई पति नहीं है।
इनका ध्यान करने से जीवन में निर्भयता, आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय आता है।
ये देवी संकट और अभाव को दूर करती हैं।
इनके लिए तिल और घी से होम किया जाता है।
साधक को संयमित और सात्विक जीवनशैली अपनानी होती है, शराब और मांसाहार से दूर रहना अनिवार्य है।

बगलामुखी:
बगलामुखी माता की पूजा युद्ध में विजय और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है।
महाभारत युद्ध से पहले कृष्ण और अर्जुन ने इनकी पूजा की थी।
पूजा से शत्रुओं का भय दूर होता है और वाणी शक्ति मिलती है।
यह देवी शत्रु को मूर्ख बनाती हैं और साधक को विजय दिलाती हैं।
मातंगी:
मातंगी शिव की शक्ति हैं, जो दैत्यों को भ्रमित करती हैं और साधकों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
पारिवारिक जीवन को सफल बनाने के लिए इनकी पूजा की जाती है।
अक्षय तृतीया को मातंगी जयंती मनाई जाती है।
ये वाग्देवी का रूप हैं और चार भुजाएं चारों वेदों का प्रतीक हैं।
इनकी पूजा से आकर्षण, सम्मोहन और कला कौशल का विकास होता है।
कमला:
कमलादेवी दरिद्रता, संकट और कलह को दूर करती हैं।
इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
ये कमल के फूल पर विराजमान रहने वाली श्वेत रंग की देवी हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति परम पूज्य बन जाता है।