फाल्गुन पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा व्रत मास की अंतिम दिनांक है, जो साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक मानी जाती है।
इस दिन का धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व उन्नत है।
इस दिन उपवास करने, पवित्र नदियों में स्नान करने, और होलिका दहन करने का परम्परागत रीति-रिवाज है।
चलिए, इस महत्वपूर्ण तिथि के विभिन्न पहलुओं को और विस्तार से समझते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के पौराणिक संदर्भ
फाल्गुन पूर्णिमा के सम्बंध में पौराणिक कथाएं हमें धर्म, भक्ति, और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती हैं।
प्रह्लाद भक्त की कथा
इस दिन, भगवान विष्णु ने प्रह्लाद भक्त की संरक्षा की थी।
प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने उसे विष्णु की भक्ति त्यागने के लिए कहा, लेकिन प्रह्लाद ने सत्य और धर्म के मार्ग पर दृढ़ रहकर भगवान विष्णु की भक्ति में लगे रहे।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे अग्नि से बचने की वरदान मिला था, ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में डाल दिया।
लेकिन भगवान की अनुग्रह से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर नष्ट हो गई।
यह कहानी बयान करती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा होती है।
चन्द्रमा की पूजा
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को विशेष महत्व दिया जाता है।
चंद्रमा को मन की शांति और जीवन के संतुलन का प्रतीक माना जाता है।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की पूजा करने से मानसिक शांति और मनोबल में वृद्धि होती है।

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत की तिथि एवं मुहूर्त
विशेषकर, फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर पूजा-पाठ, व्रत और दान-पुण्य करने को बड़ा शुभ माना जाता है।
2025 में फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च, शुक्रवार को होगी।
इसकी शुरुआत 13 मार्च, गुरुवार को सुबह 10:35 बजे होगी और अगले दिन दोपहर 12:23 बजे तक चलेगी।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के अनुष्ठान और परंपराएं
सूर्योदय से पहले स्नान
सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।
अगर नदी में स्नान करना असंभव हो, तो अपने घर पर ही स्नान करते समय पानी में गंगा जल मिलाएं।
भगवान विष्णु और शिव की पूजा
पूजा स्थल को साफ सुथरा करके भगवान विष्णु और शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
दिया, धूप, फूल, और तुलसी की पत्तियाँ अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम और शिव चालीसा का पाठ करें।
होलिका दहन
फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।
इसमें लकड़ी, गोबर के कील, और अन्य सामग्री का उपयोग करके अग्नि को जलाया जाता है।
होलिका की पूजा करते समय गेहूं के बालें, नारियाल, मिठाई, और रंग चढ़ाए जाते हैं।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य बुराई का नाश करना और अच्छाई की प्रोत्साहन करना है।
दान-पुण्य
इस दिन दान देने का विशेष महत्व है।
अन्न, कपड़े, पैसे, और जरूरतमंदों को भोजन दान करें।
गौदान और ब्राह्मणों को भोजन कराना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के लाभ
मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि
उपवास से मन और आत्मा की शुद्धि हो जाती है।
यह अवसर है भगवान के पास जाने और उनकी अनुग्रह प्राप्त करने का।
उपवास से मन में नियमितता और भक्ति की भावना मजबूत हो जाती है।
पापों से मुक्ति
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन उपवास और पूजा से पिछले जन्म के पाप और इस जन्म के पापों का नाश होता है।
स्वास्थ्य फायदे
उपवास से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करने का मौका मिलता है।
यह पाचन को आराम देने और शरीर की ऊर्जा संतुलित करने में मददगार होता है।

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के सांस्कृतिक और पारम्परिक पहलुँ
होली का प्रारंभ
होली उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा के साथ आरंभ होता है।यह त्योहार रंग-बिरंगे, खुशी और साथी सौहार्द का प्रतीक है।
सामाजिक एकता
होलिका दहन और होली का त्योहार समाज में आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
इस दिन पुरानी विवाद-विवादों को समाप्त करके नए रिश्ते बनाने का प्रचलन है।
लोकसंगीत और नृत्य
उत्तर भारत में इस दिन से होली के गानों और लोकनृत्यों का आरंभ होता है।
महिलाएं और पुरुष मिलकर परम्परागत गाने गाते हैं और ढोलक की धुन पर नृत्य करते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के ज्योतिषीय महत्त्व
चंद्रमा के प्रभाव
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा पूरी शक्ति में होता है जो मानसिक शांति और आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से, इस दिन व्रत और पूजा करने से कुंडली में चंद्र दोष का निवारण होता है।
पृथ्वी और चंद्रमा का संतुलन
वैज्ञानिक दृष्टि से, पूर्णिमा के दिन पृथ्वी और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण संतुलन का सकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर और मन पर पड़ता है।
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
सकारात्मक सोच को बिना बदले रखें
उपवास के दौरान, मन को शांत रखें और विचारों को सकारात्मक बनाए रखें।
भगवान का ध्यान रखें और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें।
पवित्र आहार का विनिमय करें
यदि फलाहार कर रहे हैं, तो केवल दूध, फल, और सूखी फलियाँ का सेवन करें।
तामसिक और मांसाहारी आहार से बचें ।
प्राकृतिक आवरण की देखभाल करें
होलिका दहन के समय उपयोग की जाने वाली सामग्री का सही तरीके से इस्तेमाल करें और किसी भी हानिकारक वस्तु जैसे प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें।
पर्यावरण की सफाई के लिए केवल प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें।

निष्कर्ष
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह दिन हमें धर्म, भक्ति, और सेवा की महत्वता सिखाता है।
व्रत, पूजा, और दान से जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है और आत्मा पवित्र होती है।
इस अच्छे दिन को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना चाहिए ताकि जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति हो सके।
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