जब भी गुप्त नवरात्रि आती है, मन में गुप्त नवरात्रि के बारे में कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि गुप्त नवरात्रि गुप्त क्यों है। इसे समझने के लिए आपको देवी भागवत पढ़नी चाहिए। आपको यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि जब भी यह नवरात्रि आते है, तो इन पांच कार्यों को गुप्त रूप से करना चाहिए और इन्हें प्रकट नहीं करना चाहिए।
देवी भागवत में चार प्रकार की नवरात्रियों का उल्लेख किया गया है। एक नवरात्रि वह है जो प्रकट रूप में होती है और दूसरी नवरात्रि गुप्त रूप में होती है।
– प्रकट नवरात्रि: यह आश्विन और चैत्र महीनों में होती है।
– गुप्त नवरात्रि: यह माघ और आषाढ़ महीनों में गुप्त रूप में होती है।
गुप्त नवरात्रि की विशेषता
जब चैत्र नवरात्रि आते है, तो भारत में और विदेशों में रहने वाले लोग इसे उत्सव और उत्साह के साथ मनाते हैं। हर कोई इसके बारे में जानता है और इसे धूमधाम से मनाता है। लेकिन जब बात गुप्त नवरात्रि की आती है, तो यह नवरात्रि गुप्त रूप में ही रहनी चाहिए।
यह नवरात्रि उत्सव नहीं है, बल्कि साधना का समय है।
गुप्त नवरात्रि क्यों गुप्त होते है?
गुप्त नवरात्रि में साधक अपनी साधना को गुप्त रखते हैं।
– यह साधना केवल भगवान, जगदंबा और स्वयं साधक के बीच होती है।
– साधना में माता भगवती को प्रसन्न किया जाता है।
– गुप्त साधना ही इन नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य है।
गुप्त नवरात्रि किसके लिए है?
यह नवरात्रि उन लोगों के लिए विशेष है जो:
1. मंत्रजप
2. तपस्या
3. पूजा-पाठ
4. माँ जगदंबा की विशेष साधना कर रहे हैं।
गुप्त नवरात्रि के दौरान पांच गुप्त कार्य:
इन के दौरान ये पांच कार्य गुप्त रूप से करें:
1. पूजा:
– यह पहला और सबसे महत्वपूर्ण गुप्त कार्य है।
– पूजा को गुप्त रखें। यह आपके और माँ भगवती के बीच का कार्य है।
इसका मतलब यह है कि आप जो भी कार्य कर रहे हैं, चाहे वह माँ भगवती की पूजा हो, घट स्थापना हो, अखंड दीप जलाना हो, या माँ जगदंबा की दैनिक आराधना हो, वह कार्य गुप्त रूप से किया जाना चाहिए। गुप्त का अर्थ है कि आपके घर के लोग, यहाँ तक कि आपके परिवार के सदस्य भी इसके बारे में न जानें। यह एक अच्छी बात है, लेकिन इसे सभी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए।
2. जप और पाठ:
– आपका जप और पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
– आप कौन सा मंत्र जप रहे हैं, कितनी बार जप रहे हैं, यह गुप्त रहना चाहिए।
– इन में पूजा से अधिक ध्यान जप पर दिया जाता है।
3. हवन कार्य:
– यदि आप इन नवरात्रि में हवन कर रहे हैं, तो यह भी गुप्त रूप से किया जाना चाहिए।
– जो जप आप करते हैं, उसका दशांश भाग हवन में अर्पित करना चाहिए।
– हवन कार्य को एकांत में करना चाहिए, न कि इसे सार्वजनिक रूप से।
4. दान और पुण्य कर्म :
गुप्त नवरात्रि के दौरान दान और पुण्य कर्म करना आवश्यक है। जब आप गुप्त रूप से जप करते हैं और वह दिव्य ज्ञान आपने गुरु से प्राप्त किया हो, तो उस गुरु को उपहार स्वरूप दान और पुण्य कर्म अवश्य करने चाहिए।
– आप जिस गुरु को मानते हैं, उनसे प्राप्त ज्ञान के बदले दान करें।
– यदि आप मंदिर जा रहे हैं और माँ भगवती को कुछ अर्पित कर रहे हैं, तो वह भी गुप्त रूप से करें।
– किसी भी दान या पुण्य कार्य को ढिंढोरा पीटकर नहीं करना चाहिए।
– शांति और धैर्य के साथ किसी भी वस्तु का दान करें।
5. कन्या पूजन :
गुप्त नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है, लेकिन यह कार्य भी सभी के लिए नहीं है।
– कन्या पूजन केवल उन्हीं के लिए है जिन्होंने इन नवरात्रि के दौरान साधना की हो। कन्या भी ऐसी होनी चाहिए जो आपके परिवार की हो या वह कन्या हो जिसकी विशेष पूजा की जा सके।
– यदि आप कन्या पूजन करना चाहते हैं तो इसे इन नवरात्रि में न करें।
– अश्विन या चैत्र की प्रकट नवरात्रि में आप कन्या पूजन कर सकते हैं।
– गुप्त नवरात्र के दौरान कन्या के चरण धुलवाने का कार्य भी केवल वही व्यक्ति करे जिसने गुप्त रूप से जप किया हो।
गुप्त नवरात्रि की पूजा क्यों गुप्त रखनी चाहिए?
यदि आप इन नवरात्रि में माँ भगवती की पूजा कर रहे हैं, घट की स्थापना कर रहे हैं, या अखंड दीप जला रहे हैं, तो यह कार्य केवल आपके और माँ जगदंबा के बीच रहना चाहिए। इसे सभी के सामने प्रकट करना उचित नहीं है।
यदि कोई ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, तो आप उसे अलग से बता सकते हैं, लेकिन इस नवरात्रि का विषय गुणवत्ता और गोपनीयता से जुड़ा है।
गुप्त नवरात्र को उसी तरह गुप्त रखना चाहिए जैसे आप अपने धन को गुप्त रखते हैं।
गुप्त नवरात्रि में क्या न करें ?
– इसे सबके सामने न प्रकट करें।
– यदि यह प्रकट हो गया, तो आपकी साधनाएँ सफल नहीं होंगी।
– आपका कर्म फलदायी नहीं होगा, और आपकी साधना का परिणाम नहीं मिलेगा।
निष्कर्ष
इसका सार यह है कि आपकी गुप्त नवरात्रि जितना नाम गुप्त है, उतनी ही गुप्त होनी चाहिए। इसलिए हमारा अनुरोध है कि यह नवरात्र सभी के लिए नहीं है।
जो लोग कुछ विशेष नहीं कर सकते, उन्हें केवल माँ जगदंबा को याद करना चाहिए, नमन करना चाहिए और सुबह-शाम दीपदान करना चाहिए। यदि वे अधिक साधनाएं नहीं कर सकते, तो यह कोई समस्या नहीं है। उन्हें किसी विशेष नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।